BNN DESK: सरहुल आदिवासियों के प्रकृति प्रेम का प्रतीक है और आदिवासियों के प्रकृति प्रेम के प्रतीक के रुप में सरहुल पर्व पूरे झारखंड में मनाया जाता है. इस बार सरहुल 15 अप्रैल को है. यह आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है.
दरअसल, यह पर्व रबी की फसल कटने के साथ ही शुरू होता है इसलिए इसे नए वर्ष के आने की खुशी में मनाया जाता है. हर साल चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को चांद दिखने के साथ ही सरहुल का आरंभ एवं पूर्णिमा के दिन इसका अंत होता है. 15 अप्रैल को ही चैत्र मास की तृतीया तिथि है और इसी दिन सरहुल मनाया जाता है.
सरहुल झारखंड का प्रमुख पर्व है और यह आदिवासियों का भव्य उत्सव है. मूलत: यह प्रकृति की आराधना का पर्व है. सरहुल पर्व को झारखंड की विभिन्न जनजातियां अलग-अलग नाम से मनाती हैं. उरांव जनजाति इसे खुदी पर्व, संथाल बाहा पर्व, मुंडा बा पर्व और खड़िया जनजाति जंकौर पर्व के नाम से मनाते हैं.
ऐसे दें शुभकामनाएं..
-नए साल की शुभकामना. सभी को सरहुल मुबारक.
-सरहुल का त्योहार शुभकामनाए और समृद्धि लाएं और यह आशा है कि यह आनंदमय हो, और आपके दिनों को खुशियों से भर दे.
-यह सरहुल महोत्सव है: – सरहुल की सभी को शुभकामनाएं. विश यू ऑल ए हैप्पी सरहुल
-सभी दोस्तों को सरहुल की शुभकामनाएं . मेरे सभी मित्रों को सरहुल की शुभकामनाएं ..
-प्रकृति, सद्भाव और खुशी का त्योहार के मौके पर सरहुल पूजा की शुभकामनाएं.
-हैप्पी सरहुल, यह सरहुल आपके जीवन में अच्छा स्वास्थ्य और खूब समृद्धि लाएं
-आपका जीवन खुशियों से भर जाए और आप जो भी करें उसमें सफल हो . आपको सरहुल की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ.
-आओ भगवान का सम्मान करें, प्रणाम करें !! आप सभी को सरहुल की हार्दिक शुभकामनाएं!
-आपको और आपके परिवार को बहुत-बहुत शुभकामनाएं सरहुल.
सर्वशक्तिमान आप सभी को स्वास्थ्य, धन और समृद्धि का आशीर्वाद दें.
-यह त्यौहार एक फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है, जो हमेशा के लिए सौभाग्य और समृद्धि लाता है. सरहुल मुबारक हो!
सरहुल पर भी कोरोना का असर, नहीं निकलेगी शोभायात्रा
कोरोना की दूसरी लहर ने सभी पर्व-त्योहार पर असर डालना शुरू कर दिया है. इसकी वजह से अब 15 अप्रैल को निकलने वाली शोभायात्रा को स्थगित कर दिया गया है.
बता दें कि कोरोना संक्रमण के दूसरे चक्र में लगातार हो रही वृद्धि के कारण देशहित व समाज हित को ध्यान रखकर केंद्रीय सरहुल पूजा समिति, पूर्वी सिंहभूम ने यह निर्णय लिया है इस वर्ष शोभायात्रा का आयोजन नहीं किया जाएगा. हालांकि सभी सरना स्थलों में शारीरिक दूरी का अनुपालन करते हुए पारंपरिक विधि-विधान से पूजा की जाएगी.
विदित हो कि प्रतिवर्ष सरहुल के अवसर पर समिति द्वारा एक विशाल शोभायात्रा का आयोजन किया जाता था, जिसमें आदिवासी एव मूलवासी समाज के महिला-पुरुष,बच्चे-बच्चियां,अपने पारंपरिक परिधान एव वाद्य यंत्र के साथ शोभायात्रा में शामिल होते थे.