अगस्त, 2018 से लेकर अगस्त, 2019 तक एक साल से भी कम समय में देश ने तकरीबन दर्जन भर दिग्गज नेताओं को खो दिया है। इनमें ज्यादातर नेता कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी से जुड़े थे और इन सभी ने किसी-न-किसी रूप में इतिहास रचा। इनमें सबसे बड़ा नाम भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का है, जिनका निधन 16 अगस्त, 2018 को दिल्ली के एम्स में ही हुआ था।वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने शनिवार को दुनिया को अलविदा कह दिया। एम्स में भर्ती रहने के दौरान उन्होंने 15 दिन तक जिंदगी की जंग लड़ी और मौत को मात देते रहे, लेकिन शनिवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली जिंदगी की जंग हार गए और उनका निधन हो गया।
यह मजह इत्तेफाक है कि इस साल अगस्त महीने में ही दो पूर्व केंद्रीय मंत्रियों (सुषमा स्वराज और अरुण जेटली) का निधन हुआ, जबकि बाबू लाल गौर का निधन भी अगस्त महीने में हुआ। बता दें कि मूलरूप से उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के रहने वाले बाबू लाल गौर ने मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनकर एक इतिहास ही रचा था। वहीं, बिहार के पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा का निधन 19 अगस्त को दिल्ली के द्वारका में हुआ था। उन्हें बिहार में तीन बार मुख्यमंत्री रहने का रुतबा हासिल था।
इनमें पांच, नारायाण दत्त तिवारी, मदन लाल खुराना, शीला दीक्षित, सुषमा स्वराज (दिल्ली), जगन्नाथ मिश्रा (बिहार) और बाबू लाल गौर (मध्य प्रदेश) के सीएम रह चुके थे। इनमें सबसे बड़ा नाम तो नारायण दत्त तिवारी का था, जिन्होंने इस लिहाज से इतिहास रचा था कि वे दो राज्यों (उत्तर प्रदेश और उत्तरांखड) के सीएम रहे इकलौते भारतीय नेता था।
दिल्ली से जुड़े तीन बड़े नेताओं शीला दीक्षित (20 जुलाई), सुषमा स्वराज (6 अगस्त) और अरुण जेटली (24 अगस्त) का निधन हुआ। इनमें दो (शीला दीक्षित और सुषमा स्वराज) नेता तो दिल्ली के पूर्व सीएम रह चुके थे, जबकि अरुण जेटली 1999 से 2012 तक दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष रहे।
माना जाए तो एक साल के भीतर दिल्ली ने तीन नहीं चार बड़े नेताओं (मदन लाल खुराना, शीला दीक्षित, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली) को खोया है, जिनका राज्य स्तर पर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में भी दखल था। चारों ही केंद्रीय मंत्री रहे चुके थे।
इनमें अरुण जेटली और शीला दीक्षित ने तो दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई की थी। केंद्र में वित्त मंत्री जैसा अहम महकमा संभालने वाले अरुण जेटली ने तो दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ से राजनीति के करियर की शुरुआत की थी।
मदन लाल खुराना, शीला दीक्षित और सुषमा स्वराज तीनों का रिश्ता पंजाब से रहा था। जहां सुषमा स्वराज का जन्म अंबाला (फिलहाल हरियाणा में, विभाजन से पहले यह पंजाब में था) में हुआ तो शीला दीक्षित का जन्म पंजाब के कपूरथला में हुआ था। वहीं, मदन लाल खुराना का जन्म पंजाब (पाकिस्तान) में हुआ था। बाद में तीनों की दिल्ली के मुख्यमंत्री बने।
यह महज संयोग है कि भाजपा से जुड़े दोनों मुख्यमंत्रियों (मदन लाल खुराना और सुषमा स्वराज) का निधन रात को हुआ। जब मदन लाल खुराना ने 27 अक्टूबर को अंतिम सांस ली तो वह दिन शनिवार का था और समय रात का था। वहीं, सुषमा स्वराज का निधन भी रात को ही हुआ।
यह भी महज संयोग है कि शीला दीक्षित और मदन खुराना का जिस दिन निधन हुआ वह दिन शनिवार ही था। दोनों का ही अंतिम संस्कार अगले दिन यानी रविवार को हुआ। यह भी संयोग अजब है कि तीनों ही केंद्रीय मंत्री रहे। जहां शीला दीक्षित सीएम बनने से पहले केंद्रीय मंत्री बनीं तो सुषमा स्वराज और मदनलाल खुराना पूर्व मुख्यमंत्री होने के बाद केंद्रीय मंत्री के पद पर रहे।