नई दिल्ली: भारत के पहले स्वदेशी कोविड -19 वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ के नैदानिक परीक्षणों के लिए दिल्ली के AIIMS अस्पताल में दाखिला लेने में रुचि रखने वालों में से लगभग 20%, लोगों में पहले से ही कोरोनो वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित हो गई थी, जिससे वे परीक्षण के लिए अयोग्य हो गए.
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एम्स ने कोवैक्सीन परीक्षण के लिए प्रतिभागियों का नामांकन शुरू करने के दो सप्ताह बाद, संस्थान में 80 से अधिक वॉलेंटियर्स की जांच की है, लेकिन केवल 16 को भर्ती किया गया है. चिकित्सा संस्थान को 100 लोगों पर इस वैक्सीन का परीक्षण करना है, जिन्हें पहली डोज मिलने के बाद कम से कम दो सप्ताह तक निगरानी में रखा जाएगा.
1 सप्ताह की निगरानी में किसी तरह का साइड इफेक्ट नहीं
दिल्ली के एम्स अस्पताल में सबसे ज्यादा बढ़ा सैंपल लिया गया है. ऐसे में 20 लोगों की हर रोज स्क्रीनिंग और जांच की जाती है. जिसके बाद अब तक 16 लोगों को वैक्सीन दिया जा चुका है.
1 सप्ताह की निगरानी के बाद किसी भी तरह की कोई साइड इफेक्ट देखने को नहीं मिला है. वैक्सीन के ट्रायल के लिए दो चरण हो रहे हैं, जिसमें पहले फेस में 18 साल से लेकर 55 साल तक की उम्र के लोगों पर वैक्सीन का परीक्षण किया जाएगा. जबकि फेस-2 में 12 साल से लेकर 65 साल तक के लोगों का ट्रायल किया जाएगा.
एम्स में सबसे बड़ा मानवीय परीक्षण
एम्स में ये सबसे बड़ा मानवीय परीक्षण हो रहा है. देश में जल्द वैक्सीन आने की संभावना बढ़ गई है. 12 संस्थानों में स्वदेशी कोरोना वैक्सीन को लेकर मानव परीक्षण का काम चल रहा है. उसमें दिल्ली और पटना के एम्स और हरियाणा के रोहतक का पीजीआई भी शामिल है.