कटिहार: लॉकडाउन के दौरान बेहद अमानवीय परिस्थितियों में अपने घर लौटे मजदुरों ने भविष्य में महानगर न जाने की कसमें खाई थीं. पर हकीकत कुछ और ही है, वो कहते है ना की पापी पेट का सवाल है, ऐसी ही एक घटना बिहार के बलरामपुर थाने के गढ़ी गांव के बुजुर्ग शंभु शर्मा के दोनों बेटे अप्रैल में लॉकडाउन के दौरान अपने घर लौटे थे. वापस लौट कर भविष्य में महानगर न जाने की कसमें खाई थीं. हालांकि, बीते हफ्ते ही उनके दोनों बेटे सबकुछ भूल कर वापस पुणे लौट गए. कारण गांव में रोजगार का नहीं होना.
रही-सही कसर अगस्त महीने में आई भीषण बाढ़ ने पूरी कर दी. पलायन का सर्वाधिक सामना करने वाले सीमांचल में यह महज एक गांव की कहानी नहीं है. कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया जैसे सभी जिलों के लगभग ज्यादातर गांवों की यही कहानी है. लोकतंत्र के महापर्व के बीच गांव के गांव सूने पड़े हैं. नजर आती हैं तो औरतें, छोटे बच्चे और बुजुर्ग.
लॉकडाउन के दौरान जिस तेजी से लाखों प्रवासी मजबूर महानगरों से लौटे थे, बीते एक महीने में उसी तेजी से वापस महानगरों में लौट गए. गांव में खड़ी और राजमार्गों पर दौड़ती दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब की बसें बताती हैं कि अगले कुछ दिनों में गांवों में बेहद कम संख्या में बचे प्रवासी मजदूर भी महानगरों का रुख कर लेंगे.
अग्रिम राशि और मुफ्त यात्रा लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के पलायन से उद्योग-धंधे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था. इन मजदूरों को वापस लाने के लिए इनके परिवारों को बतौर अग्रिम पांच से दस हजार रुपये दिए जा रहे हैं. गांव से ही बस के जरिए इन्हें महानगर बुलाया जा रहा है. किशनगंज के कोचाधामन इलाके के कई मजदूरों को सूरत के एक व्यापारी ने अग्रिम राशि के साथ हवाई टिकट भी उपलब्ध कराया. चूंकि क्षेत्र में काम नहीं है. इसलिए प्रवासी मजदूरों ने फिर महानगरों को लौटने का मन बनाया.
पलायन विपक्ष का सबसे अहम मुद्दा
यह स्थिति तब है जब विपक्ष के अलग-अलग महागठबंधनों ने प्रवासी मजदूरों के पलायन को अपना सबसे अहम मुद्दा बनाया है. दिलचस्प तथ्य यह है कि जिन प्रवासी मजदूरों के पलायन को विपक्ष ने मुद्दा बनाया है, उनमें से ज्यादातर महानगर लौट जाने के कारण मतदान ही नहीं करेंगे. सीमांचल में अंतिम चरण में सात नवंबर को मतदान होना है.
प्रशासन के साथ सियासी दल भी मौन
बीते एक महीने में लाखों मजदूरों को मतदान तक रोकने के लिए न ही प्रशासन ने दिलचस्पी दिखाई और न ही सियासी दलों ने. विपक्ष की ओर से हालांकि कुछ जगहों पर रोकने की कोशिश जरूर हुई, मगर मजदूर माने नहीं. पूर्णिया जिले के बायसी के राजद नेता मनसूर आलम कहते हैं कि कोरोना के बीच बाढ़ के प्रकोप से स्थिति बिगड़ गई. रोजगार नहीं होने से आर्थिक स्थिति बेहद खराब होने के कारण हमारी कोशिशें बेकार गईं.
विपक्ष को नुकसान
जाहिर तौर पर मजदूरों के वापस महानगरों में लौटने से नुकसान विपक्ष को होगा, क्योंकि पलायन को राजद, एआईएआईएम और जाप ने अहम मुद्दा बनाया है. चूंकि कोरोना के दौरान पलायन कर वापस लौटे मजदूर फिर से महानगर चले गए हैं, ऐसे में यह वर्ग मतदान ही नहीं कर पाएगा.