चंदन मिश्र (वरिष्ठ पत्रकार),
रांचीः झारखंड उच्च न्यायालय की एक बड़ी पीठ के ताजा फैसले में नियोजन नीति को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया गया. झारखंड उच्च न्यायालय का आदेश है कि राज्य सरकार द्वारा 2016 में लागू नियोजन नीति अल्ट्रा वायरस है. निवास के आधार पर किसी को उसके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.
उच्च न्यायालय के इस आदेश से नियोजन नीति निरस्तहो गई. न्यायालय के फैसले से नियोजन नीति असंवैधानिक होने के साथ ही सूबे में इस नीति के आलोक में भर्ती हजारों शिक्षकों की नौकरी भी चली गई. न्यायालय के आदेश से नियोजन नीति के खारिज होते ही सूबे के 3684 की संख्या में भर्ती हो चुके शिक्षकों की नौकरी निरस्त हो गईं.
13 जिलों में लगभग हजार शिक्षक नियुक्त हो चुके थे. इनके अलावा 14 हजार भर्ती होनेवाले शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया भी प्रभावित होगी. न्यायालय का फैसला आते ही सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच एक बार फिर तीर कमान खींच गए हैं. प्रमुख विपक्षी दल भाजपा का आरोप है कि वर्तमान सरकार ने न्यायालय में उचित दलील पेश नहीं कर पायी. वहीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तत्कालीन सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा है- जैसी करनी वैसी भरनी.
झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र के आखिरी दिन इसे लेकर पक्ष और विपक्ष के बीच जोरदार हंगामा और विरोध प्रदर्शन किया. सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोक-झोंक भी हुई. शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने कहा कि पिछली सरकार ने जो पाप किया है, उसे हमलोग धो रहे हैं. पूर्व की सरकार की नीतियों की वजह से आज लोगों को नुकसान हो रहा है.
आजसू विधायक सुदेश महतो ने कहा कि यह एक गंभीर मसला है और इस पर मुख्यमंत्री को अपनी बात रखनी चाहिए. सरकार के मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने कहा कि न्यायालय का आदेश सर्वोपरि है. विपक्ष मुद्दाविहीन है. पांच सालों तक इनकी सरकार झूठे भाषण और वायदों पर चली. सहायक पुलिस और शिक्षक की बहाली तो हुई पर उसमें गड़बड़ी हुई.
क्या थी पूर्ववर्ती सरकार की नियोजन नीति
झारखंड की पूर्ववर्ती रघुवर दास सरकार ने 2016 में एक नियोजन नीति बनाई थी. इस नीति के तहत अगले दस साल तक राज्य के 13 अनुसूचित जिलों में तीसरे और चौथे श्रेणी के पदों पर होनेवाली नियुक्तियों में स्थानीय लोगों के लिए शत-प्रतिशत आरक्षित करने का प्रावधान किया गया था. नीति की दूसरी अहम पहलु थी कि इसे अगले दस साल तक ही लागू रखने कीबात थी. संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत सूबे के अ्नुसूचित जिलों (शिड्यूल जिलों) में 10 वर्षों के लिए तीसरे और चौथे वर्गीय पदों पर नियुक्ति में स्थानीय लोगों के लिए शत-प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का आदेश जारी कर दिया गया.
झारखंड उच्च न्यायालय ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि राज्य सरकार की नियोज नीति समानता के अधिकार (अनुच्छेद-14), सरकारी नौकरियों में समान अवसर के अधिकार (अनुच्छेद-16) का उल्लंघन है. नीति से मौलिक अधिकार का हनन होता है. राज्य सरकार द्वारा 2016 में लागू नियोजन नीति अल्ट्रा वायरस है. निवास के आधार पर किसी को उसके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.
17572 शिक्षकों की नियुक्तियों पर ग्रहण
उच्च न्यायालय के फैसले से राज्य के आरक्षित 13 जिलों के हाई स्कूलों में 17,572 शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर ग्रहण लग गया है. हाइकोर्ट ने 17,572 शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया के लिए निकाले गये विज्ञापन को खारिज कर दिया है.
पलामू के एक हाई स्कूल की शिक्षक सोनी कुमारी एवं अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एचसी मिश्रा की अध्यक्षता वाली झारखंड हाइकोर्ट की बड़ी बेंच ने यह फैसला सुनाया. याचिकाकर्ता की दलील थी कि राज्य सरकार ने हाई स्कूल शिक्षकों की नियुक्ति में राज्य के 13 जिले को स्थानीय अभ्यर्थियों के लिए आरक्षित कर दिया है, जो संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध है.
जैसी करनी, वैसी भरनी : हेमंत सोरेन
झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा नियोजन नीति खारिज किए जाने पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पिछली सरकार पर ठीकरा फोड़ते हुए कहा है कि जैसी करनी, वैसी भरनी. उन्होंने कहा कि अनुसूचित क्षेत्र में राज्यपाल के हाथों बदलाव करके 13 जिलें में बांटे गए थे. इससे कहीं न कहीं राज्य को दो हिस्से में बांटने की साजिश की गई थी.
मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार न्यायालय के आदेश की समीक्षा करेगी और उसके बाद कोई निर्णय लेगी. मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड उच्च न्यायालय ने पूर्ववर्ती सरकार द्वारा बनायी गई नियमावली को लेकर आदेश दिया है, इससे हजारों लोगों की नियुक्ति प्रक्रिया स्थगित हो गई है. मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछली सरकार में नियोजन नीति के नाम पर गैर आरक्षित जिलों में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार के युवाओं के लिए नौकरी का रास्ता खोल दिया गया था, जिससे राज्य में रहनेवाले सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को काफी नुकसान उठाना पड़ा. सरकार सबका आकलन करेगी.
वर्तमान सरकार नहीं चाहती, स्थानीय युवा नौकरी करें: रघुवर दास
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने नियोजन नीति के निरस्त होने के बाद कहा कि हमारी सरकार ने आदिवासियों मूलवासियों के हित में नियोजन नीति बनाकर स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता देने का फैसला लिया था. लेकिन वर्तमान सरकार ने राजनीतिक दुर्भावना से ग्रसित होकर हमारी सरकार को बदनाम करने के लिए सही तरीके से न्यायालय में अपना पक्ष नहीं रखा.