रांची: झारखण्ड के करीब 23 हजार हेक्टेयर मात्र में मूंगफली की खेती होती है और इसकी उत्पादकता 1012 किलो प्रति हेक्टेयर मात्र है. जबकि पठारी क्षेत्र की वजह से प्रदेश की मिट्टी हल्की एवं बालुआही है, जो मूंगफली फसल के लिए उपयुक्त होती है. गरीबों का बादाम कही जाने वाली मूंगफली प्रदेश में उगाई जाने वाली सरसों, तीसी के बाद तीसरी मुख्य तिलहनी फसल है. वर्षा आधारित इस फसल के अनेकों लाभ को देखते हुए राज्य में इसकी खेती की काफी संभावनाएं है.
चालू खरीफ मौसम में बीएयू के आनुवांशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग में संचालित आईसीएआर – जनजातीय मूंगफली शोध उपपरियोजना के अधीन प्रदेश के आदिवासी किसानों के खेतों में मूंगफली की आधुनिक खेती तकनीक को बढ़ावा दिया जा रहा है.यह योजना आईसीएआर – मूंगफली शोध निदेशालय, जुनागढ़ (गुजरात) के सौजन्य से इस वर्ष लागु किया गया है. यह जानकारी बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डॉ जेडए हैदर ने दी.
पौधा प्रजनक एवं प्रभारी डॉ शशि किरण तिर्की ने बताया कि चालू खरीफ मौसम में मूंगफली की उन्नत किस्म गिरनार – 3 का अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण कराया गया है. मूंगफली शोध निदेशालय, जुनागढ़ द्वारा विकसित गिरनार – 3 मूंगफली सूखा सहिष्णु और 110 से 115 दिनों में पककर तैयार होने वाली किस्म है. यह एक रोग सहिष्णु प्रजाति है, जो दोमट मिट्टी के लिये उपयुक्त होती है. इसकी गुली हल्के भूरे रंग की और मोटी होती है. इसमें तेल की करीब 51 प्रतिशत मात्रा पाया जाता है. इसके 100 दानों का वजन 50 ग्राम होता है. इसकी औसत पैदावार 20 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है.
इस कार्यक्रम में रांची एवं पूर्वी सिंहभूम जिले के 7 प्रखंडों के 15 गांवों के 227 आदिवासी किसानों के करीब 12 एकड़ भूमि में उन्नत किस्म के समावेश से मूंगफली की खेती को बढावा दिया जा रहा है. इनमें रांची के मांड़र प्रखंड के सोसई, गरमी व मलती, नगड़ी प्रखंड का चीपड़ा, कुद्लोंग व सिमरटोला तथा कांके प्रखंड का अकम्बा, मुरुम, नगड़ी व दुबलिया प्रमुख गाँव है. पूर्वी सिंहभूम जिले के बहरागोरा प्रखंड का सिरसोई व जेरबार तथा दालभूम प्रखंड का राजाबेरा आदि प्रमुख गाँव है. इन गाँवो के किसानों को मूंगफली प्रत्यक्षण हेतु आदिवासी किसानों के बीच 10 क्विंटल मूंगफली किस्म गिरनार – 3 का सत्यापित बीज तथा अन्य उपादानों का वितरण किया गया है. साथ ही वैज्ञानिकों द्वारा सभी किसानों को मूंगफली की उन्नत खेती तकनीक एवं प्रबंधन की ट्रेनिंग दिया गया.
डॉ तिर्की ने बताया कि झारखण्ड के रांची, लोहरदगा, गुमला और पूर्वी सिंहभूम जिले में मूंगफली की खेती अधिकतर होती है. अधिक उपज एवं जल्द तैयार होने वाली, सूखा सहिष्णु तथा रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन से इसकी खेती से ज्यादा लाभ लिया जा सकता है. इसकी खेती में जल निकास की अच्छी सुविधा होना जरूरी है. प्रदेश के लिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने बिरसा मूंगफली -3, बिरसा मूंगफली -4 और बिरसा बोल्ड (बीएयू द्वारा विकसित) तथा आईसीजीभी – 9114, गिरनार – 3 , टीजी 37 ए तथा टीएजी – 25 किस्मों को अनुशंसित किया है.
मूंगफली के तेल का उपयोग रसोई कार्यों, वनस्पति घी व अन्य सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में किया जाता है. इसकी खली खाद व पशु आहार तथा छिलके ईंधन के रूप में काम आते हैं. मूंगफली में 25 से 30 प्रतिशत सुपाच्य प्रोटीन, पर्याप्त मात्रा में विटामिन ई तथा फास्फोरस, कैल्शियम व लोहा जैसे खनिज भरपूर मात्रा में होते हैं. अभी मूंगफली की बिजाई का उपयुक्त समय चल रहा है. बाजार में अच्छी मांग होने के कारण किसान मूंगफली की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.