दशम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के 6 व 8 साल के पुत्रों बाबा फतेह सिंह और जोरावर सिंह जिन्हें 313 साल पहले 27 दिसंबर को क्रूर मुग़ल शासन ने दीवार में चिनवा दिया गया था। सरहिंद के नवाब वज़ीर खाँ ने उन बच्चों को मुसलमान बनने के लिए मजबूर किया था, मगर वीर बालक ना डरे, ना लोभ में अपना धर्म बदलना स्वीकार किया और दुनिया को बेमिसाल उदाहरण देकर वे दुनिया में अमर हो गए।
चमकौर की लड़ाई में गुरू जी से इजाजत लेकर बड़े साहिबजादें भी शामिल हो गए। वीरता पूर्वक लडते हुए 18 वर्षीय अजीतसिंह और 15 वर्षीय जुझारसिंह भी वीरगति को प्राप्त हो गए…
विश्व के इतिहास में छोटे बालकों की इस प्रकार निर्दयतापूर्वक हत्या की कोई दूसरी मिसाल नहीं है। दूसरी ओर बालकों द्वारा दिखाया गया अपूर्व साहस संसार के किसी भी देश के इतिहास में नहीं मिलता।
धन्य हैं गुरुगोविन्दसिंह जी, धन्य है गुरुगद्दी परम्परा, धन्य हैं माता गुजरी, धन्य हैं गुरु पुत्र और धन्य है हमारी पुण्यधरा।
कहीं पर्वत झुके भी हैं, कहीं दरिया रुके भी हैं
नहीं रूकती जवानी है, नहीं रूकती रवानी है।।
गुरु गोविन्द के बच्चे, उमर में थे अभी कच्चे
मगर थे सिंह के बच्चे, धरम ईमान के सच्चे
गरजकर बोल उठते थे, यूँ सिंह सा मुख खोल उठते थे
हमारे देश की जय हो, हमारे धर्म की जय हो
पिता दशमेश की जय हो, श्री गुरुग्रन्थ की जय हो।।
जोरावर जोर से बोला, फतेहसिंह शोर से बोला
रखो ईटें और गारे, चुनो दीवार हत्यारे….
निकलती साँस बोलेगी, हमारी लाश बोलेगी
यही दीवार बोलेगी, हजारों साल बोलेगी
हमें निज देश प्यारा है, हमें निज धर्म प्यारा है
पिता दशमेश प्यारा है, श्री गुरुग्रंथ प्यारा है।।
गुरु गोबिंद सिंह जी और चारों साहिबज़ादों को शत् शत् नमन श्रद्धांजलि पहुँचे…..जो बोले सो निहाल सत् श्री अकाल…वाहे गुरु जी दा खालसा वाहे गुरु जी दि फ़तेह..
साभार – अभ्युदय