पटना/नई दिल्ली: बिहार चुनाव में भाजपा की रणनीति में थोड़ा बदलाव हुआ है. पार्टी के रणनीतिकार जदयू और नीतीश कुमार से संबंधों को बदतर स्थिति में ले जाने के पक्ष में नहीं हैं. जाहिर तौर पर इस नई रणनीति का सर्वाधिक असर लोजपा पर पड़ेगा. जाहिर तौर पर सरकार बनाने में लोजपा की जरूरत ही अब इस पार्टी का भविष्य तय करेगी.
लोजपा के पीएम मोदी के नाम पर अलग ताल ठोकने के बाद जदयू की निगाह में भाजपा संदेह के घेरे में थी. लोजपा की अलग चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद कई भाजपा नेताओं के पाला बदलने से जदयू का संदेह और पुख्ता हुआ. इस कारण शुरुआती दौर में दोनों दलों के बीच खटपट भी हुई।.अब भाजपा इस संदेह को दूर करने में जुट गई है। इसके तहत पीएम मोदी और नीतीश की साझा रैलियां, साझा घोषणा पत्र जारी करने की तैयारी शुरू हो गई है। जदयू की नाराजगी दूर करने के लिए ही सोमवार को भाजपा की राज्य इकाई ने पाला बदलने वाले एक दर्जन नेताओं को एक हफ्ते बाद निष्कासित किया.
वोट बंटवारे का डर
सूत्रों का कहना है कि भाजपा की रणनीति में बदलाव की बड़ी वजह समर्थक वोटों में बंटवारे का डर है. असल में चिराग का एक सूत्रीय एजेंडा पीएम मोदी के नाम पर वोट मांगने का है. इसके अलावा कुछ दिनों पूर्व उन्होंने विपक्षी महागठबंधन के सीएम पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव की तारीफ की थी. ऐसे में यह संदेश गया कि चिराग विपक्षी वोट हासिल करने के बदले राजग के वोटों में बिखराव की स्थिति पैदा कर सकते हैं.
नीतीश अब भी जरूरत क्यों
भाजपा और जदयू के बीच दूरी के कारण भाजपा को 12 फीसदी कुर्मी-कुशवाहा वोटरों के नाराज होने का डर सता रहा है। इसके अलावा नीतीश की महादलितों और कुछ अति पिछड़ी जातियों में भी पैठ है. जाहिर है लोजपा के मामले में जारी खींचतान से नीतीश के समर्थक जातियों में नाराजगी पैदा हो सकती है.
बढ़ी चिराग की चुनौती
विधानसभा चुनाव के बाद लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान को तीन लक्ष्य हासिल करने हैं. पहला अपनी मां को राज्यसभा भेजना. दूसरा केंद्रीय मंत्रिमंडल में अपने पिता की जगह शामिल होना और तीसरा पार्टी की विरासत मामले में अपने नाम पर अंतिम मुहर लगवाना. जाहिर तौर पर चिराग अपना तीनों लक्ष्य तभी हासिल कर पाएंगे जब वह चुनाव के बाद राजग की विकल्पहीन जरूरत बने रहें. मतलब लोजपा के बिना राजग वहां सरकार नहीं बना पाए. इसके उलट स्थिति में चिराग के लिए तीनों लक्ष्य को भेदना मुमकिन नहीं रहेगा/ जदयू किसी कीमत पर राज्यसभा भेजने के मामले में इस बार मदद नहीं करेगी, जबकि विरासत के सवाल पर पार्टी में अलग से जंग छिड़ेगी. रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग को जहां सहानुभूति की आस है, वहीं यदि चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा, तो दिल्ली के साथ-साथ बिहार में भी नुकसान की आशंका बलवती हो सकती है.