काजल मेहता : एक वक्त की बात है मै बड़ी खामोश सी एक कोने में बैठी थी ना जाने कहां से एक हवा का रुख आया और उसने मेरी पलको को ऐसे सहलाया मानो उसने मेरे दर्द और तकलीफ को भांप लिया हो , कुछ देर बाद जब हवा ने मेरी जुल्फो को जबर्जस्ती मेरे रुकसार पर लाया मै हल्के से मुस्कुरा उठी बेबाक हवा भी दो पल के लिए ठहर सी गई .
कई घंटे बीत गए वो झरोखे फिर लौट कर ना आए मैंने सोचा शायद शाम होने चली इसलिए हवाओं ने अपना रुख मोड़ लिया हो ,मै बस चलने के लिए तैयार ही हुई कि अचानक फिर हल्की सी हवा की छुवन ने मुझे ना जाने के लिए बेबस कर दिया और क्या मै रुक गई ,,,,
हवा के आवाज़ से तो मै वाकिफ थी ही पर अचानक ऐसा लगा किसी ने मेरा नाम पुकारा कोई मुझसे पूछना चाहता है कि मै यू अकेले में क्या सोच रही क्यों अकेले में ही मेरी आंखे नम है जब मैंने उठ कर आस पास देखा कोई नहीं था जो मुझसे बातें करता मै अचंभे में बैठ गई फिर आवाज़ आई ऐसा लग रहा था मानो वो मेरे हर पल हर वक्त से वाकिफ हो इस बार मै घबरा गई और चलने ही वाली थी कि एक आवाज़ एक बार फिर और इस बार किसी ने मुझसे कहा मै हवा हूं ,मै और डर गई और मेरा डरता चेहरा देख शायद हवा को भी रास नहीं आया मुझसे बात करना और तुरंत में जैसे सनाटा सा छा गया हर तरफ ,, मुझे समझ आया के मेरे डर ने मेरे एक दोस्त को मुझसे दूर कर दिया , मै अपने घर की ओर चलदी और इस बार जब समझ आया तो खुद हवाओं को अपने हाले दिल सुनाते चलती रही ..ओर हवाओं ने भी मेरी जुल्फू को मेरे दुपट्टे को उड़ा उड़ा कर मेरा खूब साथ दिया ..
वैसे इंसानी फितरत से बेहतर थी ये हवाएं जो मेरी बाते सुन कर भी खामोशी से मेरे राज को राज रखने में उसे जरा भी तकलीफ ना हुई..