रांची: आर्थिक मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला ने कहा है कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, एनएसओ चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही अप्रैल-जून अवधि के लिए सकल घरेलू उत्पादन का आधिकारिक आंकड़ा 31 अगस्त को जारी करेगा, जिस पर अर्थ जगत की निगाहें लगी हुई हैं. ये वो तिमाही है, जिसमें कोरोना वायरस जनित लॉकडाउन की कठोरतम बंदिशों को देश ने झेला है. पहली तिमाही में 20 प्रतिशत के आसपास की निगेटिव ग्रोथ देखने को मिलने की संभावना है. उन्होंने कहा कि खपत मांग और उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार को ज्यादा खर्च करने की जरूरत है, क्योंकि निजी निवेश अभी कोशों दूर है. आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट ने अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए बड़े निवेश की जरूरत को रेखांकित किया है.
सूर्यकांत शुक्ला ने कहा कि इस तिमाही के दौरान औद्योगिक उत्पादन, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर जिनकी गतिविधियां के आंकड़े सार्वजनिक हुए हैं, उनसे पता चला है कि सबसे अधिक गिरावट मैन्युफैक्चरिंग में 40.7प्रतिशत, फिर औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में 35.9 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र में 35 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी है. 717 सूचीबद्ध निर्माण कंपनियों के राजस्व और मुनाफे में रिकॉर्ड कमी आयी है. इसी अवधि में सर्विस सेक्टर की 253 कंपनियों के मुनाफे में भी गिरावट दर्ज हुई है.
कुछ सेक्टरों में यथा आईटी, फार्मास्यूटिकल्स, केमिकल्स, बैंकिंग और कृषि निर्यात में वृद्धि भी देखने को मिली है. कॉरपोरेट जगत के मुनाफे के जो परिणाम आये हैं वे उम्मीदों से ज्यादा बेहतर हैं.
जी-20 देशों में चीन को छोड़कर सभी देशों की अर्थव्यवस्था में संकुचन आया है. अमेरिका की जीडीपी में अप्रैल-जून तिमाही में सालाना आधार पर 32.9 प्रतिशत और जापान की जीडीपी में 27.8 प्रतिशत का संकुचन रिकॉर्ड किया गया है.
देश की जीडीपी में पहली तिही में 16.5 प्रतिशत के संकुचलन का अनुमान एसबीआई ईकोरैप रिपोर्ट में लगाया गया है. वहीं देश के कई अर्थवेत्ताओं ने 13.6 प्रतिशत से लेकर 25.5 प्रतिशत तक की गिरावट का अनुमान व्यक्त किया है. वित्त क्षेत्र में काम करने वाली इक्रा की रिपोर्ट में 25 प्रतिशत गिरावट की आशंका व्यक्त की गयी है. पूर्व प्रमुख सांख्यकीविद प्रनोब सेन के अनुसान तिमाही जीडीपी मुख्यतः कॉरपोरेट परिणामों पर निर्भर करती है और इनका अनुमान 20 प्रतिशत गिरावट का है.
अर्थव्यवस्था में संकुचलन को देश पहले भी चार बार देख चुका है, परंतु कोरोना एक असाधारण आपदा है और इसमें असाधारण गिरावट भी स्वाभाविक ही है. आश्चर्य सिर्फ इस बात का है कि इकॉनमी में इतनी बड़ी गिरावट रोकने के लिए जिस आकार-प्रकार के उपायों की जरूरत होती है, वो दिखलायी नहीं पड़ रहे है.