खुला बदन व बिना चप्पल-जूता, लंबी दूरी तय करने वाले शख्स की पहचान आधुनिक राजनीति के महात्मा की रही
रांची: खुला बदन, हल्की-लम्बी दाढ़ी-मूंछ और और तमाम आधुनिक सुख-सुविधाओं को नजरअंदाज कर खाली पैर (बिना चप्पल जूता) लंबी दूरी तय करने वाले शख्स बागुन सुम्ब्रई की पहचान एकीकृत बिहार में ही नहीं, बल्कि देशभर में रही.
बहुपत्नियों के लिए चर्चित रहे बागुन सुम्ब्रई ने अपनी मौत से कुछ महीने पूर्व इस संवाददाता को एक इंटरव्यू में जानकारी दी थी कि 1976 में एक बार बिहार विधानसभा में उनके बहुपत्नियों को लेकर चर्चा हुई, जिसके बाद सभा में पेश में एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गयी कि विभिन्न सरकारी योजनाओं और नौकरियां हासिल करने वाली 23 महिलाओं ने अपने पति के रूप में बागुन सुम्ब्रई का नाम दर्ज कराया है.
अपनी पत्नियों की सही संख्या को लेकर पूछे गये प्रश्न के उत्तर में बागुन सुम्ब्रई ने इस संवाददाता को यह जानकारी दी कि वे जिस कोल्हान क्षेत्र से जीत कर विधानसभा और लोकसभा पहुंचते है, उस क्षेत्र में रहने वाले कई जनजातीय परिवारों की स्थिति अत्यंत दयनीय रहती है, कई महिलाओं को उसके पति ने त्याग दिया है, कुछ विधवाएं हो गयी है या कुछ ने ससुराल सामाजिक प्रताड़ना से तंग आकर अपना घर छोड़ने को मजबूर हुई.
ऐसी कई महिलाएं उनके पास आती है और विभिन्न योजनाओं या नौकरी दिलाने में सहयोग का आग्रह करती थी. इस दौरान उन्हें नौकरी या योजनाओं का लाभ हासिल करने में दिक्कत न हो, इसलिए उनका नाम अपने पति के रूप में दर्ज करा देती थी.
उस वक्त आधार पंजीयन या विवाह प्रमाण पत्र समेत अन्य प्रमाण पत्रों की जानकारी देने को लेकर अभी जैसे कठोर नियम नहीं थे, इस कारण सिर्फ बागुन सुम्ब्रई अपनी सहमति प्रदान कर देते थे, तो स्थानीय प्रशासन की ओर से संबंधित महिला को आवश्यक प्रमाण पत्र उपलब्ध करा दिया जाता था और उन्हें सरकारी नौकरी या अन्य लाभ मिल जाता था.
हालांकि बागुन सुम्ब्रई खुद भी पांच पत्नी होने की बात को स्वीकार करते थे. इनमें दशमती सुम्ब्रई, चंद्रवती सुम्ब्रई, पूर्व मंत्री मुक्तिदानी सुम्ब्रई की मृत्यु हो गयी, वहीं दयमीं सुम्ब्रई अंतिम दिनों में बागुन सुम्ब्रई से अलग रह रही थी, जबकि अनिता बलमुचू अंत तक उनके साथ रही.
पहला चुनाव 910 रुपये में जीता, साईकिल बंधक रख दी
बागुन सुम्ब्रई ने सन् 1967 में सबसे पहले झारखंड पार्टी के टिकट पर चाईबासा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. इस चुनाव में सुम्ब्रई ने मात्र 910 रुपये खर्च की. वे अपने समर्थकों के साथ साईकिल से पूरे विधानसभा में घूम-घूम कर प्रचार करते थे.
चुनाव के अंतिम समय में पैसे के अभाव में उन्होंने अपनी साईकिल125 रुपये में चाईबासा के टीनु ठाकर को बंधक रख दी. चुना जीतने के 6 महीने बाद पैसा देकर साईकिल वापस ली.
1969 और 1972 में भी लगातार वे झारखंड पार्टी की टिकट पर चुनाव में विजयी रहे. 1977 में वे सिंहभूम से लोकसभा चुनाव जीते, 1984 में वे कांग्रेस में शामिल हो गये और 1984 व 1989 में सिंहभूम संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 2000 में फिर वे चाईबासा विधानसभा से चुनाव जीते और 2004 में वे लोकसभा के लिए चुने गये.