नई दिल्ली: लद्दाख के दक्षिणी पैगांग त्सो क्षेत्र में स्पांगुर गैप और स्पांगुर लेक के पास भारत और चीन को लेकर बिल्कुल युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं. कालॉप, हेलमेट टॉप पर तनाव चरण की स्थिति में है. रोजी लॉ, चुशुल, फिंगर 4 के पास और डेपसांग में स्थिति बेहद तनावपूर्ण बताई जा रही है. शनिवार को भी दोनों देशों के ब्रिगेडियर स्तर के सैन्य अधिकारियों ने साढ़े तीन घंटे से ज्यादा समय तक तनाव घटाने के लिए चर्चा की लेकिन बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकल सका.
शूटिंग रेंज में हैं सैनिक, चीन ने भी भेजा विशेष सैन्य दस्ता
करीब छह स्थानों पर दोनों देशों के सैनिक 200-900 मीटर की दूरी पर (शूटिंग रेंज में) आ गए हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार क्षेत्र से भारतीय सैनिकों को हटाने के लिए चीन ने अपना विशेष दस्ता तैनात कर दिया है. यह दस्ता शारीरिक युद्ध, मल्ल युद्ध, पर्वतारोही, मुक्केबाजी में माहिर मिले जुले सैनिक हैं. इन्हें वहां का मिलिशिया दस्ता कहा जाता है और युद्धकाल जैसी स्थिति में चीनी फौज की मदद के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
सैन्य सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार स्थिति बेहद तनाव पूर्ण हो रही है. पहाड़ी की चोटी पर भारतीय सैनिक हैं और नीचे ठीक सामने उन्हें चीन की सेना घेर कर खड़ी है. भारत ने भी चीन की तैयारी को देखकर सामानांतर में किसी भी चुनौती से निपटने की तैयारी कर रखी है.
क्षेत्र खाली कराने के लिए आक्रामक हो रहा है चीन
स्पांगुर लेक और स्पांगुर गैप क्षेत्र को भारतीय सैनिकों को तत्काल खाली कर देने का चीन दबाव बना रहा है. रक्षा मंत्रियों और विदेश मंत्रियों की मॉस्को में बैठक के दौरान यह मुद्दा उठा था. इसके अलावा बिग्रेड स्तर पर हो रही बैठक के दौरान भी चीनी पक्ष पहले इस क्षेत्र को खाली कराने के लिए हॉट टॉक कर रहा है.
जवाब में भारतीय सैनिक ऊंचाई और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थानों पर डटे हुए हैं. दोनों देशों के सैनिकों में आस-पास के महत्वपूर्ण स्थानों पर काबिज होने की होड़ जैसी स्थिति है.
क्या विदेश मंत्रियों की वार्ता का कोई असर हुआ?
प्राप्त जानकारी के अनुससार मॉस्को में विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी की वार्ता का लद्दाख क्षेत्र में तनाव पर कोई असर नहीं दिखाई दे रहा है. पूर्व राजनयिकों का कहना है कि विदेश मंत्रियों की वार्ता में तनाव घटने की वार्ता और मंशा जाहिर की गई है, लेकिन इसमें तनाव घटने के मुख्य कारक जैसा कुछ भी नहीं है.
इस संयुक्त वक्तव्य में कहीं ऐसा नहीं है कि दोनों देशों की सैन्य वापसी पर सहमति बन गई है या फिर इसके मैकेनिज्म की कोई रुपरेखा पर सहमति बन गई है. इसमें केवल दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक प्रयास जारी रहने, सैन्य कमांडरों की विभिन्न स्तरों पर मीटिंग के जारी रहने, वर्किंग मैकेनिज्म के काम करते रहने, विशेष प्रतिनिधि स्तर की संवाद प्रक्रिया जारी रहने का ही जिक्र है. एक पूर्व विदेश सचिव का कहना है कि इससे कोई बदलाव हो जाने की उन्हें भी उम्मीद नहीं दिखाई पड़ रही है.