रांची: वनों से घिरे रांची के सुदूरवर्ती जनजातीय बहुल गांव दरमीटोली मे बड़े पैमाने पर विशुद्ध शहद का उत्पादन होता है. इसका श्रेय जाता है यहां की एक महिला बिरसो उरांव को, जिन्होंने मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है.
गांव के लोग प्यार से इन्हें मधुमक्खी वाली चाची भी कहते हैं. मधुमक्खी पालन का इनका तरीका बिलकुल ही अनोखा और अजीबोगरीब है. यह खुले मे नहीं, बल्कि घर के आंगन में ही मधुमक्खी पालन करती हैं.
बिरसो मधुमक्खी पालन की दूसरी खूबियों से भी भली प्रकार परिचित हैं. इन्हें खूब पता है कि मधुमक्खियों के पर-परागण से इनके फसलों को अनेक जादुई लाभ पहुंचते हैं.
गांव में ब्याह कर आने के बाद पिछले करीब पचास वर्षों से बिरसो ना सिर्फ स्वयं मधुमक्खी पालन करती आ रही हैं, बल्कि उन्होंने गांव के दर्जनों परिवारों को प्रेरित और प्रशिक्षित कर इस व्यवसाय से जोड़ा भी है. अब तो इनकी शहद ने आसपास के कई गांवों में अपनी मिठास घोल दी है.
शहद को अमृत का दर्जा प्राप्त है. शहद और मधुमक्खियों के फायदे से पूरी दुनिया वाकिफ है. यही कारण है कि इस दिशा में और जागरुकता फैलाने के वास्ते हर वर्ष 20 मई को विश्व मधुमक्खी दिवस मनाया जाता है. वहीं, इन बड़ी-बड़ी बातों से अनजान बिरसो का यह मूक अभियान अपना अर्द्ध शतक पूरा करने को है.