शशिभूषण दूबे कंचनीय,
लखनऊ: बहराइच त्रिमुहानी घाट के स्वर्ग धाम स्थित श्री काल भैरव मन्दिर में श्रावण मास के समापन अवसर पर बाबा श्री काल भैरव का सब्जी व फल से श्रृंगार कर महापूजन किया गया.
अघोरी बाबा भैरव गौरव नाथ जी द्वारा अघोर पीठ के रूप में स्थापित भूतभावन श्री काल भैरव जी की तंत्रोक्त विधान से पूजा अर्चना की गई, जो कि मध्यरात्रि तक चली और देश की सुख समृध्दि की कामना की गई. पूजन उपरान्त इक्कीस सौ बत्तियों से श्री काल भैरव भगवान की महाआरती हुई.
अघोरी बाबा भैरव गौरव के शिष्य शाक्त साधक ईशान ने बताया तंत्र दो शब्दों के मेल से बना है. तन अर्थात शरीर त्राण करना अर्थात खींचना या खोलना. मंत्र और यंत्र के समावेश से हमारे शरीर की कुण्डलनी शक्ति का जागरण कर आत्मा का परमात्मा या उस परम पुरूष से मिलन ही तंत्र का उद्देश्य है.
शाक्ताचार्य ईशान ने बताया कि तंत्र कहता है कि ब्रह्मांड में जो भी क्रियाए है वह हमारे शरीर में विद्यमान है आवश्यकता उन्हें जानने की है. हम उन्हें तंत्र साधनाओं के माध्यम से आसानी से जान सकते हैं.
तंत्र शास्त्र हमारे ऋषि मुनियों द्वारा खोजी गई वह विधा है जिसमें लोक कल्याण,जन कल्याण के साथ -साथ जीवन और मरण रूपी महान दुखों से छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है.
साधक ईशान ने बताया कि तंत्र विद्या के माध्यम से व्यक्ति अपनी आत्मशक्ति का विकास करके कई तरह की शक्तियों से संपन्न हो सकता है. तंत्र के प्रथम उपदेशक भगवान महादेव और श्रवण कर्ता स्वयं महादेवी पराम्बा थी. उसके बाद भगवान दत्तात्रेय हुए हैं. तंत्र क्षेत्र में 84 सिद्ध, योगी, और नाथ परंपरा का प्रचलन रहा है,अन्य कई साधक रहे जिन्होंने तंत्र को सिद्धि एवं मोक्ष प्राप्त करने के नए नए मार्ग खोजे.
तंत्र साधना शुद्ध वैज्ञानिक है जिसमें यंत्रों के स्थान पर मानव अंतराल में रहने वाली विद्युत शक्ति को कुछ ऐसी विशेष साधना से संपन्न बनाया जाता है जिससे प्रकृति से सूक्ष्म परमाणु उसी स्थिति में परिणित हो जाते हैं जिसमें कि मनुष्य चाहता है.
पदार्थों की रचना, परिवर्तन और विनाश का बड़ा भारी काम बिना किन्हीं यंत्रों की सहायता के तंत्र द्वारा हो सकता है. विज्ञान के इस तंत्र भाग को ‘सावित्री विज्ञान’ तंत्र-साधना, वाममार्ग आदि नामों से पुकारते हैं. तंत्र-शास्त्र में जो पंचमकार की साधना बतलाई गई है, उसमें मुद्रा साधना बड़े महत्व का और श्रेष्ठ है. मुद्रा में आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि योग की सभी क्रियाओं का समावेश होता है.
साधक ईशान ने बताया कुछ कथित साधको ने तंत्र को इन्ही पंचमकारो के नाम पर बदनाम कर रखा है .जैसे मदिरा के नाम पर शराब का सेवन मांस खाना आदि जबकि तंत्र शास्त्र कहता है कि शराब एक उच्च कोटि का नशा है उसी प्रकार साधनाओं में उस परमपुरुष का नाम जपते जपते ही इतना नशा हो जाए कि स्वयं की सुधि ही न रह जाए. मांस शरीर को पुष्ट करता है और तंत्र में वह पुष्टि गुरू मंत्र के जप द्वारा प्राप्त होती है न कि किसी जानवर के मांस खाने से और कुछ मैथुन के नाम पर व्यभिचारी भी है जबकि तंत्र में इडा और पिंगला नाड़ी के समान मिलन की क्रिया के बाद जो स्खलन आनंद में परिवर्तित हो वही संभोग है.
यही तंत्र का स्वरूप है जो आपको आपका आत्मसाक्षात्कार कराने में प्रमुख हैं. इस अवसर पर कमेटी के प्रबन्धक दीपक सोनी दाऊ जी, अध्यक्ष राहुल रॉय, कोषाध्यक्ष विपिन विश्वकर्मा, अंशू यज्ञसेनी, उदित रस्तोगी, विकास यज्ञसेनी, मुदित त्रेहन, आयुष सिंह, मोहित सोनी- रवि गुप्त आदि उपस्थित रहे.