सूत्रों के मुताबिक, 1961 में रक्षा मंत्रालय के अधीनस्थ आवासीय सैनिक स्कूल बनाए गए थे. छठीं से 12वीं कक्षा तक आवासीय स्कूल में लड़के ही पढ़ाई कर सकते थे. लड़कियों को इसमें दाखिला नहीं मिलता था. हालांकि, करीब तीन सालों से लड़कों की तर्ज पर लड़कियों को भी सैनिक स्कूलों में भी दाखिला दिलवाने क मांग उठ रही थी. सैनिक स्कूल में पढ़ाई के दौरान स्कूली छात्रों में देश सेवा की भावना जागृत हो जाती है, क्योंकि पढ़ाई के साथ-साथ कठिन अनुशासन सेना में नौकरी के लिहाज से बिल्कुल फिट बैठता है.
भारतीय सेना में लड़कों के साथ-साथ लड़कियां भी अब अधिकारी के रूप में काम करती हैं. ऐसे में भारतीय सेना में भविष्य बनाने की चाह रखने वाली छात्राओं को सैनिक स्कूल में पढ़ने का मौका मिलता है तो और अधिक सीखने को मिलेगा. सैनिक स्कूल में लड़कियों की संख्या भी आईआईटी की तर्ज पर गर्ल्स सुपर न्यूमेरी कोटे के रूप में बढ़ायी जाएगी, जैसे पहले साल दस फीसदी, अगले साल 15 और फिर 20 फीसदी.