पटना: भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने नीतीश कुमार-सुशील कुमार मोदी (राजनीतिक गलियारों में ‘नीकु’ व ‘सुमो’ उपनाम से मशहूर) को अलग करने का फैसला कर लोगों को चौंका दिया. यह इसलिए कि बिहार में एनडीए अगर सत्ता का हिस्सा रही है तो उसके पीछे कहीं न कहीं सुशील मोदी के राजनीतिक कौशल की महती भूमिका रही है.
सूबे के सियासी हलकों में सुशील मोदी की एक पहचान सीएम की पहली पसंद और एनडीए सरकार को निर्बाध रूप से चलाने के लिए सबसे सहज राजनेता के तौर पर भी रही है. पर 30 वर्षों से अधिक समय से बिहार भाजपा के बड़े चेहरे के रूप में स्थापित रहे सुशील मोदी पहली बार राज्य सरकार में शामिल नहीं होंगे.
रविवार को एनडीए विधानमंडल दल की बैठक के बाद सुशील मोदी ने ट्वीट कर खुद इसके संकेत दिए थे कि वह डिप्टी सीएम पद से हट रहे हैं. उपमुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के पार्टी नेतृत्व के फैसले से वो थोड़े निराश भी दिखे.
पद रहे या न रहे, कार्यकर्ता का पद कोई नहीं छीन सकता
अपने ट्वीट में उन्होंने एक ओर आभार जताया तो दूसरी ओर यह भी कहा कि पद रहे या न रहे, कार्यकर्ता का पद कोई नहीं छीन सकता. जाहिर है सुशील मोदी का दर्द छलक रहा है, लेकिन राजनीतिक जानकार बताते हैं कि भाजपा इस फैसले को बड़े फलक में देख रही है. दरअसल सुशील मोदी का यह ट्वीट उनकी पीड़ा का इजहार भी है और भाजपा में किसी नए नेता के उभार का संकेत भी.
बिहार में बीजेपी सेकंड लाइन का नहीं तैयार कर पाई कोई नेता
सुशील मोदी को बिहार में सत्ता की राजनीति से हटाकर भाजपा यह भी संदेश देना चाहती है कि अब खुद के बल पर खड़ा होना चाहती है. ऐसे में पुराने चेहरों को हटा रही है और नये चेहरों को मौका दे रही है. दरअसल यह एक बड़ी हकीकत है कि पिछले 15 सालों में सत्ता में रहते हुए भी बीजेपी सेकंड लाइन का कोई नेता बिहार में नहीं तैयार कर पाई है. जाहिर है ऐसे में बीजेपी नेतृत्व को लगता है कि इससे बेहतर मौका और कोई नहीं हो सकता है.
पार्टी व्यक्ति के बदले कार्यकर्ताओं को महत्व देती है
वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं नीतीश-मोदी की चर्चित जोड़ी को अलग कर बिहार में दो नये चेहरे देकर भाजपा यह संदेश देना चाह रही है कि पार्टी व्यक्ति के बदले कार्यकर्ताओं को महत्व देती है. जमे-जमाए चेहरों के बदले वह नए लोगों को भी सत्ता में शामिल होने का मौका देना जानती है. भाजपा सुशील मोदी को हटाने के साथ अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश देने में कामयाब होती दिख रही है कि एक साधारण कार्यकर्ता भी पार्टी में शीर्ष पदों तक पहुंच सकता है.