रांची: दो दिन पूर्व 27 जुलाई को मेनहर्ट नियुक्ति घोटाला पर लिखित मेरी पुस्तक “लम्हों की खता” का विमोचन हुआ. उसी दिन इस घोटाला के मुख्य किरदार, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं मेनहर्ट की अनियमित नियुक्ति के समय राज्य सरकार में नगर विकास विभाग एवं वित्त विभाग के मंत्री रघुवर दास का इस बारे में एक प्रेस वक्तव्य प्रसारित हुआ. उनका यह वक्तव्य समाचार माध्यमों में प्रमुखता से छपा एवं प्रसारित हुआ है.
अपने लंबे और बेसिर-पैर वाले वक्तव्य में दास ने मेरी पुस्तक को उनकी छवि मलिन करने की कोशिश बताया है और कतिपय सवाल खड़ा किया है. एक को छोड़कर उनके सभी प्रश्नों के उत्तर “लम्हों की खता” में है.
वह प्रश्न है कि ओआरजी का कार्यालय कहां था? उन्हें इस सवाल के उत्तर की जानकारी है. फिर भी मैं बता दूं कि ओआरजी का कार्यालय डोरंडा के मजिस्ट्रेट कॉलोनी स्थित उसी पांच मंजिला इमारत के भूतल पर था, जिसकी पांचवीं मंजिल के तीन कमरों वाले एक फ़्लैट में मैं वर्ष 2000 से रह रहा हूं.
यह सवाल पूछने का उनका सबब है कि ओआरजी से मेरा संबंध था और उसे एवं एक अन्य परामर्शी स्पैन ट्रायवर्स मॉर्गन को हटाकर रघुवर दास ने मेनहर्ट को बहाल किया था इसलिये ओआरजी की तरफदारी में मैंने मेनहर्ट नियुक्ति घोटाला का मामला उठाया था जिसका उद्देश्य “उनकी दूध की धुली” छवि को धूमिल करना था.
अब एक सवाल रघुवर दास से मेरा है कि क्या उन्हें पता नहीं है कि उनके द्वारा हटाये जाने के विरूद्ध ओआरजी ने झारखंड उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और अपने हटाये जाने को गलत बताते हुये किये गये काम का भुगतान मांगा था.
न्यायालय ने उसकी अर्जी यह कह कर खारिज कर दिया कि इस विषय का निर्णय करना उच्च न्यायालय की परिधि से बाहर है यह आर्बिट्रेशन का मामला है. ओआरजी ने इस आधार पर पुन: उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल किया और उच्च न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति यु पी सिंह को आर्बिट्रेटेड बहाल कर मामले का निपटारा करने का आदेश दिया.
न्यायमूर्ति यु पी सिंह ने विस्तृत विवेचना के साथ अपना फैसला झारखंड न्यायालय को सौंप दिया कि “ओआरजी को हटाने का निर्णय ग़लत था, उसके द्वारा किये गये काम की एवज में झारखंड सरकार उसे 3.61 करोड़ रूपये का भुगतान करे.”
इसके बाद भी रघुवर दास द्वारा इस मामले में सवाल खड़ा करना थेथरई करना नहीं कहा जायेगा तो क्या कहा जायेगा. ऐसा सवाल उठाकर वे अपनी किरकिरी करा रहे हैं, खुद अपनी छवि धूमिल कर रहे हैं और अपने ही हाथ से अपने चेहरे पर कालिख पोत रहे हैं. उनकी इस जिज्ञासा समाधान लम्हों की खता के खंड-2 में विद्यमान है.
अब वे मेरे सवालों का जवाब दें. मैं उनसे सवाल है कि क्या यह सही है कि
- ओआरजी को हटाकर मेनहर्ट को बहाल करने के लिये जो टेंडर उन्होंने नगर विकास विभाग से निकालवाया वह टेंडर विश्व बैंक की क्यूबीएस प्रणाली पर निकाला गया, जबकि इसे क्यूबीसीएस प्रणाली पर निकाला जाना चाहिये था ?
- इस टेंडर का मूल्यांकन हुआ तब मूल्यांकन समिति ने और विभागीय सचिव ने उन्हें बताया कि कोई भी निविदादाता निविदा की शर्तों पर योग्य नहीं है. इसलिये टेंडर रद्द कर नया टेंडर क्यूबीसीएस प्रणाली पर निकाला जाय. परंतु मंत्री रघुवर दास ने अपने कार्यालय कक्ष में मूल्यांकन समिति और मुख्य समिति की बैठक बुलाकर निर्देश दिया कि आज ही उनके कार्यालय कक्ष में बैठक कर वे लोग इन्ही निविदाओं का मूल्यांकन करने का उपाय करें.
- मंत्री रघुवर दास के निर्देश पर निविदा की शर्तों में बदलाव कर मूल्यांकन किया गया और मेनहर्ट अनियमित तरीका से बहाल हुआ. जबकि निविदा खुल जाने और मूल्यांकन हो जाने के बाद शर्तों में बदलाव करना अनुचित है और भ्रष्ट आचरण का द्योतक है. केन्द्रीय सतर्कता आयोग भी इसे अपराध मानता है.
- निविदा शर्तों में बदलाव करने के बाद भी मेनहर्ट अयोग्य था. निविदा शर्तों के अनुसार निविदादाताओं से विगत तीन वर्षों का टर्नओवर मांगा गया था पर मेनहर्ट ने केवल दो वर्षों का ही टर्नओवर दिया. इस प्रकार मेनहर्ट अयोग्य था. उसकी निविदा खारिज होनी चाहिये थी. इसके बाद भी मेनहर्ट को योग्य करार दिया गया.
- निविदा शर्तों के अनुसार टेंडर तीन लिफाफों में डालना था. एक लिफाफा योग्यता का, दूसरा लिफाफा तकनीकी क्षमता का और तीसरा लिफाफा वित्तीय दर का था. शर्त थी कि योग्यता की किसी भी एक शर्त को पूरा नहीं करने वाला निविदादाता अयोग्य माना जायेगा और वह निविदा प्रतिस्पर्द्धा से बाहर हो जायेगा, उसे अयोग्य करार दिया जायेगा. उसका तकनीकी क्षमता वाला लिफाफा नहीं खोला जायेगा पर टर्नओवर वाली शर्त पर अयोग्य होने के बावजूद मेनहर्ट का तकनीकी लिफाफा खोला गया.
- विधानसभा में मामला उठा तो मंत्री रघुवर दास ने सदन में झूठ बोला कि निविदा दो लिफाफों में मांगी गई थी. एक तकनीकी लिफाफा और दूसरा, वित्तीय लिफाफा. योग्यता वाले लिफाफा को वे गोल कर गये, कारण कि योग्यता की शर्तों पर मेनहर्ट अयोग्य था.
- विधानसभा की विशेष जांच समिति के सामने भी और तकनीकी उच्चस्तरीय जांच समिति के सामने भी नगर विकास विभाग ने यही झूठ परोसा कि निविदा दो लिफाफों-एक तकनीकी और दूसरा वित्तीय में ही मांगी गई थी. योग्यता के लिफाफा को फिर छुपा दिया गया.
- विधानसभा की कार्यान्वयन समिति ने जांच शुरू किया तो मंत्री रघुवर दास ने अड़ंगा लगाया और तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के पत्र लिखकर जांच रोकवा दिया.
इस समय तक तो रघुवर दास ही मंत्री थे. मेनहर्ट की अनियमित नियुक्ति में उनकी मुख्य किरदार की भूमिका उपर्युक्त से स्पष्ट है. उपर्युक्त विवरण सही है या नहीं है, उन्हें बताना चाहिये.
इस बीच सरकार बदली. जनाब आलमगीर आलम विधानसभाध्यक्ष बने. कार्यान्वयन समिति की जांच फिर से शुरू हुई. रघुवर को बताना चाहिये कि क्या यह सही है कि-
- रघुवर दास ने जांच रोकने के लिये सभाध्यक्ष को फिर से चिट्ठी लिखी.
- कार्यान्वयन समिति ने मेनहर्ट की बहाली को अवैध माना और इसे दिया गया कार्यादेश रद्द करने एवं इसे बहाल करने के दोषियों पर कारवाई करने की अनुशंसा की.
- इसके बाद 5 अभियंता प्रमुखों की समिति बनी. इसने कहा कि निविदा की शर्तों के अनुसार मेनहर्ट अयोग्य था. निविदा प्रकाशन से निष्पादन तक हर स्तर पर त्रुटि हुई है.
- इसके बाद निगरानी विभाग के तकनीकी कोषांग ने जांच किया और पाया कि योग्यता, तकनीकी, वित्तीय सभी मापदंडों पर मेनहर्ट के पक्षों पक्षपात हुआ. मेनहर्ट अयोग्य था.
इस कालखंड में कुछ समय रघुवर दास मंत्री थे.बाद में कई वर्ष तक उनकी चहेती अधिकारी राजबाला वर्मा निगरानी आयुक्त थीं. इन्होंने निगरानी ब्यूरो को जांच नहीं करने दिया, जांच करने की अनुमति नहीं दिया.
अब रघुवर दास बतायें कि किस जांच में मेनहर्ट की नियुक्ति सही पाई गई और किस न्यायालय ने मेनहर्ट की बहाली पर क्लिन चिट दिया. सच्चाई है कि किसी ने मेनहर्ट की बहाली पर क्लिनचिट नहीं दिया. स्पष्ट है कि मेनहर्ट की नियुक्ति गलत थी, वह अयोग्य था, उसकी बहाली में अनियमितता, भ्रष्टाचार, घोटाला हुआ.
मेनहर्ट को किसने भुगतान किया, किसने कैबिनेट के सामने सही बात नहीं रखा. इस संदर्भ में अर्जुन मुंडा और हेमंत सोरेन के नाम की आड़ में वे अपना कसूर छुपाने की कोशिश कर रहे हैं. उनका अपराध, उनका भ्रष्टाचार इससे अलग है. मैं जानता हूं कि दास उपर्युक्त प्रश्नों का सही उत्तर देने के काबिल नहीं है. बेहतर होगा वे सच मान लें और पश्चाताप करें. इसी में उनका कल्याण है.
उनकी छवि धूमिल करने से मुझे अथवा किसी अन्य को क्या हासिल होने वाला है. अपनी छवि धूमिल करने के लिये दास स्वयं पर्याप्त हैं. सार्वजनिक एवं राजनीतिक जीवन में जो खुद अपने हाथों से अपने चेहरे पर कालिख पोतता है. उसके लिये दूसरे को प्रयत्न करने की जरूरत नहीं होती.