रांची: श्राद्ध या पितृ पक्ष के अंत के बाद, 16 दिन की अवधि जब हिंदू अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं, तो महालया या शुभ महालया मनाया जाता है. माना जाता है कि महालया एक शुभ अवसर है जब देवी दुर्गा अपने बच्चों के साथ कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर अपने मायके में अवतरित हुई हैं.
यह हर बंगाली के बीच एक प्रसिद्ध दिन है, जो धार्मिक रूप से सुबह 4 बजे उठता है. बिरेंद्र कृष्ण भद्रा द्वारा महिषासुर मर्दिनी नामक मंत्रों के रेडियो पाठ को सुनने के लिए. मंत्रों को देवी का आह्वान करने के लिए माना जाता है और धार्मिक भजनों को हिंदू धार्मिक ग्रंथ देवी महात्म्यम या “देवी की महिमा” से लिया जाता है. जागो तुमी जागो (अर्थ, जागो, हे देवी! ’) सबसे आम भजनों में से एक है. इस अवसर पर एक और लोकप्रिय त्योहार की शुरुआत होती है जिसे दुर्गा पूजा कहा जाता है.
महल महिषासुर पर देवी दुर्गा की जीत का सात दिवसीय उत्सव है. कोलकाता में कुम्हारों की सुरम्य गलियां उन युवाओं से रोमांचित हैं जो दुर्गा की आंखों को चित्रित करने वाले कुम्हारों का अवलोकन करते हैं. एक धार्मिक प्रथा जिसे ‘तर्पण’ कहा जाता है, अपने पूर्वजों की दिवंगत आत्माओं की प्रार्थना करने के लिए की जाती है.
ब्राह्मणों को ‘भोग’ दिया जाता है और गरीबों को भोजन सामग्री दी जाती है. ‘तर्पण’ की रस्म निभाने के लिए उपासकों द्वारा नदियों के किनारों पर भी कब्जा कर लिया जाता है. नवरात्रि और दुर्गा पूजा के उत्सव की शुरुआत महालया से होती है. दिन के साथ जुड़े आध्यात्मिक अर्थों के अलावा, यह बुराई पर सच्चाई और साहस का जश्न मनाने का एक अनुस्मारक भी है.
‘जागो..तुमि जागो…जागो मृन्मयी जागो चिन्मयी, तुमि जागो मां…ऐशो मां आमार घरो’ महालया के दिन रेडियो पर यह बोधन तथा आगमनी संगीत सुनकर दुर्गा पूजा आने का एहसास हो जाता है. बंगाली समुदाय इस दिन से ही मां दुर्गा का धरती पर आगमन मानता है. दूसरे दिन से नवरात्र की पूजा शुरू हो जाती है. 5 दिनों बाद षष्ठी के दिन बेलवरण से दुर्गा मां घरों में विराजमान हो जाती हैं. लेकिन, इस बार महालया के 35 दिनों बाद बेलवरण होगा और मां घरों में पधारेंगी.
पितृपक्ष श्राद्ध 17 सितंबर को अमावस्या के साथ समाप्त होगा, नियम के अनुसार इसी दिन महालया होगा. एक सामान्य वर्ष में, ‘महालया’ और ‘महाषष्ठी’ के बीच का अंतर छह दिनों का होता है. इस वर्ष महाषष्ठी 22 अक्टूबर को है. 23 को महासप्तमी, 24 को महाअष्टमी, 25 को महानवमी और 26 अक्टूबर को विजया दशमी मनाई जाएगी. वहीं नवरात्र की कलश स्थापना 17 अक्टूबर को होगी.
मलमास… एक महीने बाद 17 अक्टूबर को होगी नवरात्र की कलश स्थापना, 26 अक्टूबर को विजयादशमी
आशंका… मां के आवाहन के बाद भी उनकी स्थापना नहीं होने से रोग, शोक और बढ़ सकती हैं महामारियां
मान्यता… हर साल महालया के छठे दिन बेलवरण पूजा के साथ घरों में होता है मां दुर्गा का प्रवेश
एक महीना पूजा बढ़ने से उत्साह कम
दुर्गा बाटी के सह-सचिव श्वेतांको सेन कहते हैं कि पहली बार ऐसा हो रहा है कि महालया के महीने भर बाद दुर्गा पूजा की शुरुआत होगी. महालया के बाद ही मां दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप दे दिया जाता है. पर मलमास के कारण एक महीने दुर्गा पूजा बढ़ने से पूजा का उत्साह कम हो गया है. आरयू के बांग्ला विभाग के एचओडी डॉ. एनके बेरा कहते हैं कि मां दुर्गा के धरती पर आने के बाद भी उनकी स्थापना नहीं होने से रोग, शोक, महामारी की आशंका बढ़ गई है.
महालया में न तो मेहमान आएंगे, न ही स्वादिष्ट व्यंजन बनेंगे…
बांग्ला समाज की लालपुर निवासी रिंकू बनर्जी कहती हैं कि दुर्गा पूजा हम बंगालियों के लिए धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक त्योहार भी है. लेकिन पहली बार ऐसा हो रहा है कि महालया के बाद एक महीना कुछ नहीं होगा. हमारे यहां महालया के दिन घर की साफ-सफाई के बाद विधिपूर्वक पूजा शुरू हो जाती है. नए कपड़े खरीदना, घर को सजाना, लोगों से मिलना-जुलना, अच्छे-अच्छे स्वादिष्ट पकवान भी बनने शुरू हो जाते हैं. बाहर रहने वाले घर के सदस्य भी महालया के दिन ही आ जाते हैं. इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा, सब फीका लग रहा है.
इस बार मूर्ति भी देर से बननी शुरू होगी
दुर्गा पूजा कराने वाले पुजारी दिलीप चटर्जी कहते हैं कि पितृपक्ष का समापन और देवी पक्ष के आगमन का काल महालया है. साल भर हम इस दिन की प्रतीक्षा करते हैं. महालया के दिन ही लगभग बन चुकी मां दुर्गा की मूर्ति की आंखें मूर्तिकार तैयार करते हैं, इस बार मूर्ति भी देर से ही बननी शुरू होगी.
रांची में इस बार की दुर्गा पूजा में सिर्फ परंपराओं का निवर्हन होगा. मां दुर्गा की प्रतिमाएं 4 फीट की होंगी. भव्य पंडाल नहीं बनेंगे, बल्कि छोटे मंडपों में मां की प्रतिमा स्थापित की जाएगी. मेला नहीं लगेगा. भोग का वितरण भी नहीं होगा. कोरोना को देखते हुए ज्यादातर पूजा समितियों ने यह निर्णय लिया है.
उनका कहना है कि भव्य पंडाल और बड़ी प्रतिमा बनाने में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो पाएगा. हालांकि समितियां अभी भी राज्य सरकार की गाइडलाइन का इंतजार कर रही हैं. इसके कारण उनमें दुर्गोत्सव को लेकर असमंजस है. समितियों ने बताया कि अभी तक सरकार की गाइडलाइन है कि दूसरे राज्यों से यहां आने वाले लोगों को 14 दिन क्वारंटाइन में रहना होगा. जबकि, यहां पंडालों के कारीगर और मूर्तिकार बंगाल से आते हैं. ऐसे में रांची आने पर उनका क्वारंटाइन रहना संभव नहीं है.