आज का पंचांग, आपका दिन शुभ (मंगलमय) हो
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- कलियुगाब्द….5122
- विक्रम संवत्….2077
- शक संवत्…….1942
- रवि……दक्षिणायन
- मास…….भाद्रपद
- पक्ष………..शुक्ल
- तिथी……….षष्ठी
दोप 02.34 पर्यंत पश्चात सप्तमी
- सूर्योदय..प्रातः 06.07.15 पर
- सूर्यास्त..संध्या 06.51.52 पर
- सूर्य राशि………..सिंह
- चन्द्र राशि……….तुला
- गुरु राशि…………धनु
- नक्षत्र………स्वाति
दोप 03.18 पर्यंत पश्चात विशाखा
- योग………….ब्रह्मा
रात्रि 12.23 पर्यंत पश्चात इंद्र
- करण………..तैतिल
दोप 02.34 पर्यंत पश्चात गरज
- ऋतु……………वर्षा
- दिन………….सोमवार
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★★ आंग्ल मतानुसार :-
24 अगस्त सन 2020 ईस्वी .
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★★ तिथि विशेष :-
◆◆ हल छठ :-
◆ हल छठ पुत्रवती माताओं द्वारा भाद्रपद शुक्ल षष्ठी को किये जाने वाला एक विशेष व्रत है जिसमे महिलाएं हल का हला कुछ नहीं प्राप्त करती है. पुत्र की लम्बी उम्र की कामना से यह व्रत किया जाता है.इस व्रत में हल की पूजा की जाती है और यदि हल उपलब्ध नहीं हो तो लकड़ी के पाटे पर चन्दन से हल बना कर उसकी पूजा भी की जा सकती है. उत्तर भारत में हल छठ का व्रत भगवान बलराम के प्राकट्य दिवस भाद्रपद कृष्ण षष्ठी पर किया जाता है. व्रती महिलाओं को व्रत कर हल छठ की कथा भी सुननी चाहिए.
◆◆ हल छठ की कथा :-
एक नगर में दो स्त्रियां रहती थीं. दोनों एक ही परिवार की थीं और रिश्ते में देवरानी-जेठानी लगती थीं. देवरानी का नाम सलोनी था जो बड़ी ही नेक, सदाचारिणी तथा दयालु थी. जेठानी का नाम तारा था, वह स्वभाव से बड़ी ही दुष्ट थी.
एक बार दोनों ने हल छठ का व्रत किया. विधिवत पूजन इत्यादि के बाद शाम को दोनों भोजन के लिए थालियां परोसकर ठंडी होने के लिए रखकर बाहर जा बैठीं. उस दिन सलोनी ने खीर तथा तारा ने महेरी बनाई थी. अचानक दो कुत्ते उनके घर में घुसे और भोजन खाने लगे.
अंदर से ‘चप-चप’ की आवाज आई तो दोनों अपने-अपने कक्ष के भीतर जाकर देखने लगीं. सलोनी ने कुत्ते को खीर खाते देखा तो कुछ नहीं बोली तथा बर्तन में बची हुई बाकी खीर भी उसके आगे डाल दी. लेकिन तारा थाली में मुंह मारते कुत्ते को देखते ही आग-बबूला हो गई. उसने कमरे का द्वार बंद किया और फिर डंडा लेकर कुत्ते को इतना मारा कि उसकी कमर ही तोड़ डाली. कुत्ता अधमरा होकर जैसे-तैसे जान बचाकर वहां से भागा.
दोनों कुत्ते जब बाहर मिले तो एक-दूसरे का हाल-चाल पूछने लगे. जो कुत्ता सलोनी के यहां गया था, बोला- ‘मैं जिसके कक्ष में गया था, वह स्त्री तो बड़ी भली है. मुझे खीर खाते देखकर भी उसने कुछ नहीं कहा, बल्कि बर्तन में खीर खत्म हो जाने के बाद उसने उसमें और खीर डाल दी ताकि मैं भरपेट खा सकूं. उसने तो मेरी आत्मा ऐसी तृप्त की कि मैं उसे बार-बार आशीर्वाद दे रहा हूं. मेरी तो ईश्वर से यही कामना है कि मरने के बाद मैं उसी का पुत्र बनूं और जीवनभर उसकी सेवा करके इस ऋण को चुकाता रहूं. जिस प्रकार उसने मेरी आत्मा को तृप्त किया है, उसी प्रकार मैं उसकी आत्मा को तृप्त और प्रसन्न करता रहूं. अब तुम बताओ, तुम्हारे साथ क्या बीती? लगता है, तुम्हारी तो वहां खूब पिटाई हुई है.’
दूसरा कुत्ता बड़े ही दुःखी स्वर में बोला- ‘तुम्हारा अनुमान ठीक ही है भाई. आज से पहले मेरी ऐसी दुर्गति कभी नहीं हुई थी. पहले तो थाली में मुंह मारते ही सारा जबड़ा हिल गया. फिर भी भूख से परेशान होकर मैंने दो-चार कौर सटके ही थे कि वह दुष्ट आ गई और कमरा बंद करके डंडे से उसने मुझे इतना मारा कि मेरी कमर ही तोड़ डाली. मैं तो ईश्वर से यही निवेदन करता हूं कि अगले जन्म में मैं उसका पुत्र बनकर उससे बदला चुकाऊं. जैसे उसने मार-मारकर मेरी कमर तोड़ी है, वैसे ही भीतरी मार से मैं भी उसका हृदय और कमर तोड़ डालूं.’
कहते हैं कि बेजुबान की बद्दुआ बहुत बुरी होती है. इसे दैवयोग ही कहा जाएगा कि दूसरा कुत्ता शीघ्र ही मर गया और मरकर उसने तारा के घर में ही पुत्र रूप में जन्म लिया. पुत्र रत्न पाकर तारा बहुत खुश हुई. पुत्र को लेकर उसने अपने मन में बड़े-बड़े मंसूबे बांध लिए.
मगर दूसरे दिन ही जब घर-घर में हल षष्ठी का पूजन हो रहा था, वह लड़का मर गया. तारा की तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई. वह दहाड़े मार-मारकर रोने लगी. मगर किया क्या जा सकता था? जैसे-तैसे उसने अपने सीने पर सब्र का पत्थर रख लिया. फिर तो हर वर्ष उसके लड़का होता और हल षष्ठी के दिन मर जाता. जब तीन-चार बार ऐसा हुआ तो तारा को इस पर कुछ संदेह हुआ कि आखिर मेरा लड़का हल षष्ठी को ही क्यों मरता है?
फिर एक रात सपने में उसे वही कुत्ता दिखाई दिया. उसने कहा- ‘मैं ही बार-बार तेरा पुत्र होकर मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूं. तूने मेरे साथ जो व्यवहार किया था, मैं उसी का बदला चुका रहा हूं.’
तारा बहुत दुःखी हुई और उसने अपने किए का प्रायश्चित करने का उपाय पूछा. तब उस कुत्ते ने बताया- ‘अब से हल छठ के व्रत में हल से जुता हुआ अन्न तथा गाय का दूध-दही न खाना. होली की भुनी हुई बाल तथा होली की धूल आदि हलछठ-पूजा में चढ़ाना. तब कहीं मैं तेरे घर में आकर जीवित रहूंगा. पूजा के समय यदि तारक गण छिटकें तो तू समझना कि अब मैं यहां जीवित रहूंगा.
तारा ने वैसा ही किया और इस हल षष्ठी के व्रत के प्रभाव से उसकी संतान जीने लगी. तभी से संतान कामना और सुख-सौभाग्य के लिए यह व्रत किया जाता है.
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★★ अभिजीत मुहूर्त :-
प्रातः 12.03 से 12.56 तक .
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★★ राहुकाल :-
प्रात: 07.44 से 09.19 तक .
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★★ दिशाशूल :-
पूर्व दिशा- यदि आवश्यक हो तो दर्पण देखकर यात्रा प्रारंभ करें .
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★ शुभ अंक…………6
★ शुभ रंग………..सफ़ेद
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★★ चौघडिया :-
प्रात: 06.09 से 07.44 तक अमृत
प्रात: 09.18 से 10.53 तक शुभ
दोप. 02.02 से 03.37 तक चंचल
अप. 03.37 से 05.11 तक लाभ
सायं 05.11 से 06.46 तक अमृत
सायं 06.46 से 08.11 तक चंचल .
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★★ आज का मंत्र :-
.. ॐ गजवक्त्राय नम: ..
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★★ सुभाषितानि :-
वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्वित्तमायाति याति च .
अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः ॥
◆ अर्थात :- चारित्र्य का रक्षण करना चाहिए . धन तो आता है और जाता है . वित्त से क्षीण होनेवाला क्षीण नहीं है, पर शील से क्षीण होनेवाला नष्ट होता है .
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★★ आरोग्यं :-
◆◆ पिप्पली के विभिन्न औषधीय गुण :-
◆ 01 – पिप्पली को पानी में पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है.
◆ 02 – पिप्पली और वच चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर 3 ग्राम की मात्रा में नियमित रूप से दो बार दूध या गर्म पानी के साथ सेवन करने से आधासीसी का दर्द ठीक होता है.
◆ 03 – पिप्पली के 1-2ग्राम चूर्ण में सेंधानमक,हल्दी और सरसों का तेल मिलाकर दांत पर लगाने से दांत का दर्द ठीक होता है.
◆ 04 – पिप्पली,पीपल मूल,काली मिर्च और सौंठ के समभाग चूर्ण को 2 ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ चाटने से जुकाम में लाभ होता है.
◆ 05 – पिप्पली चूर्ण में शहद मिलाकर प्रातः सेवन करने से,कोलेस्ट्रोल की मात्रा नियमित होती है तथा हृदय रोगों में लाभ होता है .