चैत्र नवरात्र का आरंभ आज से हो चुका है और यह 22 अप्रैल तक चलेंगे. चैत्र प्रतिपदा पर मां शैलपुत्री की पूजा विधिवत की जाती है और कलश स्थापना की जाती है. पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में साक्षात शैलपुत्री की पूजा देवी के मंडपो में पहले नवरात्र के दिन होती है. पहले दिन कलश स्थापना के साथ-साथ दुर्गासप्तशती का पाठ किया जाता है. पुराणों में कलश को भगवान गणेश का स्वरूप माना गया है इसलिए नवरात्र के पहले दिन ही पूजा की जाती है.माता शैलपुत्री की इस तरह करें पूजा
चैत्र नवरात्र के पहले दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि से निवृत होकर साफ कपड़े पहनें. इसके बाद चौकी को गंगाजल से साफ करके मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो को स्थापित करें. इसके बाद कलश स्थापना करें और मां शैलपुत्री का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद माता को रोली-चावल लगाएं और सफेद फूल मां को चढ़ाएं. फिर सफेद वस्त्र मां को अर्पित करें. मां के सामने धूप, दीप जलाएं और मां की देसी घी के दीपक से आरती उतारें. शैलपुत्री माता की कथा, दुर्गा चालिसा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. जयकारों के साथ पूजा संपन्न करें और मां को भोग लगाएं. इसके बाद सायंकाल के समय मां की आरती करें और ध्यान करें.ऐसा है मां का स्वरूप
मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं. मां के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है. यह नंदी नामक बैल पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान हैं. इसलिए इनको वृषोरूढ़ा और उमा के नाम से भी जाना जाता है. यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है. घोर तपस्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक भी हैं. शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं, जो योग, साधना-तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं.मां शैलपुत्री के पूजा मंत्र
माता शैलपुत्री की पूजा षोड्शोपचार विधि से की जाती है. इनकी पूजा में सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है. नवरात्रि के पहले दिन से लेकर अंतिम नवे दिन तक हर रोज घर में कपूर जलाना चाहिए और उससे ही पूजा करनी चाहिए. मां शैलपुत्री का मंत्र इस प्रकार है…
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्.
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्..
पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुंग कुचाम् .
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम् ॥
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:.
ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:.
घटस्थापना का शुभ मुहुर्त
घटस्थापना यानी पूजा स्थल में तांबे या मिट्टी का कलश स्थापन किया जाता है, जो लगातार नौ दिन तक एक ही स्थान पर रखा जाता है. घटस्थापन हेतु गंगा जल, नारियल, लाल कपड़ा, मौली, रौली, चंदन, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, ताजे फल, फूल माला, बेलपत्रों की माला, एक थाली में साफ चावल चाहिए. इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा सोमवार 12 अप्रैल को प्रातः 8:02 बजे से आरंभ होकर मंगलवार पूर्वाह्न 10:17 बजे तक विद्यमान रहेगी. प्रतिपदा में अमावस्या का कहीं भी स्पर्श नहीं होने के कारण विक्रम संवत् 2078 का प्रवेश और वासन्तिक नवरात्र घटस्थापन 13 अप्रैल सन् 2021 ई. को ही शास्त्र सम्मत रहेगा. घटस्थापन मंदिरों व शक्तिपीठों में मंगलवार तड़के 4:00 बजे से 5:15 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त में विशेष शुभ रहेगा. देवी के विशेष रूप से बनाए गए मंडपों और घरों में प्रातः 9:00 बजे से 10:27 बजे तक वृष लग्न में भी नवरात्रा घटस्थापन उत्तम रहेगा.