रांची: बड़कागढ़ रियासत की दुर्गापूजा बेलवरण के साथ शुक्रवार शुरू हई. सप्तमी के दिन राजघराने से मां भवानी की शोभायात्रा निकली गयी. हालांकि पिछले वर्ष की तरह इस बार कोरोना महामारी के कारण श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को नहीं मिली. 60 से 70 लोग ही शोभायात्रा में शामिल हुए.
राजघराने में मां दुर्गा की प्रतिमा का निर्माण पत्तों से किया जाता है. शुक्रवार को प्रतिमा को डोली पर सवार कर देवीस्थान ले जाया गया. डोली बांस की बनती है और उसे साड़ियों से सजाया जाता है. शोभायात्रा में बड़कागढ़ के लोग, राज परिवार के वंशज और आम लोग शामिल हुए. गाजे-बाजे के साथ शोभायात्रा बड़कागढ़ से शुरू होकर आनी स्थित देवीघर पहुंची, जहां विधि-विधान से मां को स्थापित कर पूजा की गई. देवीघर मां दुर्गे के प्रतिमा के पहले बड़कागढ़ की कुलदेवी माता चिंतामणि की पूजा हुई. श्रद्धालु सामाजिक दूरी का पालन करते हुए दर्शन कर सकते हैं. यहां पर मास्क लगाना और हाथों को सैनिटाइज करना अनिवार्य है.
पूजा के बाद चांदी की इस प्रतिमा को देवीघर में ले जाया गया. इसके बाद मां दुर्गे की प्रतिमा ले जाई गई, जिस डोली में माता की प्रतिमा को ले जाई गई, उसे शहीद विश्वनाथ शाहदेव के परिवार की बहुओं द्वारा उतारी गई. साड़ियों से सजाई गई थी. साथ ही मां चिंतामणी की शोभायात्रा के लिए बांस से डोली बनाई गई थी. यह ऐतिहासिक पूजा 1691 से हो रही है. माता चिंतामणी की पूजा के साथ यहां दशहरा पूजा का शुभारंभ होता है.
पूजा में मुस्लिम भी होते हैं शामिल
1880 से निकाले जाने वाली शोभायात्रा के मार्ग की सफाई जगन्नाथपुर में रहने वाले मुस्लिम परिवार के सदस्यों द्वारा की जाती है. महासप्तमी के दिन शेखावत अली उनके परिजन मार्ग की सफाई करते हैं. पूजा में बढ़चढ़ कर शरीक होते हैं. मुस्लिम परिवार द्वारा परंपरा का निर्वाह लगातार किया जा रहा है. नवमी के दिन निशा पूजा होती है, जिसमें भेड़ की बलि देने की परंपरा है. भेड़ और पूजन सामग्री मुस्लिम परिवार द्वारा हर साल मुहैया कराई जाती है.