रांची: झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता आलोक कुमार दूबे, लाल किशोरनाथ शाहदेव, डॉ. राजेश गुप्ता छोटू एवं अमूल्य नीरज खलखो ने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा सहायक पुलिसकर्मियों की सीधी नियुक्ति के संबंध में उठाये गये सवाल पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सारी व्यवस्था को चौपट और तहस-नहस करने के बाद अब वे बिना सिर-पैर के लोगों को सलाह देते फिर रहे है.
प्रदेश प्रवक्ताओं ने कहा कि यह सभी को पता है कि पुलिस की ट्रेनिंग में किन कठिन अभ्यास और मापदंडों का पालन करना पड़ता है, रघुवर दास को बताना चाहिए कि सहायक पुलिसकर्मियों को किस तरह की ट्रेनिंग दी गयी और अपने कार्यकाल में ही इन्हें स्थायी क्यों नहीं कर दिया गया.
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार युवाओं को रोजगार देने और सभी सरकारी कार्यालयों एवं विभागों में रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया जेपीएससी और जेएसएसी के माध्यम से शुरू करने जा रही है, लेकिन पिछली सरकार की तरह रोजगार के नाम पर सिर्फ युवाओं छलने का काम कतई नहीं कर सकती है.
उन्होंने कहा कि मोमेंटम झारखंड और स्वामी विवेकानंद की जयंती पर एक लाख युवाओं कोनौकरी दिलाने के नाम पर किस तरह का खेल हुआ, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है, इसलिए कांग्रेस-जेएमएम व आरजेडी गठबंधन सरकार ऐसा कोई भी काम नहीं करेगी, जिससे युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो जाए. राज्य सरकार की ओर से यह कोशिश की जा रही है कि हर युवा को रोजगार और स्वरोजगार मिले.
प्रदेश प्रवक्ता आलोक दूबे, किशोर शाहदेव, राजेश गुप्ता, अमूल्य खलखो ने राज्य सरकार द्वारा निजी लैब में आरटीपीसीआर जांच के लिए अधिकतम दर को 2400 से घटाकर 1500 रुपये किये जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि यह एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन इसके बावजूद चंद निजी अस्पताल आपदा की इस घड़ी को भी अवसर में बदलते हुए जिस तरह से अकूत संपत्ति बनाने में जुटे है.
वैसी स्थिति में इन पर कड़ाई जरूरी है, क्योंकि आज स्वास्थ्य सुविधाएं आम लोगों और. गरीबों की पहुंच से दूर होती जा रही है. राज्य सरकार की ओर से इस मसले पर जल्द से जल्द कठोर कदम उठाये जाने की जरूरत है, ताकि सभी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिल सके.
प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने कहा है कि कई अस्पताल रोगियों के निधन हो जाने के बाद भी बहानेबाजी कर अस्पताल में रखते हैं और झूठ बोलकर उनका आर्थिक दोहन करते हैं. यह बात बिल्कुल सही है कि झारखंड में डॉक्टर काफी संवेदनशील है और मरीजों के प्रति गंभीर भी रहते हैं, लेकिन निजी अस्पतालों के संचालक आपदा में अवसर तलाश कर मालामाल हो रहे हैं.
निजी अस्पतालों में मजबूरी बस जाने वाले रोगी अपना जमीन जायदाद घर गहना सब बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं, लेकिन फिर भी मरीजों की जान नहीं बचती है, राजधानी में कई ऐसे अस्पताल हैं जिसकी जानकारी संगठन सरकार को उपलब्ध कराएगी जो लगातार आमजनों का दोहन कर रही है.
भाजपा विचारधारा एवं इससे जुड़े कई अस्पतालों के संचालक लगातार आर्थिक दोहन कर रहे हैं और इनमें डर नाम की कोई चीज नहीं है. इसमें एक है राज अस्पताल जिसके निजी संचालक श्रीमान गंभीर हैं, जहां मरीजों के भर्ती होने के बाद मरीज अपनी जान गवा कर ही वापस लौटते हैं.
सरकार अगर कार्रवाई नहीं करेगी तो आम जनता विवश होकर कानून अपने हाथों में लेने को मजबूर होगी, राज अस्पताल को तुरन्त बन्द कर देना चाहिए, क्योंकि राज अस्पताल में जिंदगी दी नहीं ली जाती है, जो एक गंभीर जांच का विषय है. एक तरफ जब राज्य की सरकार ने राजधानी में निजी अस्पतालों के लिए 18000 प्रत्येक दिन लेने की निर्देश जारी कर दिया है. इसके बावजूद भी निजी अस्पतालों को संतोष नहीं हो रहा है.