ज्योत्सना ,
खूंटी : मेजर ध्यानचंद की स्मृति में प्रत्येक वर्ष मनाया जाने वाला खेल दिवस हमारे राष्ट्रीय खेल से जुड़ा है. लगातार तीन बार ओलंपिक मैच में 1928, 1932 और 1936 में भारत को हॉकी में स्वर्ण पदक दिलाने वाले हॉकी के जादूगर का पूरा विश्व कायल था, यहां तक की जर्मनी का तानाशाह हिटलर भी ध्यानचंद की तारीफ कर चुका था.
खूंटी जिला एक ऐसा जिला है जिसकी अपनी खास उपलब्धियां रही हैं. मेजर ध्यानचंद ने जब देश को 1928 में एम्स्टर्डम में हॉकी में स्वर्ण पदक दिलाया था तब भारत की हॉकी टीम के कप्तान खूंटी के टकरा गांव के मारंग गोमके जयपाल सिंह मुण्डा थे. तब खूंटी की धरती से कई हॉकी के खिलाड़ी उभरकर देश की टीम में शामिल हुए और हॉकी को लोगों ने अपना वर्तमान और भविष्य बनाया.
अब पुनः खूंटी की धरती में हॉकी के नए पौध की तैयारी पूर्व ओलंपियन मनोहर तोपनो, नामजन मुरुम और सुशांति हेरेंज के मार्गनिर्देशन में चलायी जा रही है. यहां ढाई-तीन साल के बच्चों को हॉकी का ककहरा सिखाया जाता है. छोटे छोटे हॉकी स्टिक से बॉल को पास करने, आगे बढ़ाने और गोल पोस्ट तक पहुंचाने की पूरी कला बच्चों को ढाई साल से ही सिखायी जाती है. इनके विद्यालय के रूटीन वर्क में हॉकी, कसरत, कराटे शामिल है. प्रतिदिन एक पीरियड हॉकी, कराटे और कसरत के लिए दिया जाता है. खेल के बाद किताबी ज्ञान भी दिया जाता है.
खूंटी के तिरला पंचायत स्थित बिरसा मुंडा हॉकी एकेडमी में दूर दराज के गरीब अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के बच्चे पढ़ाई करते हैं. यहां एलकेजी से ही बच्चों को हॉकी स्टिक पकड़ना और बॉल को हॉकी स्टिक से पास करना सिखाया जाता है. बचपन से ही हॉकी स्टिक से बॉल को कंट्रोल करने की कला बच्चों में आत्मविश्वास के स्तर को बढ़ाता है साथ ही शारीरिक फिटनेस का भी ध्यान रखा जाता है. कसरत और कराटे भी बच्चों के दिनचर्या बन गए हैं. अंडर -14, अंडर 15 हॉकी के लिए यहां से कई बच्चों का चयन किया गया है. साथ ही कराटे में भी बच्चों ने बाहर जाकर बेहतर प्रदर्शन कर मैडल भी जीता है.
बिरसा मुंडा हॉकी एकेडमी के प्रधानाध्यापक एन मिश्रा बताते है कि वे इंजीनियरिंग की नौकरी के बाद स्कूल संभाल रहे हैं और बच्चों को खेल के साथ ही बेहतर शिक्षा देकर उनको पैरों में खड़ा करने का सपना देखते है. उम्मीद है आने वाले समय मे खूंटी जिला खेल के क्षेत्र में देश का नाम पुनः स्वर्णिम अक्षरों में अंकित करने के लिए तैयार होगा.
राष्ट्रीय खेल होने के बावजूद हॉकी की नर्सरी देश मे कोई ढूंढ़ना चाहे या स्माल साइज हॉकी स्टिक बड़े बड़े मार्केट काम्प्लेक्स से लाना चाहें तो शायद आप देश का हर कोना घूम आएंगे लेकिन आपको सिर्फ स्टैण्डर्ड साइज की ही हॉकी स्टिक मिलेगी. लेकिन खूंटी में आपको एक साथ हॉकी की नर्सरी मिल जाएगी जहां एक साथ 300 छोटे-बड़े हॉकी स्टिक मिल जाएंगे. ढाई तीन साल से ही बच्चों में हॉकी का हुनर सिखलाना निश्चित ही आने वाले समय के लिए राष्ट्रीय खेल हॉकी की बेहतर पौध तैयार करने में सफल होगा.