रांची: मोहर्रम का चांद देखते ही शिया मुसलमानों के घरों में या हुसैन की सदा गूंजने लगी मोहर्रम के अवसर पर ऑनलाइन मजलिस जिक्रे शहादत इमामे हुसैन को संबोधित करते हुए मौलाना सैयद तहजीब उल हसन रिजवी इमाम खती मस्जिद ए जाफरी आने अपने विचार रखते हुए कहा के मोहर्रम किसी एक धर्म या मजहब वालों का नहीं बल का इंसानियत के मसीहा इमामे हुसैन की याद मनाने को मोहर्रम कहा जाता है यह वह महीना है जिसमें रहती दुनिया तक इंसानियत को शर्मसार होने से नवासे रसूल ने हमेशा हमेशा के लिए बचा लिया इमामे हुसैन ने अपनी जान मजहब को बचाने की खातिर नहीं बल का इंसानियत को बचाने की खातिर अपनी शहादत दी है आज के करो ना बाबा के दौर में जिक्रे हुसैन हर जगह सोशल डिस्टेंस के साथ किया जा रहा है ता के इंसानियत की हिफाजत भी हो जाए और यादें हुसैन से हमारा घर हमारा दिल हमारा समाज इससे वंचित न रहने पाए रांची से 10 दिनों तक मजलिस ए हुसैन का सीधा प्रसारण यूट्यूब चैनल के द्वारा किया जाएगा जो घरों में बैठकर लोग इमामे हुसैन के दिए गए संदेश से अपने जीवन में सुधार पैदा करेंगे मौलाना ने कहा कि रांची का मुहर्रम इतिहासिक हुआ करता था जिसमें हर बिरादरी के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे आज हमें जुलूस की शक्ल में नहीं इंसानियत के मुहाफिज के शक्ल में हमें जमाने के सामने आना है इसे मजलिस का आयोजन स्वर्गीय सैयद यावर हुसैन के पुत्रों द्वारा एवं हाजी अजहर हुसैन के पुत्रों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया इस कार्यक्रम का आयोजन अंजुमन जफरिया रांची के द्वारा किया जाता है नोहा खानी हसन इमाम हसनैन रांची यावर हुसैन द्वारा की गई.