रवि सिन्हा, रांची. झारखंड में वर्ष 2015 से 2020 के बीच डायन बिसाही (अंधविश्वास) के 4556 मामले दर्ज किये गये है. इस संबंध हत्या से संबंधित 272 मामले दर्ज किये गये है, जिसमें 215 महिलाओं की हत्या कर दी गयी.
गृह विभाग की ओर से यह जानकारी दी गयी है कि डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम के तहत वर्ष 2015 में 818 मामले दर्ज किये गये, वहीं वर्ष 2016 में 688 मामले, 2017 में 668, वर्ष 2018 में 567, 2019 में 978 और 2020 में 837 मामले दर्ज किये गये है.
डायन-बिसाही के ज्यादातर मामले में पुलिसिया छानबीन में यह बात सामने आती है कि पारिवारिक विवाद, जमीन हड़पने या फिर गांव में किसी के बीमार होने पर इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराने की जगह लोग तांत्रिक और ओझा-गुणी के पास पहुंच जाते है और उन्हीं के इशारे पर हत्या की घटना को अंजाम दिया जाता है.
दूसरी तरफ राज्य सरकार की ओर से ऐसी घटनाओं पर अंकुश के लगातार जनजागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001 लागू होने के बाद राज्यभर में डायर कुप्रथा के खिलाफ प्रचार-प्रसार किया जा रहा है और जमीनी स्तर पर इसके उन्मूलन के लिए सरकार निरंतर प्रयासरत है. राज्य सरकार द्वारा इस सामाजिक कुप्रथा के खिलाफ सभी जिलों के साप्ताहिक हाट-बाजार में माईक तथा ऑडियो-वीडियो विजुअल के माध्यम से प्रचार-प्रसार एवं मुहल्लों, गांवों, पंचायतों में नुक्कड़ नाटक के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. वहीं आंगनबाड़ी केंद्रों और विद्यालयों में जागरूक्ता अभियान पोस्टर तथा पेंटिंग एवं बाल राइटिंग कराया जा रहा है. चौराहे, प्रमुख स्थल, बस स्टैंड और रेलवे स्टेशनों पर होर्डिंग स्थापित किया गया है. सभी जिलों में जागरूकता रथ का संचालन किया जा रहा है. इसके लिए चालू वित्तीय वर्ष में 62.71लाख व्यय किया गया और आगामी वित्तीय वर्ष 2021-22 में डायन कुप्रथा के खिलाफ जागरूकता कार्यक्रम में 1.20करोड़ रुपये खर्च किये जाएंगे.