नई दिल्ली: बैंक अपने ग्राहकों को हमेशा यह सलाह देते हैं कि वे अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड का पिन नंबर या ओटीपी नंबर किसी से शेयर न करें. इससे उनके बैंक खातों से कोई रकम नहीं निकाली जा सकेगी. लेकिन शातिर अपराधियों ने लोगों का पैसा उड़ाने के लिए दूसरा ही तरीका निकाल लिया है, जिसमें वे बिना ओटीपी नंबर जाने ही आर्थिक अपराध को अंजाम दे रहे हैं. इसके लिए वे लोगों की मदद के बहाने किसी तरह एक एप डाउनलोड कराते हैं और उसी के जरिए सारी जानकारी चुराकर धोखाधड़ी को अंजाम देते हैं.
कैसे लोगों को जाल में फंसाते हैं?
विवेक विहार निवासी रमेश राय (42 वर्ष) के पास अचानक एक दिन फोन आया कि उनके पेटीएम अकाउंट का केवाईसी वेरिफिकेशन नहीं हुआ है. फोन करने वाले कॉलर ने उन्हें बताया कि अगर वे केवाईसी वेरिफिकेशन नहीं कराते हैं, तो उनका पेटीएम अकाउंट 24 घंटे में बंद कर दिया जाएगा.
इससे चिंतित होकर रमेश राय ने उसे पेटीएम का कर्मचारी समझते हुए अपना डॉक्यूमेंट लेने और वेरिफिकेशन करने के लिए कहा. लेकिन कॉलर ने बताया कि वह कोरोना काल के कारण उनके पास फिजिकल वेरिफिकेशन के लिए नहीं आ सकता. यह काम उन्हें ऑनलाइन कराना होगा.
फोन कर रहे व्यक्ति ने कहा कि वे अपने मोबाइल पर ‘क्विक सपोर्ट’ एप डाउनलोड कर लें. इसकी आईडी उनसे पूछकर कॉलर ने उनके फोन को स्मार्ट तरीके से हैक कर लिया. इसके बाद कॉलर ने उन्हें अपने पेटीएम अकाउंट में एक रुपये डालने के लिए कहा.
रमेश राय ने फोन पर सुरक्षित रखे गये आईसीआईसीआई बैंक के क्रेडिट कार्ड से एक रुपये का भुगतान अपने पेटीएम अकाउंट में कर दिया. इस लेनदेन के बीच क्विक सपोर्ट से फोन को हैक कर चुके अपराधी ने उनके क्रेडिट कार्ड का पिन नंबर भी देख लिया.
इसके बाद कॉलर ने उन्हें कुछ देर बातों में उलझाए रखा और इसी बीच उनके बैंक खाते और क्रेडिट कार्ड से 9,999 रुपये के दो ट्रांजैक्शन कर 19,998 रुपये निकाल लिए. मामले की एफआईआर करा दी गई है.
कैसे बचें
साइबर एक्सपर्ट पंकज जायसवाल ने बताया कि टीम व्यूवर या क्विक सपोर्ट जैसी एप से कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे के सिस्टम पर पूरा अधिकार कर लेता है. इसके जरिए दूर बैठा व्यक्ति भी किसी कंप्यूटर की खामी को दूर कर सकते हैं. लेकिन अब साइबर अपराधी इनका दुरूपयोग दूसरों के सिस्टम से जानकारी चुराकर उन्हें लूटने के लिए करने लगे हैं.
उन्होंने बताया कि ये एप डाउनलोड करते समय भी ग्राहकों को चेतावनी देते हैं कि इसके आईडी की जानकारी वे केवल उसे ही दें, जिसे वे व्यक्तिगत तौर पर जानते हों और पूरा विश्वास करते हों. एप की आईडी की जानकारी किसी अन्य व्यक्ति से साझा करने से व्यक्तिगत जानकारी चोरी की जा सकती है.
इसलिए ऐसे एप को बिना वजह डाउनलोड भी न करें और सिस्टम की किसी खराबी को भी केवल उन्हीं तकनीकी जानकारों से ठीक कराएं जिन्हें आप व्यक्तिगत तौर पर जानते और विश्वास करते हों.