रानी लक्ष्मी बाई, बेगम हज़रत महल जैसी वीरांगनाओं के बारे में तो सब जानते हैं। पर वीरांगना ऊदा देवी के बारे में कम ही लोग जानते हैं जिन्होंने लखनऊ के सिकंदर बाग में ब्रिटिश सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया।
लखनऊ में जन्मीं ऊदा देवी की जन्म तारीख के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। पर कहा जाता है कि उनके पति का नाम मक्का पासी था और शादी के बाद ससुराल में ऊदा का नाम ‘जगरानी’ रख दिया गया।
लखनऊ के छठे नवाब वाजिद अली शाह ने बड़ी मात्रा में अपनी सेना में सैनिकों की भर्ती की और ऊदादेवी के पति मक्का पासी जो काफी साहसी व पराक्रमी थे, इनकी सेना में भर्ती हो गए। कहते हैं कि मक्का पासी को देश की आजादी के लिए शाह के दस्ते में शामिल होता देख, ऊदा देवी को भी प्रेरणा मिली और वह वाजिद अली शाह के महिला दस्ते में भर्ती हो गईं।
साल 1857 की क्रांति के समय पूरे भारत में लोग अंग्रेजी सरकार के खिलाफ विद्रोह पर उतर आये थे। 10 जून 1857 को अंग्रेजों ने अवध पर हमला कर दिया था। लखनऊ के इस्माइलगंज में ब्रिटिश टुकड़ी से मौलवी अहमद उल्लाह शाह के नेतृत्व में एक पलटन लड़ रही थी। इस पलटन में ही मक्का पासी भी थे। यहाँ अंग्रेजों से लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हो गए। जब यह खबर ऊदा देवी तक पहुंची तो अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध लड़ने का उनका इरादा और भी मजबूत हो गया।
महिला दस्ते में तो वे पहले ही शामिल थीं। पर इस क्रांति के दौरान उन्होंने बेगम हज़रत महल की मदद से महिला लड़ाकों की एक अलग बटालियन तैयार की।
16 नवम्बर 1857 को सार्जेंट काल्विन कैम्बेल की अगुवाई में ब्रिटिश सेना ने लखनऊ के सिकंदर बाग में ठहरे हुए भारतीय सैनिकों पर हमला बोल दिया। ऐसे में पुरुषों की वेश-भूषा धारण किये हुए ऊदा देवी और उनकी बटालियन ने ब्रिटिश सेना को सिकन्दर बाग के द्वार पर ही रोक दिया।
लड़ाई के समय ऊदा देवी अपने साथ एक बंदूक और कुछ गोला-बारूद लेकर एक पीपल के पेड़ पर चढ़ गयी थीं।
उन्होने हमलावर ब्रिटिश सैनिकों को सिकंदर बाग़ में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया, जब तक कि उनका गोला बारूद समाप्त नहीं हो गया।
उन्होंने दो दर्जन से भी ज्यादा ब्रिटिश सैनिकों को मार गिराया। इसे देख अंग्रेजी अधिकारी तैश में आ गये। उन्हें समझ नहीं आया कि उनके सैनिकों को कौन मार रहा है। तभी एक अंग्रेजी सैनिक ने पीपल के पेड़ के पत्तों के झुरमुट में छिपे एक को देखा जो ताबड़तोड़ गोली बरसा रहा था।
ब्रिटिश सैनिकों ने भी उसी पेड़ पर निशाना साधा और गलियाँ चलायी। गोली लगते ही ऊदा देवी पेड़ से नीचे गिर पड़ीं। उसके बाद जब ब्रिटिश अफसरों ने जब बाग़ में प्रवेश किया, तो उन्हें पता चला कि पुरुष की वेश-भूषा में वह भारतीय सैनिक कोई और नहीं बल्कि एक महिला थी।
कहा जाता है कि ऊदा देवी की वीरता से अभिभूत होकर काल्विन कैम्बेल ने हैट उतारकर शहीद ऊदा देवी को श्रद्धांजलि दी थी। इस लड़ाई के दौरान लंदन टाइम्स अखबार के रिपोर्टर विलियम हावर्ड रसेल लखनऊ में ही कार्यरत थे। सिकंदर बाग में हुई लड़ाई के बाद उन्होंने लंदन स्थित लंदन टाइम्स दफ्तर में खबरें भेजी थीं। इन खबरों में एक खबर सिकंदर बाग के युद्ध की भी थी।
विलियम हावर्ड रसेल ने सिकंदर बाग की लड़ाई को लेकर अपनी खबर में पुरुषों के कपड़े पहनकर एक महिला द्वारा पेड़ से फायरिंग करने और कई ब्रिटिश सैनिकों को मार डालने का जिक्र किया था।
इस लड़ाई का स्मरण कराती ऊदा देवी की एक मूर्ति सिकन्दर बाग़ परिसर में कुछ ही साल पहले स्थापित की गयी है।
आपको शत् शत् नमन।
साभार
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