अंतरराष्ट्रीय स्तर के कुख्यात चंदन तस्कर को ढेर करने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी विजय कुमार को केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर का पहला उपराज्यपाल बना सकती है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म कर, उसे विशेष राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बनाने की घोषणा के बाद से उनके नाम की चर्चा चल रही है। विजय कुमार, तमिलनाडु कैडर के 1975 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। 1998-2001 के बीच वो कश्मीर वैली में बीएसएफ के इंस्पेक्टर जनरल थे। उस वक्त सीमा सुरक्षा बल ने आतंकवादियों के खिलाफ जमकर कार्रवाई भी की थी। 65 साल के विजय कुमार उस वक्त सबसे ज्यादा चर्चे में रहे जब वो स्पेशल टास्क फोर्स यानी एसटीएफ में तैनात थे। साल 2004 में चंदन तस्कर वीरप्पन को घेर कर उसे उसके अंजाम तक पहुंचाने वालों में के विजय कुमार का नाम शुमार है। 2010 में जब नक्सलियों ने दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ के 75 जवानों की हत्या कर दी, तब नक्सलियों पर नकेल कसने के लिए के विजय कुमार को सी आरपीएफ का डायरेक्टर जनरल बनाया गया था। वह फिलहाल जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के सलाहकार हैं।
वीरप्पन वर्षों तक कर्नाटक और तमिलनाडु की पुलिस के लिए एक सिरदर्द बना रहा था। करोड़ों खर्च करने के बाद भी सरकार उसका कुछ नहीं कर पा रही थी। उसके हाथ कई अधिकारियों के खून में रंगे हुए थे। जो कोई पुलिस का या सरकारी अधिकारी उसके हत्थे चढ़ जाता था वह उसकी बड़ी बेरहमी से हत्या कर देता था। यही वजह थी कि वीरप्पन के नाम का खौफ इस पूरे इलाके में था। आईपीएस अधिकारी विजय कुमार ने इसी खौफ को हमेशा के लिए मौत की नींद सुलाने का काम किया था।
कई दशकों तक दक्षिण के जंगलों में वीरप्पन का आतंक था। हाथी दांत से लेकर चंदन की लकड़ी तक की तस्करी में वीरप्पन की तूती बोलती थी। उसके रास्ते में जो आया, उसे मार गिराया। वीरप्पन की नजर कमजोर हो रही थी। वह चाहता था कि बिजनसमैन उसके लिए कुछ बंदूकों को इंतजाम करे। इसके साथ ही उसके मोतिया के ऑपरेशन का भी बंदोबस्त करे।
चंदन तस्कर के नाम से आतंक का पर्याय बने वीरप्पन को ऑपरेशन कॉकून के तहत खत्म करने वाले के विजय कुमार ने अपनी किताब ‘वीरप्पन चेसिंग द ब्रिगैंड’ में इस ऑपरेशन से जुड़े कई खुलासे किए थे। तमिलनाडु के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) की टीम की अगुवाई करने वाले के विजय कुमार ने वीरप्पन द्वारा की गयी नृशंस हत्याओं और अपहरण की घटनाओं का ज़िक्र किया था। इसमें कन्नड़ अभिनेता राजकुमार को 108 दिन तक अगवा किये जाने की घटना का भी वर्णन है।
इस किताब में उन्होंने कहा है कि वीरप्पन को गजब की सिक्स्थ सैंस थी। इसकी वजह से वह कई बार पुलिस की गिरफ्त में आते आते रह गया था। एक वाकये का जिक्र करते हुए उन्होंने किताब में लिखा है कि उसको पकड़ने के लिए एक बार पुलिस ने जाल बिछाया था। उसको हथियार बेचने के नाम पर बिछाए गए इस जाल में वह काफी हद तक फंस भी गया था और प्लान के मुताबिक वह हथियारों की डील के लिए अपने साथियों के साथ आ भी रहा था। लेकिन रास्ते में उसके कंधे पर एक छिपकली गिर गई। उसको लगा यह अपशकुन लगा और वह वहां से ही वापस लौट गया।
किसी प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक में 1952 में गोपीनाथम में वीरप्पन के जन्म से लेकर 2004 में पादी में ऑपरेशन कॉकून के दौरान मारे गिराये जाने तक की कई घटनाओं को शामिल किया गया है। वर्ष 2010-2012 के दौरान सीआरपीएफ का नेतृत्व करने वाले कुमार वर्तमान में गृह मंत्रालय में वरिष्ठ सुरक्षा सलाहकार के पद पर कार्यरत हैं।
इसमें उन्होंने उस बिजनेसमैन का भी जिक्र किया है जो वीरप्पन को जानकारियां मुहैया करवाता था। इसमें कहा गया है कि एक प्रभावशाली बिजनसमैन के श्री लंका के तमिल लड़ाकों से संबंध थे। यही आदमी वीरप्पन को सूचना और शायद हथियार भी मुहैया कराता था। पर कहानी यहां खत्म नहीं होती। लेकिन बाद में एसटीएफ ने इसी को विरप्पन को पकड़ने के लिए मोहरा बनाया। इस आदमी को जब उसके श्री लंका कनेक्शन उजागर का डर दिखाया गया तो इसने वीरप्पन के खिलाफ स्पेशल टास्क फोर्स का साथ देने का फैसला किया। 18 अक्टूबर 2004 को स्पेशल टास्क फोर्स ने वीरप्पन को मार गिराया।
जब मुखबिर ने बिजनसमैन को फोन कर वीरप्पन के दिए पासवर्ड बताया, तो बिजनसमैन ने उसे दूसरे शहर के गेस्ट हाउस में बुलाया। एसटीएफ ने खुफिया तरीके से दोनों की बातचीत सुन ली। बिजनसमैन ने मुलाकात के दौरान वीरप्पन की सेहत का हाल पूछा। वह वीरप्पन को अन्ना कहकर पुकार रहा था। जब मुखबिर ने वीरप्पन की चाह बतायी तो बिजनसमैन इसके लिए राजी हो गया।
जैसे ही मुखबिर बाहर निकला एसटीएफ कमरे में दाखिल हो गयी। उन्होंने व्यापारी को धमकी दी कि अगर वह उनका साथ नहीं देगा तो श्री लंकाई उग्रवादियों के साथ उसके संबंधों की बात जगजाहिर हो जाएगी। एसटीएफ ने जैसे ही व्यापारी को ऑफर दिया कि अगर वीरप्पन को पकड़ने में उनकी मदद करेगा तो उसे अभय दे दिया जाएगा वह फौरन इसके लिए राजी हो गया।
योजना बनी कि बिजनसमैन वीरप्पन के पास एक संदेशवाहक भेजेगा जो उसे बताएगा कि बंदूकों की डील श्री लंका में होगी। वही आदमी वीरप्पन को त्रिची या मदुरै के अस्पताल में ले जाएगा जहां उसकी आंखों का ऑपरेशन हो जाएगा। इसके बाद उसे श्री लंका ले जाया जाएगा। हथियारों की डील होने के बाद उसे वापस भारत लाया जाएगा। बिजनसमैन जानना चाहता था कि आखिर वह आदमी कौन होगा जो यह सब काम करेगा। एसटीएफ ने इस बारे मे उसे फिक्र न करने को कहा।
इस काम के लिए तत्कालीन एसटीएफ चीफ के विजय कुमार ने सब-इंस्पेक्टर वेल्लादुरई को चुना। योजना के मुताबिक एसटीएफ ने बिजनसमैन से कहा कि वह वीरप्पन के आदमी से धर्मपुरी के नजदीक किसी चाय की दुकान पर मिले। इसके बाद उस आदमी ने एक लॉटरी टिकट के दो टुकड़े किए और एक बिजनसमैन को देते हुए कहा, ‘यह अन्ना का ट्रैवल टिकट’ है। यह टिकट उस आदमी के लिए था जो वीरप्पन को आंखों के ऑपरेशन के लिए अस्पताल लेकर जाएगा। टिकट के दोनों टुकड़े मिलने के बाद ही वीरप्पन उस आदमी के साथ जाएगा।यही लॉटरी का आधा टिकट वीरप्पन के लिए वन-वे टिकट बन गया।
एनकाउंटर वाले दिन एंबुलेंस से जा रहे वीरप्पन और उसके साथियों को तमिलनाडु के जंगल में एसटीएफ की टीम ने रास्ते में एक बड़ा ट्रक खड़ा कर रोक दिया और उसको चारों तरफ से घेर लिया। शुरुआत में विरप्पन को सरेंडर करने के लिए कहा गया, लेकिन उसने पुलिस टीम पर फायरिंग कर दी। इसके बाद कुछ समय के लिए ताबड़तोड़ गोलियां चली। इनमें से एक गोली विरप्पन के सिर को चीरती हुई निकल गई और वह वहीं पर ढ़ेर हो गया। इस ऑपरेशन में एंबुलेंस में मौजूद विरप्पन के सभी साथी मारे गए थे। वीरप्पन को पकड़ने में पुलिस को 20 साल से भी ज्यादा का समय लग गया था। इसमें करीब 130 पुलिस अधिकारियों को पकड़ने की कोशिश में लगाया गया। साथ ही 1 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च भी किया गया।
कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन ने अपने समय में हाथी दांत और चंदन की तस्करी कर करीब 3 हजार करोड़ की दौलत जुटाई थी, लेकिन कर्नाटक और तमिलनाडु एसटीएफ ने संयुक्त मिशन चलाकर उसका खात्मा कर दिया। कर्नाटक व तमिलनाडु एसटीएफ ने इसे ‘मिशन ककून’ नाम दिया था। लेकिन एसटीएफ या सरकार को वीरप्पन का खजाना और हथियारों का जखीरा कभी नहीं मिल सका। उसके इस छिपे हुए खजाने को ढूंढने के लिए कई गांव वाले लगे हुए हैं लेकिन फिलहाल किसी के हाथ सफलता हाथ नहीं लगी है।
एसटीएफ के आधिकारिक जानकारी के अनुसार, 18 अक्टूबर 2004 को खूंखार चंदन तस्कर वीरप्पन को एनकाउंटर में एसटीएफ ने मार गिराया था। इसके साथ ही उसने खजाने की तलाश शुरू कर दी थी। वीरप्पन ने हाथी दांत, चंदन तस्करी व किडनैपिंग के जरिए 2500 से 3000 करोड़ की दौलत जमा कर ली थी। बताया जाता है कि इस खजाने को वीरप्पन ने कर्नाटक व तमिलनाडु की सीमा से लगने वाले सत्यमंगलम के घने जंगलों में गड्ढे खोदकर दबाया था।
जानकारों के अनुसार, इस इलाके में पैसे, जेवरात व अन्य कीमती जीचें जमीन में दबाकर रखने का चलन काफी पुराना है। गांव वाले बैंक या घर में पैसे या कीमती सामान रखने की बजाय यही तरीका अपनाते हैं। खूंखार चंदन तस्कर वीरप्पन अपनी कमाई को बड़ी हिफाजत से रखता था। जंगल के बीचोंबीच कई जगह पर बड़े-बड़े गड्ढे खोदे जाते थे और उनके अंदर अनाज के साथ 500 व 1000 के नोटों का बंडल पॉलिथीन में रखकर दबाए गए हैं क्योंकि उनमें कीड़े न लगें। साथ ही साथ वीरप्पन को इस जंगल के चप्पे-चप्पे की जानकारी थी।
तत्कालीन एसटीएफ प्रमुख के विजय कुमार का मानना है कि वीरप्पन जहां भी पैसे दबाता था, उस जगह पहचान के लिए अपने कोडवर्ड में कोई न कोई निशान जरूर छोड़ता था। इस कोडवर्ड को वीरप्पन या उसके कुछ खास लोग ही जानते थे, लेकिन सभी की मौत होने के बाद यह खजाना जमीन में गड़ा हुआ है। हालांकि, कुछ स्थानीय लोग इसकी तलाश में आज भी जुटे हुए हैं। एनकाउंटर के बाद एसटीएफ ने वीरप्पन के खजाने की खोज में बड़ा ऑपरेशन लॉन्च किया था, लेकिन कामयाबी हाथ नहीं लगी। खजाने के साथ कई हथियार भी उसने जमीन में दबा रहे थे, जिन्हें वह जरूरत पड़ने पर बाहर निकालता था।
वीरप्पन प्रसिद्ध व्यक्तियों की हत्या तथा अपहरण के बल पर अपनी मांग रखने के लिए भी कुख्यात था। 1987 में उसने एक वन्य अधिकारी की हत्या कर दी। 10 नवम्बर 1991 को उसने एक आई एफ एस ऑफिसर पी श्रीनिवास को अपने चंगुल में फंसा कर उसकी निर्मम हत्या कर दी। इसके अतिरिक्त 14 अगस्त 1992 को मीन्यन के पास हरिकृष्ण तथा शकील अहमद नामक दो वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों समेत कई पुलिसकर्मियों की हत्या तब कर दी जब वे एक छापा डालने जा रहे थे। उसे 1986 में एक बार पकड़ा गया था पर वह भाग निकलने में सफल रहा। वन्य जीवन पर पत्रकारिता करने वाले फोटोग्राफर कृपाकर, जिसे उसने एक बार अपहृत किया था, कहते हैं कि उसने अपने भागने के लिए पुलिस को करीब एक लाख रूपयों की रिश्वत दी थी।
1990 में कर्नाटक सरकार ने उसे पकड़ने के लिए एक विशेष पुलिस दस्ते का गठन किया। जल्द ही पुलिसवालों ने उसके कई आदमियों को पकड़ लिया। फरवरी, 1992 में पुलिस ने उसके प्रमुख सैन्य सहयोगी गुरुनाथन को पकड़ लिया। इसके कुछ महीनों के बाद वीरप्पन ने चामाराजानगर जिला के कोलेगल तालुक के एक पुलिस थाने पर छापा मारकर कई लोगों की हत्या कर दी और हथियार तथा गोली बारूद लूटकर ले गया। 1993 में पुलिस ने उसकी पत्नी मुत्थुलक्ष्मी को गिरफ्तार कर लिया। अपने नवजात शिशु के रोने तथा चिल्लाने से वो पुलिस की गिरफ्त में ना आ जाए इसके लिए उसने अपनी संतान की गला घोंट कर हत्या कर दी।