आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि दरअसल आज जिसे मक्का कहते है वो असल में असली मक्का है ही नहीं!
एक खोजके नतीजे जो इस्लामी दुनिया के बुद्धिजीवियों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। इस खोज की मानें तो इस्लाम के उदय की कहानी और लोकेशन भी बदल जायेगा।
आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि दरअसल आज जिसे मक्का कहते है वो असल में असली मक्का है ही नहीं!
इस खोज में अपना 30 वर्षो का जीवन झोंकने वाले का नाम हैं डान गिब्स। उन्होंने मिश्र से लेकर सऊदी अरब के विश्वविद्यालयों में हज़ारों दस्तावेजों से लेकर कई जगहों की जमीनी छानबीन की, हर आधुनिक तकनीक से इस्लाम के मूल से जुड़ी प्रचलित तथ्यों को जांचा परखा, इसके बाद जो नतीजा सामने आया है वह दिमाग हिला देने वाला है।
आप यह जानकर चौंक जाएंगे कि ईसवी सन 810 से पहले मक्का का कोई वजूद ही नहीं था। कुरान में भी यह शब्द सिर्फ एक बार आया है। उस समय के व्यापारी / कारोबारी मार्ग पर यह था ही नहीं। जमीन की खोदबीन से प्राप्त पुरातात्विक प्रमाण भी उनके पक्ष में हैं।
पैगम्बर की मक्का से मदीना की हिजरत, मदीना में ताकतवर होना और फिर मक्का लौटना, इस शुरुवाती पड़ाव के बाद खलीफाओं की मारकाट और कत्लेआम की लंबी श्रृंखला है।
अपने सुना होगा कि मक्का को सभी शहरों मां कहा गया है। पुराने दस्तावेजो के अनुसार तो यहाँ हरी भरी वादी, घास और पेड़ो से आच्छादित घाटियां होनी चाहिए।
लेकिन क्या मक्का में यह सब था? यहां की मिट्टी के टेस्ट दूर दूर तक ऐसा कोई सबूत नहीं देते। दरअसल वहां कभी कोई वनस्पति थी ही नहीं। पुराने जमाने के एक पेड़ तक नहीं है वहाँ। पुरातात्विक खुदाई में ऐसे किसी शहर का नामोनिशान नहीं है, जो दीवारों के शहर था।
इस्लाम के पूर्व के नकसो में मक्का कहीं नजर नहीं आता। पैगम्बर के 120 साल बाद तक अरब के किसी भी पड़ोस देश में मक्का के बारे में सुना भी नहीं गया था। जबकि दस्तावेजों में मक्का के नाम से दीवारें, खेत , बगीचे और पुराने मंदिरों का विवरण जरूर लिखे मिले।
अगर कहानियां काल्पनिक नहीं है तो गिब्स का सवाल है कि तब ऐसा खूबसूरत शहर कहाँ होगा?
हज और उमरा जैसी तीर्थ यात्राएं इस्लाम के पहले भी अरब के परंपरा में थीं। पैगम्बर के दादा भी उमरा करते थे। वहां मंदिर थे, मूर्तियां थी। यह काल्पनिक बिल्कुल भी नहीं है। अगर वह जगह यह वर्तमान मक्का नहीं है तो कहां है? आखिर इस्लाम के पूर्व अरब में क्या हो रहा था? कारोबार और धार्मिक चहल पहल का केंद्र कौन सा था? और वह कहां विलुप्त हो गया।
हम सब जानते है कि दुनिया भर की मस्जिदों में नमाज के लिए किल्बा की दिशा आज मक्का के तरफ है। गिब्स की टीम ने अरब और अरब के आसपास की पुरानी 11 मस्जिदों की लोकेशन पर पड़ताल की । ये मस्जिदें मिश्र, लेबनान, यमन, इजरायल, सीरिया, इराक और जॉर्डन में है।
ये सब इस्लाम के उदय के शुरुवाती 100 वर्षों में बनाये वाये थे। गूगल अर्थ के जरिये इनकी किब्ला की दिशा की तरफ सीधी रेखा ग्लोब पर खिंची गई। वे यह देख कर हैरान हो गए कि इनकी दिशा तो मक्का के तरफ है ही नहीं। चारो तरफ से इन सभी मस्जिदों का किब्ला एक नई लोकेशन की तरफ है और वह जगह है – पेट्रा (Petra).।
बस फिर क्या था, सारे विशेषज्ञों ने पेट्रा में डेरा डाल दिया। हर पहाड़ी चट्टानों को गौर से देखा। जमीन के कोने कोने की छानबीन की। मिट्टी के नमूने जांचे। जो नतीजे सामने आए उन्हें दस्तावेजी सबूतों से मिलाया। नतीजे देख कर अरब के दानिशमंद भी हैरान हैं।
पुराने दस्तावेजों में जिस हरी भरी घाटी, पेड़ पौधे, खेत, पानी और नदियों का जिक्र है, दीवारों के भी जिक्र है, वह हर चीज उसी वेवस्था में पेट्रा में अपनी कहानी खुद कहती हुई मिली।
जिस हिरा(HIRA) पहाड़ को मक्का में माना जाता है, वह दरअसल में यहां सही कोण पर है। उस गुफा के भी रहस्य खुला, जहां पैगम्बर और फरिश्ते की मिलने की बात कही जाती है।
गुलाबी लाल चट्टानों पर चांद की आकृति एक मेहराब में आज भी है। इकट्टा होने के लिए मस्जिद अल हराम थी। वह एक विशाल प्रांगण था, जो दो पहाड़ो के बीच 20 से ज्यादा चौकोर पत्थर से कवर किया गया था। ये चट्टाने उस शहर के नक्शे को पूरा करती है जिसे शहरों की माता कहा गया है।
हिंदुओं का दावा रहा है कि इस्लाम पूर्व काबा में कभी शिवलिंग था और सैकड़ो मूर्तियों में से एक इसकी भी पूजा होती थी। ताज्जुब की बात है कि पेट्रा में सदियों पुरानी चट्टानों में शिवलिंग और उससे लिपटे नाग जैसी संरचना भी मिली है और उस पवित्र गुफा में वैसा ही चंद्र, जो शिव की जटाओं में शोभायमान है।
हालांकि इस समानता को डान गिब्स नहीं मानते। उनका कहना है कि नाग और शिवलिंग के सयोंग सदियों से हवाओं के कारण पत्थरों पर उभर आई हैं।
ऐसी ही समानताये ग्रीक, रोमन और मेसोपोटामिया के स्थानीय देवताओं की भी पेट्रा में है। इसका कारण यह है कि इन सब इलाकों के व्यापारी काफिलों में जय करते थे और इसी मार्ग का प्रयोग करते थे। उनके साथ उनकी संस्कृति और विरासत को भी यहां फकने फूलने का मौका मिला था।
गिब्स को यकीन है कि असल किब्ला यहीं था। पैगम्बर यहीं के थे। काबा यहीं था और यह था इस्लाम का जन्म स्थान।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि , मौजूदा मक्का कहाँ से और कब प्रकट हो गया?
इस सवाल का जवाब पैगंबर के अवसान के बाद हुई खूनी जंगों की धूल-धक्कड़ में खोया हुआ है। पैगंबर के अवसान के बाद पेट्रा के गवर्नर अब्दुल्ला इब्न जुबैर ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया। दमिश्क से इस्लामी दुनिया पर राज कर रहे उम्मैद खलीफा ने जुबैर के खिलाफ फौज खड़ी कर दी।
जुबैर ने इस शहर को ही तबाह कर दिया। मंदिर जमीन तक खोद डाले। पवित्र काले पत्थर को वह रेशमी कपड़े में बाँधकर ले गया। यह अल-तबारी के विवरण हैं कि इस जंग के दौरान दमिश्क में खलीफा की मौत हो गई और उसके 13 साल के बेटे की ताजपोशी हुई। 40 दिन बाद उसे भी कत्ल कर दिया गया। फौज को दमिश्क लौटने का हुक्म हुआ।
गिब्सन अब दूरी का आकलन करते हैं। मक्का से दमिश्क की दूरी 1400 किलोमीटर है। कम से कम 43 दिन का लंबा सफर। सियासी मारकाट और उठापटक के उस भीषण दौर में एक फौज काे इतनी लंबी दूरी लाँघना नामुमकिन था। अगर वह शहर पेट्रा है तो यह गुत्थी सुलझी हुई ही है।
दस्तावेजों में इसी दौरान दर्ज है कि पवित्र शहर में इब्न जुबैर घोड़े और ऊँट लेकर आया। यह बरबाद हो चुके पवित्र शहर को खाली कराने का इंतजाम था। नया काबा अब सऊदी अरब में बनना था। अल-तबारी सबसे भरोसेमंद सूत्र माना गया है, जिसने इस दौरान हर साल के ब्यौरे लिखे
जहाँ हर साल के ब्यौरे काफी विस्तृत और कई पन्नों में हैं, वहीं 70वें साल के इस अहम घटनाक्रम को कुछ पंक्तियों में ही समेट दिया गया है। विशेषज्ञों का सवाल है कि क्या जानबूझकर बाद में इतिहास से कुछ गायब किया गया? 6 माह और 17 दिन की जंग में अल अज्जाज से इब्न जुबैर हार गया।
उम्मैया खलीफाओं के समय किब्ला की दिशा पेट्रा की तरफ है। अब्बासी खलीफाओं के आते ही बदलाव होते हैं। किब्ला की दिशा मक्का की तरफ की जाती है। पुरानी मस्जिदों में किब्ला की नई दिशा बताने के लिए दिशा सूचक दीवारों पर टाँगे जाते हैं। नई मस्जिदों का नक्शा नई दिशा के मुताबिक बनने लगता है। इनमें किब्ला की दिशा स्पष्ट करने के लिए ताक के निर्माण की प्रथा 79 साल बाद शुरू होती है। कूफा और मदीना वाले मक्का की तरफ मुँह करने लगे। बागियों के मुँह पेट्रा की तरफ रहे।
इस्लाम की दूसरी सदी में बनी बसरा और कुछ सीरियन मस्जिदों के निर्माता भ्रम में रहे। उनका किब्ला आप गूगल सर्च करेंगे तो पेट्रा और मक्का के बीच भटका हुआ पाएँगे। पुराने मुसलमानों की आस्था पेट्रा में रही। कई टुकड़ों में बट चुके इस्लामी धड़ों में नए लोगों ने मक्का की तरफ मुँह किया।
सन् 754 में खलीफा अल मंसूर ने बगदाद को अपना ठिकाना बनाया। गोलाकार आकृति में एक नया शहर बसा, जो दो किमी के घेरे में 767 में बनकर तैयार हुआ। यहाँ मस्जिदों का किब्ला मक्का की तरफ किया गया।
दिलचस्प यह है कि उम्मैयदों और अब्बासी खलीफाओं के राज में जो हमलावर लुटेरे स्पेन, अफ्रीका से लेकर भारत में सिंध तक इस्लामी परचम लेकर कब्ज़ा जमाने गए, वहाँ की समकालीन मस्जिदों में किब्ला की दिशा उस दौर के इस बड़े बदलाव की कहानी बयान करती है
आज के पाकिस्तान में एक पुरानी मस्जिद के अवशेष मक्का में अपना किब्ला दर्शाते हैं। खलीफाओं की आपसी लड़ाई में पुराने दस्तावेज़ जला डाले गए। अरब में यह साहित्यिक शून्यता का समय कहा गया। अब्बासियों ने अपने ढँग से लिखवाया। इस्तांबुल से लेकर समरकंद में अब्बासियों के समय की कुरान की प्रतियाँ मिलती हैं, जो पैगंबर के दो सौ साल बाद वजूद में आईं।
गिब्सन के शोध के मुताबिक सन् 713 के आसपास मुसलमानों का पवित्र केंद्र मक्का हो जाता है। पेट्रा इतिहास के अंधेरे में खो जाता है। पेट्रा को पुरानी भाषा में BECCA भी कहा जाता था। अरबी लिपि में एक बेहद मामूली बदलाव से मूल शब्द MECCA बनता है। इस्लाम की युवा पीढ़ी के चर्चित व्याख्याकार हारिस सुल्तान और गालिब कमाल भी इस्लामी अतीत से जुड़ी इस अहम खोज पर अपने यूट्यूब चैनलों पर बहस कर रहे हैं।
जो भी हो, लेकिन 713 के आसपास का यह वही मनहूस समय है, जब मुहम्मद बिन कासिम नाम का एक हमलावर लुटेरा सिंध पर धावा बोलता है। सिंध के मालामाल शहर कुछ ही महीनों के अंतराल से अरब के जाहिलों के हाथों बरबाद कर दिए गए। यह भारत भूमि पर एक लंबे ग्रहण की शुरुआत का समय है…
गिब्सन के शोध पर केंद्रित यह सवा घंटे की डॉक्युमेंटरी देखकर ही हमारे पोस्ट पर यकीन करें :-