रांची: जहां पहले से ही बच्चों में मोबाइल फोन के दुष्परिणाम और खतरनाक नतीजों ने मां-बाप और अभिभावकों की परेशानी बढ़ा रखी थी, वहीं एकाएक खासकर उन्हीं को मोबाइल के जरिए शिक्षा परोस देना कोरोना महामारी से जूझ रही दुनिया के लिए एक दूसरे अभिशाप से कम नहीं है.
ऑनलाइन पढ़ाई बच्चों के लिए किस कदर घातक सिद्ध हो रही है इसका अध्ययन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस की ओर से किया गया है. इसमें इंस्टीट्यूट ने रिसर्च किया है कि मोबाइल फोन और लैपटॉप आदि के प्रयोग से बच्चों के दिमाग पर गहरा असर होता है. उन्होंने ऑनलाइन पढ़ाई संबंधी सरकारों को भी अवगत करवा दिया है.
बता दें कि कोरोना वायरस वैश्विक महामारी फैलने के बाद से ही देशभर में ऑनलाइन पढ़ाई पर जोर दिया जाने लगा है. इसके दुष्प्रभाव सामने आने शुरू हो चुके हैं. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ने इस पर अध्ययन करके सरकारों को यह चेताया है कि बच्चों में अगर ऑनलाइन परीक्षाओं का रुझान बढ़ा तो उनके दिमाग पर इसका गहरा असर हो सकता है.
हालांकि इस मामले संबंधी इंस्टीट्यूट पहले ही ऑनलाइन परीक्षा के पक्ष में नहीं है. बता दें के गुरदासपुर जिले में भी इन दिनों बच्चे अपने अभिभावकों का मोबाइल फोन लेकर ऑनलाइन पढ़ाई के बहाने कई घंटों तक मोबाइल फोन के साथ चिपके रहते हैं, जो आंखों के साथ-साथ दिमाग पर भी कई प्रकार का स्ट्रेस दे रहा है.
गुरदासपुर सिविल अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर जीएन सिंह के मुताबिक अधिक मोबाइल फोन के प्रयोग से आंखों में ड्राइनेस आती है जबकि लगातार मोबाइल फोन देखने से आंखों की रोशनी पर भी असर होता है.
मान भी लिया जाए कि ऑनलाइन शिक्षा वक्त की जरूरत है तब भी तो यह सबकी पहुंच से बाहर ही है. यानी गरीब और अमीर के फर्क के अलावा पहुंच और गैर पहुंच के बीच का नया फर्क पैदा होगा जिससे भारत में इंटरनेट कनेक्टिविटी के सच और दावों के बीच एक नई जंग शुरू होगी. सवाल अहम और अकेला बस यही कि क्या ऑनलाइन शिक्षा से बिना गुरू के सामने रहे वाकई बच्चे शिक्षित हो पाएंगे और वही सीखेंगे जो सीखने की मंशा हुक्मरान और मां-बाप की है या फिर अनजाने ही किसी गलत और खतरनाक रास्ते पर निकल पड़ेंगे