रांची:भारतीय जनता मोर्चा के तत्वाधान में आयोजित पंडित दीनदयाल जयंती पर वरिष्ठ पत्रकार चंदन मिश्रा ने कहा कि दीनदयाल के विचार पर चिंतन-मनन करने के लिये ही इस अवसर पर एकत्रित हुए है। उनके दर्शन-फिलोसाॅफी की प्रासंगिकता आज के समाज में अतिआवश्यक है। दीनदयाल एक बहुमुखी प्रतीभा के धनी लेखक, दूरदर्शी, भविष्यदृष्टा भी थे। उन्होंने कहा कि कोई यह दावा नहीं कर सकता कि पं दीनदयाल जी हमारे काॅपीराईट है। आज के इस उपभोक्तावाद युग में सत्ता महत्वपूर्ण हो गया है, व्यक्ति नहीं, जबकि पं. ने व्यक्ति को महत्वपूर्ण माना है। आज व्यक्ति को अपने लिप्सा पर नियंत्रण रखना अत्यंत जरूरी है। उन्होंने कहा कि एकात्म मानववाद में व्यक्ति की आवश्यकताएँ न्यूनतम होनी चाहिए, उनकी करनी और कथनी में कोई फर्क नहीं रहनी चाहिए। अंत्योदय सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति को आत्मकेन्द्रीत न होकर समाज की भलाई करनी चाहिए। हमें अपनी आत्मा, बुद्धि विचार एवं चिंतन के बीच सामंजस्य बनाना अत्यंत आवश्यक है, तभी हम सच्चे मायनों में पं. की सिद्धांतों को अंगीकार कर पायेंगे।
भारतीय जनता मोर्चा के केन्द्रीय अध्यक्ष, श्री धर्मेंन्द्र तिवारी ने कहा कि वर्ष 1916 में आज ही के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक और जनसंघ के सह-संस्थापक पंडित दीन दयाल उपाध्याय का जन्म मथुरा में हुआ था। उन्होंने देश को एकात्म मानववाद जैसी प्रगतिशील विचारधारा दी और कहा कि दुनिया को पूंजीवाद या साम्यवाद नहीं, बल्कि मानववाद की जरूरत है। वो राजनेता होने के साथ-साथ एक पत्रकार और लेखक भी थे। उन्होंने आरआरएस द्वारा प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका पान्चजन्य की नींव रखी थी। उन्होंने बताया कि भारतीय जनता मोर्चा द्वारा प्रदेश के विभिन्न जिलों में इस गोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज बच्चों को स्कूलों में प्रारंभ से ही नैतिक शिक्षा की पढ़ाई होनी चाहिए। बच्चों को महापुरूषों की प्रेरक प्रसंग कहानियाँ बतानी/सुनानी चाहिए। हमंे मोबाईल पर निर्भरता कम करनी चाहिए। माता-पिता का महत्व समझ कर उनका सदैव आदर करना चाहिए। सनातन परम्परा के अनुसार हम सभी को वसुधैव कुटुम्बकम की सोच को अंगीकार करना चाहिए।
विशिष्ट अतिथि पर्यावरणविद्, श्री अंशुल शरण ने बताया कि आज विश्व की एक बड़ी आबादी गरीबी में जीवनयापन कर रही है। सम्पूर्ण विश्व की लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या 2 डाॅलर से भी कम में अपना गुजारा कर रही है। उन्होंने कहा कि पं. दीनदयाल उपाध्याय जी भारतीय राजनीति में ध्रुवतारा के समान है। वर्षों तक भारतीय जनसंघ के महामंत्री और बाद में अध्यक्ष रहने के बावजूद वे दलगत राजनीति और सत्ता राजनीति से उपर रहे। पंडित जी एक राजनीतिज्ञ से अधिक दार्शनिक, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री और चिंतक थे। उनके द्वारा दिये गये सिद्धान्त ‘एकात्म मानववाद’ तथा ‘अंत्योदय’ आज के इस भौतिकवादी युग में अत्याधिक प्रासंगिक है। एकात्म मानववाद का उद्देश्य प्रत्येक मानव को गरीमापूर्ण जीवन प्रदान करना और अंत्योदय यानी समाज के निचले स्तर पर स्थित व्यक्ति के जीवन में सुधार करना है। वास्तव में वे एक ऐसा राजनीतिक दर्शन को विकसित करना चाहते थे, जो भारत की प्रकृति और परम्परा के अनुकूल हो और राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करने में समर्थ हो। उन्होंने कहा कि विश्वभर में विकास के कई माॅडल लाए गए, लेकिन आशानुरूप परिणाम नहीं मिला. अमीर और अमीर होते जा रहे है, जबकि गरीब और गरीब हो रहे हैं. एकात्म मानववाद ऐसा दर्शन है, जो इंटेगरल भी है और सस्टेनेबल भी.