1917 से 1940 के बीच 12 बार झारखंड आये थे महात्मा गांधी
रांची: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की झारखंड से भी कई यादें जुड़ी हुई है. 1940 में कांग्रेस अधिवेशन में शामिल होने के लिए रामगढ़ आये थे और 30 जनवरी जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद उनकी अस्थियां देशभर के कई राज्यों में पहुंची थीं और बापू का रामगढ़ से जुड़ाव होने के कारण उनकी अस्थियों का अवशेष रामगढ़ भी पहुंचा था.
अस्थियां के अवशेषों को रखकर दामोदर तट पर समाधि स्थल बनाया गया था. आज यह समाधि स्थल गांधी घाट के नाम से प्रसिद्ध है. रामगढ़ थाना वऔर पुलिस लाइन से महज कुछ कदम की दूरी पर ही बापू का समाधि स्थल है.
बापू के समाधि स्थल पर हर साल दो अक्टूबर व 30 जनवरी को मुक्तिधाम संस्था द्वारा श्रद्धांजलि सभा व भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है. शहर के लोग, जन प्रतिनिधिगण सहित पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी यहां आते हैं और बापू को याद करते हैं.
धनबाद में गुप्त धन की थैली भेंट की गयी थी
आजादी की लड़ाई के दौरान धनबाद में बापू को गुप्त धन की एक थैली भी दान की गयी थी. महात्मा गांधी वर्ष 1933 में कोलकाता अधिवेशन से लौटने के क्रम में राजेंद्र प्रसाद के साथ धनबाद के मालकेरा स्टेशन के पास कुमारजोरी की त्रिगुनाइट कोठी पहुंचे थे.
मौजूदा समय में आउटसोर्सिंग कंपनी द्वारा कोयला खनन किये जाने के चलते इस कोठी का अस्तित्व मिट गया है. अब वहां गहरी खुली खदान, अग्नियुक्त ओबी से निकलता धुआं और कुछ जगहों पर झाड़ियां ही नजर आती है. पुराने जानकारों के मुताबिक कोठी के मालिक स्व. मुक्तेश्वर त्रिगुनाइत और भुवनेश्वर त्रिगुनाइत ने आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी को धन से भरी थैली इस कोठी में भेंटकर आजादी के इतिहास में धनबाद का नाम अंकित करा दिया था.
त्रिगुनाइत परिवार ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल आजादी के दीवानों की बैठक अपने आवास पर कराई थी. इस बैठक में स्वतंत्रता संग्राम के अनेक योद्धा त्रिगुनाइत के घर पहुंचे थे. यहां स्वतंत्रता आंदोलन को धार देने को बैठक हुई थी.
त्रिगुनाइत परिवार के वंशजों के मुताबिक गांधी जी के आने की खबर जब अंग्रेजी हुकूमत के नुमाइंदों को लगी तो वे आग बबूला हो गए. लाइसेंसी हथियार जब्त कर लिया गया था. इसके बावजूद त्रिगुनाइत परिवार गांधीजी को सहयोग करते रहे. आजादी के आंदोलन में धन की आवश्यकता को देखते हुए गांधी जी को गुप्त थैली भेंट की गई थी. इसमें काफी धन था.
1917 से 1940 के बीच 12 बार झारखंड आये थे महात्मा गांधी
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 1917 से 1920 के बीच बापू 12 बाद एकीकृत झारखंड (तत्कालीन बिहार का हिस्सा) आये थे. बापू ने न सिर्फ रांची, बल्कि कई शहरों और गांव-कस्बों में जाकर आम लोगों और आदिवासियों से मुलाकात की.
महात्मा गांधी रामगढ़ में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में जाने के लिए रांची पहुंचे थे और कोकर के रहने वाले राय साहेब लक्ष्मी नारायण के साथ उनकी नयी फोर्ड गाड़ी से रांची से रामगढ़ गये थे. यह कार आज भी सुरक्षित रखी है.