अक्सर ही भारत की भूमि पर व्यर्थ जलकुंभी की तरह उगे वामपंथी, फ़र्ज़ी नारीवादी और फ़र्ज़ी दलित चिंतक हिन्दू समाज एवं सनातन धर्म को नारी एवं दलित विरोधी बताते नही थकते.
आम तौर पर समाज और इतिहास को गलत तरीके से प्रस्तुत कर सनातन धर्म एवं भारत भूमि की एक नकारात्मक तस्वीर प्रस्तुत करने की पूरी कोशिश की जाती है , आमतौर पर हमारा समाज जो धीरे धीरे अपने इतिहास एवं संस्कृति से विमुख होता जा रहा है इन्ही फ़र्ज़ी वामपंथियों की प्रस्तुत तस्वीर को अपना इतिहास मानने लगता है और स्वधर्म एवम स्वसंस्कार से पथभ्र्ष्ट हो जाता है.
ऐसे विकट समय में लोक आस्था का महापर्व “छठ” जो इन कुटिल मानसिकता वाले लोगो के द्वारा बनाई हर भ्रांति को तोड़ता है और मुहतोड़ जबाब देता है.
सबसे पहले नारीविरोधी तस्वीर को , तक़रीबन 90 प्रतिशत छठव्रती महिला ही होती जिनकी सहायता घर के सभी पुरुष और महिलाएँ मिल कर करते हैं .
दुसरी बात भारतीय समाज का ब्राम्हण को विशेष दर्जा देना , छठ महापर्व एक ऐसा त्योहार है जिसमे न किसी पंडित की जरूरत पड़ती है न किसी मन्त्र की.
तीसरी चीज की भारतीय समाज जातिवादी है और छूत अछूत जैसी परम्परा है , तो इसका जवाब है कि पर्व की सबसे जरूरी सामग्री में से सूप और दौड़ा , समाज के सबसे निचले तबके से आने वाली डोम जाती के लोग ही बनाते हैं , फल सब्जी उगाने वाले ज्यादातर लोग अमूमन पिछड़ी जातियों से ही आते है , बेचने वाले भी वैश्य या अन्य पिछड़े वर्गों के हीं लोग होते हैं , बाजा बजाने वाले भी आम तौर पर चमार नाम के समाज से आते है जोकि अनुसूचित जाती के एक प्रमुख अंग हैं , इसी तरह कहार , कोइरी , कुर्मी , नाई(नाउन) आदि अन्य जातियों को भी रोजगार मिलता है , एवम हर समाज के लोगो का योगदान रहता है .
अक्सर वामपंथियों का कथन होता है कि पूजा पाठ पर ब्राम्हण एवम अन्य ऊपरी जातियां जैसे कायस्थ , भूमिहार , राजपूत आदि का वर्चस्व होता है उसके उलट छठ हर वर्ग हर समाज हर जाति में समान रूप से मनाया जाता है , सभी प्रकार के व्रति एक साथ एक ही घाट पर बिना किसी भेद भाव के अर्घ्य अर्पण करते हैं.
इन बातों से यह तो पूर्णरूपेण साबित होता है कि वामपंथियों , फ़र्ज़ी नारीवादियों एवं फ़र्ज़ी दलित चिंतकों का भारत एवं सनातन धर्म का नकारात्मक चित्रण पूर्णतया मिथकीय है और हमारे गौरवशाली संस्कार एवम संस्कृति के खिलाफ साजिश है.
एक अन्य खास पहलू छठ व्रत में हर तबके को रोजगार के साथ मुद्रा का बहुत बड़े पैमाने पर हस्तांतरण होता है जिससे अर्थव्यवस्था पटरी पर बनी रहती है.
यह लेखक के निजी विचार है
अशोक दुबे
मगध से छठ की शुरुआत : छठ विशेष भाग -1
भारत के 12 अर्क (सूर्य मंदिर)और सूर्य पूजा : छठ विशेष भाग -2
कांच हीं बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय : छठ विशेष भाग – 3
छठ मैया कौन-सी देवी हैं? सूर्य देव के साथ षष्ठी देवी की पूजा क्यों ? : छठ विशेष भाग – 4
सूर्योपासना की परंपरा, लोक कथाएं और मान्यताये : छठ विशेष भाग – 5