लालजी जायसवाल
रांची
प्रशासनिक अधिकारियों का तंत्र जिसे स्टील फ्रेम आफ इंडिया कहा जाता है ,वह आज अपनी जर्जरता को प्राप्त कर चुका है. जिसका प्रमुख कारण प्रशासन को इस्पाती ढ़ांचे से इतर उसमें मूल्यों का समावेश करना है, जिससे सही मायने में प्रशासन की शक्ति को कम किया जा सके. क्योंकि लार्ड एक्टन का प्रसिद्ध कथन है कि शक्ति भ्रष्ट करती है, और परम शक्ति परम भ्रष्ट करती है. अतः इन शक्तियों को कम करने के उद्देश्य से तथा प्रशासन और जनता के बीच दूरी को कम करने के बाबत उसमें मूल्यों को तरजीह दिया गया. एक लोक सेवक में नैतिकता, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, भावनाएं, सहानुभूति, संवेदनाएं जैसे नैतिक मूल्यों के होने की अपेक्षा की गई. लेकिन इससे सफलता तो निश्चित तौर पर मिली लेकिन पब्लिक और लोकसेवक संबंधों में नज़दीकियां आते ही भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा को प्राप्त कर गया.
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अवधारणा तो यह थी कि लोकसेवक सभी मूल्यों को अपनाएंगा लेकिन कार्य, विधि अनुरूप ही करेगा. विधि से इतर कोई कार्य नहीं करेगा लेकिन लोकसेवक तो जनता का सेवक होने की वजाय उसका स्वामी ही बन बैठा और अनेकों प्रकार से भ्रष्टाचार के मार्ग खोल दिए. कुछ समय पहले हाल ही में सरकार ने भ्रष्ट नौकरशाहों पर सख्त रवैया अपनाते हुए उन्हें समय से पूर्व ही सेवानिवृत्त कर दिया. यह सरकार के प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए, भ्रष्टाचार को कम करने की ओर इंगित करता है. प्रायः देखा जाए तो प्रतिवर्ष कई हजार सरकारी अधिकारी दंडित होते हैं, किंतु उनके नामों और कारनामों का सही तरह से मीडिया में न प्रदर्शित करने के कारण लोगों को इसके प्रति जागरूक न करने के प्रति एक मानसिकता बनी है कि सरकारी नौकरी में कोई भी दंडित नहीं होता. यह एक सुरक्षात्मक नौकरी है, अगर दंडित अधिकारियों को उचित रूप से उनके नाम और कारनामे को दृश्य चित्रित किया जाए और उसे उजागर किया जाए तो सरकारी सेवा में आने वाले लोग अपना भ्रष्ट रवैया लेकर नहीं आएंगे.
लगातार प्रशासन की जवाबदेहीता को बदलने की कोशिश की जाती रही है, किंतु यह अपने उचित स्तर को आज तक नहीं प्राप्त कर सका है. वर्ष 1992 में विश्व बैंक ने सुशासन की अवधारणा लाई. जिसमें एक नई दिशा देने का प्रयास किया गया. जिससे जनता और सिविल सेवक संबंध को मजबूती प्रदान की जा सके.
द्वितीय प्रशासनिक सुधार, खन्ना कमेटी की रिपोर्ट में भी प्रशासनिक सुधार के महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट सुझाया गया. जिसमें नौकरशाही को एक स्पष्ट जवाबदेंह तथा मजबूत बनाया जा सके. इसी उद्देश्य से वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार भी लाया गया जिसमें जनता , सरकारी कार्यों में सहभागिता को निर्धारित कर सके और जनता तथा सरकार के बीच नजदीकियां बढ़े. जिससे इसमें पारदर्शिता को बढ़ावा मिल सके और भ्रष्टाचार कम हो सके. क्योंकि अगर सरकारी कार्यों में जनता का हस्तक्षेप होगा तो निश्चित तौर पर या भ्रष्टाचार पर लगाम लगाया जा सकेगा, लेकिन भारत में नागरिक समाज की कमी के कारण लोग मात्र अपने अधिकारों की अपेक्षा करते हैं, कर्तव्यों को तरजीह नहीं देते.
इसी कारण लोग आरटीआई का उपयोग निजी हित तथा दूसरों की नुकसान पहुंचाने के लिए करने लगे, जिससे आईटीआई भी अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकी. सुशासन की अवधारणा भी भारत में अधूरी ही रही है क्योंकि सुशासन का अर्थ ही यही है कि सरकार के कार्यों को कम करने के लिए लोगों की सहभागिता. नागरिक समाज की कमी उद्दैश्यों को पूर्ण करने में बाधा बन रही है. गुन्नार मेंडल का प्रसिद्ध कथन है कि किसी भी देश में नागरिक समाज के निर्माण में आजादी से 200 वर्ष तक का समय लगता है, जो अभी भारत में आजादी के 70 साल ही हुए हैं. अतः भारत में अभी नागरिक समाज बनने में बहुत समय है.
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लगातार भ्रष्टाचार में लिप्त नौकरशाही के स्वच्छ नौकरशाही बनाने के लिए अनेकों प्रयास किए जाते रहे हैं, जैसे कि नागरिक चार्टर, केंद्रीय सतर्कता आयोग, लोकपाल की नियुक्ति आदि. भ्रष्टाचार मुक्त नौकरशाही बनाना अत्यावश्यक है, क्योंकि नौकरशाहीें देश के विकास के कार्यों को प्रचालित करने में मेरुदंड का कार्य करतीे हैं साथ ही सुदृढ़ समाज की स्थापना भी करते हैं. रावर्ट डोनहम की एक प्रसिद्ध उक्ति है कि किसी भी संस्कृत का पतन लोक प्रशासन के पतन के कारण होता है. अतः लोक सेवकों में मात्र निजी जीवन में ही नहीं बल्कि सार्वजनिक जीवन में भी मूल्यों और उनकी नैतिकता का संकलन होना अनिवार्य है. आज का समय मुख्यतः क्लैक्ट फार्मेसन का है जिसमें नेता, अधिकारी और अपराधी, व्यापारी की दुरभि संधि का एक चतुष्कोणीय अभिकरण सा बन गया है. प्रायः भारतीय नौकरशाह मौका मिलने पर सिविल सर्विस कोड में दी गई अपार शक्तियों का प्रयोग केवल अपने स्वार्थ के लिए करने लगे और देश की गरीब जनता का शोषण करने के साथ-साथ कल्याणकारी योजनाओं के लिए आवंटित धन में हेराफेरी करने लगे.
मगर हैरानी की बात यह है कि रंगे हाथों पकड़े जाने पर भी किसी नौकरशाह पर अभियोग चलाने के लिए सरकार की अनुमति अनिवार्य है. भारत के वरिष्ठ नौकरशाह पूर्व चीफ विजिलेंस कमिश्नर एन विट्ठल ने कहा था कि राजनीतिज्ञों से ज्यादा नौकरशाह भ्रष्ट हैं, क्योंकि राजनेताओं को तो जनता एक समय बाद हटा सकती है, लेकिन नौकरशाह पूरी सेवा काल तक भ्रष्टाचार करता रहता है. एफ. डब्ल्यू. रिग्स ने इसे साला मॉडल का नाम दिया है जिसने भाई -भतीजावाद अपनी चरम सीमा पर होता है.
आज दुरभि संधियों के कारण ही नौकरशाही जर्जर अवस्था में पहुंच चुकी है, इससे तमाम उदाहरण देखे जा सकते हैं. वर्तमान में चल रहे हैं- उन्नाव रेप कांड के मामले में इस दुरभि संधि को प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है. इसमें नेता, अपराधी और अधिकारी की संलिप्तता देखी जा सकती है. यहीं से नौकरशाही का पतन प्रारंभ हो जाता है तथा लालफीताशाही भी अपनी पतन मे भूमिका भरपूर निभाता रहा है, जिससे कि जनता और लोक सेवक संबंध प्रभावित होते रहे हैं. गौरतलब है कि फ्रांस की तरह भारत में ड्राइट एडमिनिस्ट्रेटिफ एंण्ड काउंसिल डिएटा नहीं है. फ्रांस की जनता अपने अधिकारों से अधिक अपने कर्तव्यों को तरजीह देती है. ड्राइट एडमिनिस्ट्रेटिफ में परिवाद सुने जाते हैं. जिसमें जनता सिविल सेवकों की शिकायत करती है और उसकी तुरंत सुनवाई भी होती है, जिससे लोक सेवकों का तुरंत निलंबित कर दिया जाता है, क्योंकि जनता झूठे मुकदमे नहीं करती. लेकिन यह भारत में संभव नहीं है यहां की जनता आपसी द्वेष के कारण ही अधिकारियों पर इतने केस दर्ज करा देगी जिससे ड्राइट एडमिनिस्ट्रेटिफ नष्ट हो जाएगा. क्योंकि अभी भी भारत की जनता प्रबुद्ध नहीं हुई है. इसी कारण प्रशासन में भ्रष्टाचार नहीं समाप्त हो पा रहा है.
अतः जरूरत है नौकरशाही को लोकहितवादी तथा जन कल्याण भावना को सर्वोपरि रखने की. साथ ही नौकरशाही में प्रवेश के तरीकों तथा प्रशिक्षण में परिवर्तन करने की. सेवा में प्रवेश के समय इनका मनोवैज्ञानिक परीक्षण अनिवार्य होना चाहिए, ताकि इनकी मनोस्थिति का पता चल सके. इससे देश के निचले स्तर से भ्रष्टाचार मिटेगा तथा देश में समरसता तथा राष्ट्रीयता की भावना मजबूत होगी. साथ में स्टील फ्रेम की अवधारणा को मजबूती प्रदान करने के लिए ई गवर्नेंस को अधिक से अधिक बढ़ावा देना होगा. ई- अभिशासन में मानव अंतराफलक नहीं होता है, जिसमें किसी मध्यस्थ की जरूरत नहीं पड़ती है. इससे जनता और लोक सेवक संबंधों में दूरियां निश्चिततौर पर होती है किंतु घूस का प्रचलन भी कम होता है, क्योंकि अभी ई-घूस का चलन नहीं हो पाया है. अतः ई-गवर्नेंस को मजबूत कर नौकरशाही को मजबूत किया जा सकता है. साथ ही भ्रष्टाचार पर आमूल-चूल नकेल कसी जा सकेगी.