रांची: राज्य के खाद्य, सार्वजनिक वितरण और उपभोक्ता मामलों के मंत्री सरयू राय ने पलामू टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या नहीं बढ़ने और यहां बाघों के नहीं पाये जाने पर चिंता जतायी है. उन्होंने कहा है कि देश भर में बाघों की संख्या बढ़ी है, तो पलामू के बेतला में गणना के लिए एक साल से लगाये गये वीडियो कैमरों में बाघों की बढ़ी हुई तस्वीर अंकित नहीं हुई है.
बिहार के बाल्मिकी टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या घट कर चार हो गयी थी, पर सरकार के व्याघ्र संरक्षण योजना के सही तरीके से अमल किये जाने से राष्ट्रीय स्तर पर यहां बाघों की संख्या एक दर्जन से अधिक हो गयी.
झारखंड सरकार के वन विभाग के अधिकारियों को इस पर अतमावल्कोकन करने की जरूरत है, कि कैसे गणना के दौरान पलामू टाइगर रिजर्व में बाघों की गणना में गड़बड़ी हुई. वन विभाग के अधिकारियों को इस बारे में आत्म मंथन भी करना चाहिये. पीटीआर की दुर्दशा के कारणों का पता लगा कर बाल्मिकी टाइगर रिजर्व की तरह एक सुनिश्चित योजना बनानी चाहिए.
उन्होंने कहा है कि लातेहार जिला का प्रभारी मंत्री होने के नाते 1.6.2016, 28.2017 और 25.5.2017 को मैंने तीन बैठकें कीं. तीसरी बैठक में तत्कालीन वन एवं पर्यावरण सचिव सुखदेव सिह भी शामिल थे.
पहली बैठक में ही खुलासा हो गया था कि वन विभाग के संबंधित अधिकारियों की रूचि पलामू परियोजना के संरक्षण और संवर्द्धन के बारे मे नहीं है. मैंने उनसे वन्य जीव संरक्षण अधिनियम और नेशनल टाईगर कंजर्वेशन अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों को लागू किये जाने के बारे में जानना चाहा तो अधिकारियों ने अनभिज्ञता जाहिर की और कहा कि उन प्रावधानों के अनुरूप अफसर पदस्थापित नहीं हैं. तीनों बैठकों मे हुये निर्णयों की बजाप्ता कार्यवाही तैयार हुई है जो वहाँ उपलब्ध है.
2018 में जब बाघों की गणना आरंभ हुई तो तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री अनिल माधव दवे ने देश के अन्य मुख्यमंत्रियो के साथ ही झारखंड के मुख्यमंत्री को दिनांक 10 मार्च 2017 को पत्र लिखा था. केंद्रीय मंत्री ने पत्र में कहा था कि चौथा अखिल भारतीय व्याघ्र आकलन अभियान 2018 मे होने जा रहा है. इस दौरान संबंधित अधिकारियों और कर्मियों का स्थानांतरण न किया जाय. इस दौरान झारखंड मे नीचे से उपर तक के अधिकांश अधिकारी और कर्मी बदल दिये गये.
यह एक वजह हो सकती है कि बाघों की गिनती सही तरीके से नहीं हो पायी.
श्री राय ने कहा है क बाघों को बचाना है तो परियोजना के कोर एरिया से गुजरने वाली रेलवे की तीसरी लाईन को राँची- मेदिनीनगर एनएच के समानांतर बरवाडीह से चियांकी (पलामू) होकर ले जाना होगा. वन्य जीवों के पुनर्वास के अनुरुप संरक्षित करना होगा ताकि बाघ वहां डटकर रहें. साथ ही मनुष्य एवं घरेलू जानवरों का व्यवधान/हस्तक्षेप वहां न्यूनतम करना होगा. ऐसा हुआ तो पलामू व्याघ्र परियोजना का पुराना गौरव लौट सकेगा. परियोजना 1970 के दर्शक मे देश में घोषित आधा दर्जन व्याघ्र आरक्षियों में से एक है. उस समय परियोजना को वातावरण के लिहाज से बेहतर माना गया था.