रांची:- दुर्गा पूजा के समापन के साथ ही लोग दिपावली की तैयारियों मे जुट गए हैं. बाजार मे दीए की डिमांड पूरी करने के लिए कुम्हारों ने अपने चाक की गति तेज कर दी है.
प्रकाश का उत्सव दीपावली बहुत नजदीक है. अमावस की यह अंधेरी रात भी मिट्टी के बने दियों की रौशनी से जगमग हो जाता है. लेकिन, इस एक रात को रौशन करने के लिए कुम्हारों को महीनों मशक्कत करनी होती है. रांची के जगन्नाथपुर निवासी उमेश प्रजापति पिछले एक महीने से दीए के निर्माण मे जुटे हैं. उमेश बताते हैं कि यह उनका पुशतैनी धंधा है. समय के साथ केवल इतना फर्क आया है कि अब हाथ से चलने वाले चाक की जगह इलेक्ट्रिक चाक ने ले ली है जिससे उनके काम की रफ्तार काफी बढ़ गई है.
भारतीय बाजारों मे चाइनीज सामानों की धमक खत्म होने के बाद इन कुम्हारों की उम्मीद बढ़ी है. ये दिए का स्टॉक इतना बढ़ा लेना चाहते हैं कि एक भी ग्राहक खाली हाथ न लौटने पाए. मिट्टी से जुड़े इस कारोबार में आधी आबादी की पूर्ण भागीदारी है. चाक चलाने के अलावा लगभग बाकी सारे काम महिलाएं ही निबटाती हैं.
पर्व-त्योहार और ऋतुओं के अनुसार ये कुम्हार अलग-अलग चीजों का निर्माण करते रहते हैं और चाक की गति से इनकी जिंदगी भी दौड़ती रहती है. खास बात यह है कि इन्होंने न सिर्फ अपने परंपरागत पेशे को जिंदा रखा है बल्कि, इसमें ये काफी खुश भी हैं.