कहा, जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के लिए भाषा कोड की भी प्रस्ताव केंद्र को भेजे सरकार
रांची:- आजसू पार्टी के केंद्रीय महासचिव एवं गोमिया के विधायक डॉ. लंबोदर महतो ने विधानसभा के विशेष सत्र में सरना धर्म कोड का पुरजोर समर्थन करते हुए इसे लागू करने की वकालत की है. उन्होंने कहा कि झारखंडी आदिवासी भाइयों की भाषा संस्कृति, परंपरा एवं इतिहास के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए सरना धर्म कोड को लागू किया जाना चाहिए. इसको लेकर हमारी पार्टी पूर्व से ही आंदोलनरत है. कहा कि प्रकृति के पुजारी आदिवासी एवं मूलवासी सदानों की पहचान के लिए तथा संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए अलग सरना धर्म कोड आवश्यक है. इससे आदिवासी सरना धर्मावलंबियों की सही जनसंख्या का आकलन हो सकेगा. उन्होंने कहा कि यह गंभीर एवं चिंतनीय विषय है कि आज हमारे आदिवासी भाइयों की आबादी घटती जा रही है. पिछले 8 दशकों में 12प्रतिशत आदिवासी घटे हैं. 1931 में 38 .03प्रतिशत थे,जो 2011में घटकर 26.2प्रतिशत हो गए. इसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि आज जो चर्चा कराया जा रहा है वह बजट सत्र या मानसून सत्र में भी कराया जा सकता था किंतु सरकार का ध्यान इस ओर सदन में उठाए जाने के बावजूद भी नहीं गया. सम्मानित आदिवासी संगठनों द्वारा इस विषय को लेकर अभियान चलाया गया. सड़क से सदन तक किए गए संघर्ष के फल स्वरुप सरकार को मजबूरन सदन में विशेष चर्चा के लिए सत्र आहूत करना पड़ा है. उन्होंने कहा कि हम सवा तीन करोड़ लोगों को बधाई देते हैं जिन्होंने लगभग राज्य की 32 जनजातियों के हितों की रक्षा के लिए करीब एक करोड़ आदिवासी भाइयों के लिए सरना धर्म कोड लागू करने में हामी भरी है और समर्थन दिया है. आज राज्य की कुल लगभग एक करोड़ में से 20 लाख ईसाई बन चुके हैं. किंतु शेष 80 लाख आदिवासी भाइयों के लिए सरना धर्म कोड लागू किया जाना चाहिए. डॉ. लंबोदर महतो ने कहा कि सरना स्थल झारखंड की प्रजातियां, जो सीएनटी एवं एसपीटी एक्ट की अनुसूची में शामिल है, इन सभी जातियां जातियों का आस्था केंद्र सरना ही है. उन्होंने सरकार से आग्रह करते हुए कहा कि आगामी जनगणना 2021 में सरना धर्म कोड के साथ साथ भाषा सूची में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं संताली, मुंडारी, कडुख, हो, खड़िया तथा कुरमाली, खोरठा, नागपुरी पंचपरगनिया के लिए भाषा कोड का प्रावधान करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जाए.