रांची: झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सुप्रीयो भट्टाचार्य ने बताया कि पार्टी ने किसान विरोधी कृषि विधेयक 2020 का प्रत्येक स्तर पर विरोध करने का निर्णय लिया गया है. उन्होंने बताया कि कृषि विधेयक 2020 के विरोध में 29 सितम्बर को राज्य के सभी जिला मुख्यालय पर एक दिवसीय प्रदर्शन सह धरना कर राज्य के किसान, मजदूर एवं आम जनों की केंद्र सरकार द्वारा आवाज दबाने वाले कानून का विरोध करना सुनिश्चित करेंगे.
विनोद कुमार पांडेय ने कहा कि विगत दिनों भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा “आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020“, “कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020“ एवं “मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा बिल, 2020“ (कृषि विधेयक 2020) संसद से बिना बहस के जबरन पारित करवाया गया.
उन्होंने कहा कि कृषि विधेयक पूर्व में किसानों एवं आम जानों के हित को देखते हुए लागू किये गए थे. परन्तु वर्तमान संसोधन विधेयक के पारित होने के पश्चात इसका सीधा लाभ पूंजीपतियों एवं बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों को मिलना तय हो गया है, देश के बाजारों में काला बाज़ारी करने की खुली छूट दे दी गई है, इसके साथ ही भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का किसान एवं मजदूर विरोधी चरित्र उजागर हो गया है. आज देश भर में 62 करोड़ किसान-मजदूर व 250 से अधिक किसान संगठन इन काले कानूनों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उनके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार देश को बरगलाने में लगे हुए हैं. सड़कों पर किसान मजदूरों को लाठियों से पिटवाया जा रहा है.
मंडी में पूर्व निर्धारित ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ किसान की फसल के मूल्य निर्धारण का एक मात्र उपाय है, जिससे किसान की उपज का सामूहिक तौर से मूल्य निर्धारण हो पाता है. अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था किसान की फसल की सही कीमत, सही वजन व सही बिक्री की गारंटी है. अगर किसान की फसल को मुट्ठीभर कंपनियां मंडी में सामूहिक खरीद की बजाय उसके खेत से खरीदेंगे, तो फिर मूल्य निर्धारण, वजन व कीमत की सामूहिक मोलभाव की शक्ति खत्म हो जाएगी. उन्होंने कहा कि क्या फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया साढ़े पंद्रह करोड़ किसानों के खेतों से एमएसपी पर फसल खरीद सकती है? अगर मुट्ठीभर पूंजीपतियों ने किसान के खेत से खरीदी हुई फसल का एमएसपी नहीं दिया तो क्या मोदी सरकार एमएसपी की गारंटी देगी? किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य आखिर मिलेगा कैसे? स्वाभाविक तौर से इसका नुकसान किसान को होगा.