दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि बिल्डरों को अपार्टमेंट खरीदारों के समझौते (एबीए) में उल्लेखित मासिक प्रति वर्ग फुट पेनल्टी के अलावा, इसकी डिलीवरी में देरी की अवधि के लिए फ्लैट की कीमत पर खरीदारों को छह फीसदी वार्षिक ब्याज का भुगतान करना होगा.
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और के एम जोसेफ की पीठ ने डीएलएफ सदर्न होम्स प्राइवेट लिमिटेड (जिसे अब बेगुर ओएमआर होम्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से जाना जाता है) और एनाबेल बिल्डर्स एंड डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड को उन खरीदारों को फ्लैटों की लागत पर छह फीसदी प्रति वर्ष का भुगतान करने को कहा, जिन्हें दो से चार साल की देरी के बाद कब्जा दिया गया.
पीठ ने कहा कि यह जुर्माना प्रति माह पांच रुपये प्रति वर्ग फुट जुर्माने से अलग होगा, जो डेवलेपर ने एबीए के तहत डिलीवरी में देरी (जो 1,500 वर्ग फुट के फ्लैट के लिए 7,500 रुपये प्रति माह तय होता है) के लिए भुगतान करने पर सहमति व्यक्त की थी.
पीठ ने कहा, दोनों डेवलेपर्स मुआवजे के रुप में प्रत्येक अपीलकर्ता (फ्लैट खरीददारों) को प्रति वर्ष छह फीसदी साधारण ब्याज दर से गणना की गई राशि का भुगतान करेंगे. उपरोक्त राशि उन राशियों के अतिरिक्त होगी जिसका भुगतान डेवलपर द्वारा फ्लैट को देरी होने पर एबीए के तहत प्रति माह पांच रुपये प्रति वर्ग फुट की दर से देना होता है. पीठ ने कहा कि जब डेवलपर्स घर खरीदारों को एक सपना बेचते हैं, तो उन्हें उस सपने को साकार करने के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.
विंग कमांडर आरिफुर रहमान खान और अलेया सुल्ताना के नेतृत्व में 339 घर खरीदारों ने वकील प्रशांत भूषण, कर्नल आर बालासुब्रमण्यम और बिस्वजीत भट्टाचार्य के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपने मामले का तर्क दिया और बताया कि कैसे एकतरफा अपार्टमेंट खरीदारों के समझौते ग्राहकों को बिल्डरों के आगे बेबस कर देते हैं.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा, फ्लैट खरीदारों को डेवलपर की चूक के परिणामस्वरूप पीड़ा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. फ्लैट खरीदार फ्लैट के आधार पर अपने भविष्य के फैसलों को लेते हैं. उन्हें ये तय करना होता है कि वह उसमें रहना चाहता है या उसके माध्यम से व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं.