समीक्षा: झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र
चंदन मिश्र, (वरिष्ठ पत्रकार)
रांची: उम्र-ए-दराज मांग कर लाई थी चार दिन, दो आरजू में कट गए, दो इंतजार में …. झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र कुछ इसी अंदाज में मंगलवार को गुजर गया. 18 सितंबर को शुरू हुआ सत्र, 22 सितंबर को संपन्न हुआ. कोरोना काल में सरकार ने तीन दिनों का मानसून सत्र बुलाया था. कामकाज के लिहाज से सरकार के पास कई महत्वपूर्ण काम थे. सरकार को कई विधेयक और अनुपूरक बजट पास कराना था. लिहाजा सरकार ने तो अपना काम करा ही लिया. बहुमत के बल पर सरकार का हर विधायी काम हंगामे के बीच भी हो जाता है. यह हर सदन की परंपरा रही है. चाहे राज्यसभा में कृषि विधेयक पास कराना हो या राज्य विधानमंडल में बजट, आराम से पारित हो जाता है. लेकिन माननीयों के हल्ला-हंगामे के बीच सत्र में जनता का वक्त (प्रश्नकाल) तिरोहित होता जा रहा है.
मानसून सत्र में भी ऐसा ही हुआ. सत्र का पहला दिन आरंभिक औपचारिकता और शोक प्रस्ताव में निपट गया. शनिवार और रविवार की छुट्टियों के बाद सोमवार को सत्र आहूत हुआ तो हल्ला हंगामा होता रहा. प्रश्नकाल में प्रश्न नहीं लिए जा सके. मंगलवार को दोनों पक्ष के माननीयों ने अपनी ताकत और क्षमता का प्रदर्शन कर सदन में जनता समय नष्ट कर दिया. विधानसभा की बैठक के पूवार्द्ध के पहले दो घंटे प्रश्नकाल, शून्यकाल और ध्यानाकर्षण प्रस्तावों के लिए निर्धारित होते हैं.
इस दो घंटे का उपयोग माननीय क्षेत्र की जन समस्याओं को प्रश्नों के माध्यम से सरकार के संज्ञान में लाते हैं और सरकार से इसके समाधान का रास्ता मांगते हैं. लेकिन अब झारखंड विधानसभा में यह परंपरा बन गई है कि सत्र तीन दिनों का हो या बीस दिनों का, प्रश्नकाल का अधिकतम समय माननीयों के बल प्रदर्शन और हंगामे में बीतता है.
मंगलवार को विधानसभा में इसका नजारा देखने को मिला. सदन में विपक्ष के माननीय सदस्य और पिछली सरकार के कृषि मंत्री रहे रणधीर सिंह ने न सिर्फ हंगामा किया, बल्कि आसन के साथ अभद्रता भी की. नई विधानसभा में पहली बार स्पीकर रवींद्र नाथ महतो का असली तेवर देखने को मिला. उन्होंने जितनी सख्ती रणधीर सिंह के साथ दिखाई, यह तत्कालिक वक्त की मांग थी.
उनका मार्शल आउट आसन की सही भूमिका को रेखांकित करता प्रतीत हुआ. दरअसल विधायक रणधीर सिंह पहले भी गैर जिम्मेदाराना अंदाज में पेश आते रहे हैं. मंत्री पद पर रहते हुए अपनी सीट से बार-बार उछल कर बोलना और बैठे-बैठे सामनेवाले सदस्यों को टोका-टाकी करना उनके व्यवहार में तब्दील हो चुका है. ऐसा ही सत्ता पक्ष के सदस्य डा. इरफान अंसारी का व्यवहार बनता जा रहा है. हल्के-फुल्के अंदाज में सदन में कभी हंसने-हंसाने की कोशिश अलहदा बात है, लेकिन बार-बार व्यवधान उत्पन्न करना एक विधायक की गरिमा से खिलवाड़ है.
सदन में इस बार सदन नेता हेमंत सोरेन काफी संजीदे अंदाज में दिखे. सरकार की ओर से हर बात को सलीके से सदन में रखकर मुख्यमंत्री एक परिपक्व राजनीतिज्ञ की भूमिका में नजर आए. नपी तुली बातें कहना और तथ्यों को रखना ही सदन नेता का काम है. सत्ता पक्ष और विपक्ष के कई माननीयों ने छोटे सत्र में ही अपनी विशेष छाप छोड़ी. लेकिन कई सदस्यों ने निराश किया. सदन में एक बात पिछले आठ नौ महीने से खटक रही है- सदन में नेता प्रतिपक्ष की सीट का खाली रहना.
विधानसभा अध्यक्ष को यह सीट जल्द भर देना चाहिए. तभी विधानसभा की गरिमा बढ़ेगी. सदन नेता के साथ प्रतिपक्ष के नेता के बगैर सदन की संरचना अधूरी है. मानसून सत्र में नौ विधेयक पारित कराए गए. सीएजी की रिपोर्ट पेश की गई. 70 अल्पसूचित और 61 अतारांकित प्रश्न स्वीकृति किए गए. माननीय सदस्यों के 17 गैर सरकारी संकल्प लिए गए. झारखंड लैंड म्यूटेशन बिल तैयार था, लेकिन सरकार ने उसे पेश नहीं किया. कोरोना पर सदन में अच्छी चर्चा रही. थोड़ी नोक-झोंक को छोड़ दें तो सदन ने जनता की भावना को प्रतिबिंबित किया. तीन दिन का सत्र कहने को तो छोटा रहा, लेकिन कई राज्यों में महज एक दिन का ही सत्र आहूत किया था. इस लिहाज से झारखंड ने बाजी मार ली.