BNN DESK: नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे को सरकार की कैबिनेट मंजूरी दे दी है. देश के मानव संसाधन एवं विकास मंत्री रमेश पोखरियाल, उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे तथा शिक्षा सचिव अनीता करवाल ने 29 जुलाई 2020 को प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से देश को यह जानकारी दी.
जल्द ही इस मसौदे को बिल बनाकर संसद में पेश किया जाएगा और पास होते ही यह कानून बन जायेगा. इस मसौदे के अनुसार शिक्षा क्षेत्र में बहुत बड़े बदलाव किये गए है तथा मैकाले की शिक्षा पद्धति को पूर्णतया बदलने का प्रयास किया गया है.
आइये एक नजर डालते है इस नवीन नीति की ऐतिहासिक प्रष्ठभूमि पर…..
👉 ऐतिहासिक प्रष्ठभूमि
यह भारत की तीसरी शिक्षा नीति है. पहली शिक्षा नीति 1968 में (कोठारी समिति की संस्तुति 1964-66 ) आई थी, जब इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री थी. उसके बाद 1986 में राजीव गांधी के समय फिर से नयी शिक्षा नीति लाई गयी.
1992 में इसमें कुछ संशोधन अवश्य किये गये, परन्तु इसका मूल ढांचा 1986 की शिक्षा नीति वाला ही रहा. इसके बाद 2020 यानी की पूरे 34 साल बाद इस शिक्षा नीति में बदलाव किया जा रहा है, जिसकी वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए बहुत आवश्यकता थी.
इसके लिए बनी 2015 में पूर्व कैबिनेट सचिव टी एस आर सुब्रमणयम की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट को सरकार द्वारा ख़ारिज कर दिया गया था. इसके बाद 2016 में के कस्तूरीरंगन (पूर्व अंतरिक्ष वैज्ञानिक) की अध्यक्षता में बनी नवीन समिति ने इस सन्दर्भ में मसौदा प्रस्तुत किया, जिसमें 29 जुलाई 2020 को सरकार ने अपनी सहमती दे दी.
👉 नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति के महत्वपूर्ण बिंदु
- मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय किया गया.
- शिक्षा का फोर्मेट 10+2 के स्थान पर 5+3+3+4 किया जाएगा
1. पहले 5 साल फाउंडेशन स्टेज होंगे, जिसमें 3 वर्ष प्री प्राइमरी, कक्षा 1 व क्ष 2 के लिए होंगे. इसके अंतर्गत बच्चों में शिक्षा के प्रति रूचि खेलकूद व अन्य गतिविधियों के माध्यम से बढ़ाने पर बल देकर उनके सर्वांगीण विकास की ओर ध्यान दिया जाएगा.
2. फिर अगले 3 वर्ष (कक्षा 3 से कक्षा 5 तक ) इसका अगला चरण होगा जिसमे छात्रों में विषयों जैसे विज्ञान, गणित, कला, सामजिक विज्ञान, मानवता, नैतिकता आदि का परिचय करवाया जाएगा.
3. फिर अगले 3 वर्ष (कक्षा 6 से कक्षा 8 तक ) विषयों के प्रयोगात्मक ज्ञान पर बल दिया जाएगा. जिसके अंतर्गत कंप्यूटर कोडिंग, कंप्यूटर भाषा आदि अन्य तकनीकि चीजों पर जोर दिया जाएगा. इसके तहत छात्र इंट्रेंशिप भी कर सकेंगे.
4. माध्यमिक अवशता के 4 वर्ष (कक्षा 9 से कक्षा 12 तक ) विषयों के प्रति विश्लेषणात्मक क्षमता में अभिवृद्धि पर विशेष जोर दिया जाएगा, ताकि छात्र अपनी क्षमता के अनुसार अपना लक्ष्य निर्धारित कर सकें .
- 12वीं के बाद स्ट्रीम (कला, विज्ञान व वाणिज्य ) खत्म हो जायेगी. छात्र अपनी रूचि अनुरूप विषय पूल के अनुसार कोई भी विषय ले सकेंगे.
- बहुउद्देशीय प्रवेश एवं बहुउद्देशीय निकासी प्रणाली को अपनाया जाएगा. इसके अंतर्गत यदि कोई छात्र 1 साल के बाद ग्रेजुएशन छोड़ देता है तो उसे सर्टिफिकेट दिया जाएगा, इसी प्रकार 2 वर्ष के बाद डिप्लोमा तथा 3 या 4 वर्ष के बाद डिग्री दी जायेगी, जो सर्वमान्य होगी.
- पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद M.Phil अब खत्म हो जाएगा. छात्र अब सीधे Phd कर सकेंगे.
- एक National Research Foundation (NRF) की स्थापना की जायेगी, जिससे छात्रों को अनुसंधान एवं नवीन आविष्कार करने में मदद मिलेगी.
- एक राष्ट्र, एक शिक्षा पद्धत्ति को लागू किया जाएगा, जिसके अंतर्गत पूरे देश में निजी व सरकारी सभी शिक्षण संस्थानों के लिए शिक्षा मानक एक ही होगा.
- 5वीं तक की शिक्षा केवल मातृ भाषा में ही होगी. अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त की जायेगी.
- 9वीं से 12वीं तक की परीक्षाओं के लिए सेमिस्टर सिस्टम होगा, जिसके तहत वर्ष में 2 सेमेस्टर रखे जायेंगे व बोर्ड एग्जाम की जगह सेमेस्टर की परीक्षाओं के अंकों को जोड़कर रिजल्ट बनाया जाएगा.
- छात्रों को त्रिभाषा (मातृ भाषा, हिंदी व अंग्रेजी ) में परीक्षा देने की छूट मिलेगी.
- रिपोर्ट कार्ड का 360 डिग्री आंकलन किया जाएगा, जिसके अंतर्गत शिक्षा के अलावा अन्य गतिविधियों के अंक भी जोड़े जायेंगे तथा छात्र स्वयं को भी अंक दे सकेंगे. शिक्षक तथा छात्र के सहपाठी भी आंकलन कर अंक दे सकेंगे. यह एक बहुआयामी प्रक्रिया होगी बौद्धिक विकास के आंकलन की.
- CAT (Common Aptitude Test) कराया जाएगा. इसके अंक व 12वीं के अंकों को जोड़कर विश्वविद्यालय में प्रवेश दिया जाएगा.
- Acadmic Bank Of Credit की व्यवस्था लागू की जायेगी जिसके तहत यदि छात्र कोई भी डिग्री, कोर्स, डिप्लोमा आदि करता है और उसे बीच में छोड़ देता है तो उसके क्रेडिट अंक उसके Acadmic Bank Of Credit में जमा हो जायेंगे. जब वह दुबारा कोई अन्य डिग्री, कोर्स, डिप्लोमा आदि करेगा तो ये अंक उसमें जोड़ दिए जायेंगे. यह पूरी व्यवस्था ऑनलाइन व डिजिटल होगी.
- स्कूल व कॉलेज एक निश्चित फीस से अधिक नहीं ले सकेंगे तथा लीगल व मेडिकल कॉलेजों को छोड़कर सभी उच्च शिक्षण संस्थानों के संचालन के लिए एकल नियामक (रेगुलेटर) होगा.
- संस्थानों के पास ओपन लर्निंग व ऑनलाइन कार्यक्रम चलाने का विकल्प होग .
- नैतिक व संवैधानिक मूल्य पाठ्यक्रम का प्रमुख हिस्सा होंगे.
NEP draft 2019 (A.1.2.1) के अनुसार सरकार ये मानती है कि कोठारी कमीशन की संतुति स्वरुप 6 % जीडीपी का शिक्षा पर खर्च किया जाना था जो आज तक नहीं हुआ है.
2017-18 में जीडीपी का केवल 2.7 % जो पब्लिक एक्सपेंडीचर का 10% था ही शिक्षा क्षेत्र को दिया गया. पिछले 5 वर्षो में जीडीपी का लगभग औसतन 3% ही शिक्षा में खर्च किया रहा है जबकि अन्य देश (OECD व UNESO, 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार) 7.5% भूटान, जिमबोम्बे व स्वीडन, 7% कोस्टा रिका व फिनलेंड, 6 % किर्गिस्तान, साउथ अफ्रीका व ब्राजील, 5.5% U.K, नीदरलैड व पलेस्टाइन तथा 5 % मंगोलिया, मलेशिया, केन्या, कोरिया व अमेरिका खर्च करते है. वहीं पड़ोसी देश चीन 4 % अपनी जीडीपी का (चीन के एक अखबार The State Council के अनुसार) खर्च करता है.
भारत सरकार का लक्ष्य आने वाले दिनों में पब्लिक एक्सपेंडीचर का 10% से बढ़ा कर 20% तक इस सेक्टर में देने का है, जो लगभग कोठारी कमीशन की संतुति के अनुरूप जीडीपी का 6% होगा.
यदि भारत सरकार इस लक्ष्य को पाने में सफल हो जाती है तो निश्चय ही यह शिक्षा के क्षेत्र में सरकार के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा, क्योंकि किसी भी देश का विकास काफी हद तक शिक्षा के विकास पर निर्भर करता है.