बीएनएन डेस्क : द्वितीय विश्व युद्ध के घाव ऐसे हैं, जो आज तक भर नहीं पाए हैं. इस युद्ध में लाखों की संख्या में लोग मारे गए. ऐसी ही एक दुखद घटना की शुरुआत आज ही के दिन फिलीपींस (Philippines) में हुई थी. दरअसल, फिलीपींस के बाटान प्रायद्वीप (Bataan Peninsula) में 75,000 फिलिपिनो और अमेरिकी सैनिकों ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के आगे सरेंडर कर दिया. इसके बाद जापानी सैनिकों ने इन जवानों को कैदखानों तक ले जाने के लिए 65 मील (लगभग 100 किमी) तक पैदल चलवाया. इस दौरान रास्ते में 10 हजार से ज्यादा जवान मारे गए.
जापान ने सात दिसंबर 1941 को अमेरिकी नौसेना के बेस पर्ल हार्बर पर बमबारी कर इसे तहस-नहस कर दिया. इसके एक दिन बाद जापान ने फिलीपींस में घुसपैठ की शुरुआत कर दी. एक महीने के भीतर जापानियों ने फिलीपींस की राजधानी मनीला पर कब्जा जमा लिया. इस दौरान अमेरिकी और फिलीपीनो सैनिकों को बाटान प्रायद्वीप की तरफ धकेल दिया गया. अगले तीन महीनों तक अमेरिकी और फिलीपीनो सैनिकों को बिना वायुसेना और नौसेना की मदद के यहां रोके रखा गया. हालात इस कदर खराब हो गए कि सैनिकों को भुखमरी और बीमारी का सामना करना पड़ा
सैनिकों की हिम्मत टूटी और जनरल ने किया सरेंडर
बिना किसी मदद के ये सैनिक महीनों से यहां फंसे हुए थे और अब इनकी हिम्मत जवाब देने लगी थी. ये देखकर अमेरिकी जनरल एडवर्ड किंग जूनियर ने अपने 75,000 जवानों के साथ 9 अप्रैल 1942 को बाटान प्रायद्वीप पर जापान के आगे सरेंडर कर दिया. सरेंडर के बाद फिलिपिनो और अमेरिकी सैनिकों को जापानी जवानों द्वारा चारों ओर से घेर लिया गया. अब बंदी बनाए गए इन जवानों को बाटान प्रायद्वीप मारिवल्स से सैन फर्नांडो तक 65 मील की दूरी पैदल चलकर पूरा करने को मजबूर किया गया. इस दौरान गर्मी और उमस अपने चरम पर थी और भूख-प्यास से परेशान इन बंधकों की हालत और अधिक खराब हो गई.
रास्ते में बंदियों पर ढाए गए जुल्म
जापानी सेना ने बंदियों को 100 लोगों की टुकड़ियों में विभाजित कर दिया गया. हर ग्रुप को पांच दिनों के भीतर इस खतरनाक दूरी को पूरा करना था. इस दौरान रास्ते में हर ग्रुप की कमान एक सैनिक के हाथों में दे दी गई. इस सैनिक ने रास्ते में बंदियों पर खूब जुल्म ढाए. भूख-प्यास से परेशान इन सैनिकों को रास्ते में पीटा गया और जो बंदी कमजोर हो गए थे. उन्हें चाकू मार दिया गया. जो लोग इस खतरनाक यात्रा में जिंदा बच गए उन्हें सैन फर्नांडो से ट्रेन के जरिए कैदखानों तक ले जाया गया. इस दौरान अन्य हजारों सैनिकों की मौत बीमारी और भूखमरी से हो गई.
10 हजार से ज्यादा बंदियों की हुई मौत
इस घटना को बाटान मार्च के तौर पर याद किया जाता है. इस पूरे मार्च में हजारों बंदियों की मौत हुई. जब रास्ते में हुई मौत को लेकर जानकारी साझा की गई तो ये बेहद ही चौंकाने वाली थी. इस पूरी यात्रा में 10,000 से ज्यादा बंदियों की मौत हो गई. इस हार से बौखलाए अमेरिकी ने अक्टूबर 1944 में बदला लेते हुए लीटे द्वीप पर घुसपैठ की. फरवरी 1945 में अमेरिकी फौज ने एक बार फिर बाटान प्रायद्वीप पर कब्जा जमाया और मार्च की शुरुआत में मनीला जापान के चंगुल से आजाद हो गया.