झारखण्ड भारत का एक राज्य है। राँची इसकी राजधानी है। बिहार के दक्षिणी हिस्से को विभाजित कर 15 नवंबर 2000 को झारखंड 28वां राज्य बनाया गया . लगभग संपूर्ण प्रदेश छोटानागपुर के पठार पर अवस्थित है। झारखंड की सीमाएँ उत्तर में बिहार, पश्चिम में उत्तर प्रदेश एवं छत्तीसगढ़, दक्षिण में ओड़िशा और पूर्व में पश्चिम बंगाल को छूती हैं। संपूर्ण भारत में वनों के अनुपात में प्रदेश एक अग्रणी राज्य माना जाता है।
परिचय
झारखंड के कुड़माली भाषा के अनुसार झाड़ का तात्पर्य “जंगल-झाड़ी” से है, इसलिए इसे झाड़ जंगलों का प्रदेश झाड़खंड कहते है। “छोटानागपुर पठार” में बसा होने के कारण इसे “छोटानागपुर प्रदेश” भी बोलते हैं।
जनजातीय क्षेत्रों के लिये झारखण्ड शब्द का प्रयोग पहली बार 13 वीं शताब्दी के एक तामपत्र में हुआ है। माहभारत काल में इस क्षेत्र का वर्णन ठपुण्डरिक देश’ के नाम से हुआ है जबकि मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने इस क्षेत्र का उल्लेख झारखण्ड नाम से किया है। मल्लिक मुहम्मद जायसी ने अपनी शास्वत रचना पद्मावत में झारखण्ड नाम की चर्चा की है।
इतिहास
प्राचीन काल
इतिहास के दृष्टिकोण से झारखंड अति विशिष्ट राज्य है। राज्य के हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड में इस्को गुफाएं हैं। इन्हें लोग ‘इसको गुफा’ भी कहते हैं।
यहां 5000 साल पुराने शैल चित्र मौजूद हैं। इन पर हथियार और जानवरों की तस्वीरें बनी हुई हैं। इनमें महिलाएं और पुरुष दोनों हथियार उठाए देखे जा सकते हैं। ये चित्र महिला-पुरुष समानता को दिखाते हैं।
माना जाता है कि रामगढ़ शासन के छठे राजा हेमेंट सिंह(1642) बादम को अपना निवास बनाया था। कहते हैं कि जब इन राजा की शादी हुई..तो उन्होंने अपनी रानी के साथ इसी गुफा में अपना हनीमून मनाया था।
इस राज्य में ईसा पूर्व 1400 काल के लोहे के औज़ार और मिट्टी के बर्तन के अवशेष मिले हैं। 325 ईसा पूर्व में भारत के उत्तरी इलाके बिहार से उत्पन्न मौर्य साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। फणि मुकुट राय ने छोटानागपुर में नागवंशी वंश की स्थापना की थी।
मध्यकाल
मध्यकाल में इस क्षेत्र में चेरो राजवंश और नागवंशी राजवंश राजाओं का शासन था। मुगल प्रभाव इस क्षेत्र में सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान पहुंचा जब 1574 में राजा मानसिंह ने इस पर आक्रमण किया था।
दुर्जन साल मध्य काल में छोटानागपुर महान नागवंशी राजा थे, उनके शासन काल में वे मुगल शासक जहांगीर के समकालीन के सेनापति ने इस क्षेत्र में आक्रमण किया था।
राजा मेदिनी राय ने, 1658 से 1674 तक पलामू क्षेत्र पर शासन किया। चेरो राजवंश के कमजोर होने के साथ ईस्ट इण्डिया कम्पनी का इस क्षेत्र में दखल हुआ। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने चेरो के पालामू किले पर कब्जा कर लिया।
आधुनिक काल
1765 के बाद यहां ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का प्रभाव पड़ा। आंग्ल-मराठा युद्ध के बाद छोटा नागपुर पठार के कई राज्य ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधीन हो गए। उनमें नागवंश रियासत, रामगढ़ रियासत, गागंपुर, खरसुआं, साराईकेला, जाशपुर, सरगुजा आदि शामिल थे।
ब्रिटिश दासता के अधीन यहाँ काफी अत्याचार हुए और अन्य प्रदेशों से आने वाले लोगों का काफी दबदबा हो गया था। इस कालखंड में इस प्रदेश में ब्रिटिशों के खिलाफ कई क्रांति हुए, इनमें से कुछ प्रमुख क्रांति थे:–
प्रमुख क्रांति
1769-1805: चुआड़ क्रांति रघुनाथ महतो के नेतृत्व में
1772–1780: पहाड़िया क्रांति
1780–1785: तिलका मांझी के नेतृत्व में मांझी क्रांति जिसमें भागलपुर में 1785 में तिलका मांझी को फांसी दी गयी थी।
1795–1821: तमाड़ क्रांति
1793–1796: मुंडा क्रांति रामशाही के नेतृत्व में
1800–1802: मुंडा क्रांति
1812: बख्तर साय और मुंडल सिंह के नेतृत्य में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बिरुद्ध क्रांति
1770–1771: चेरो क्रांति पलामू के जयनाथ सिंह के नेतृत्व में
1832–1833: खेवर क्रांति भागीरथ, दुबाई गोसाई, एवं पटेल सिंह के नेतृत्व में
1833–1834: भूमिज क्रांति वीरभूम के गंगा नारायण सिंह के नेतृत्व में
1855: लार्ड कार्नवालिस के खिलाफ सांथालों की क्रांति
1855–1860: सिद्धू कान्हू के नेतृत्व में सांथालों का क्रांति
1857: नीलांबर-पीतांबर का पलामू में क्रांति
1857: पाण्डे गणपत राय,
ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, टिकैत उमराँव सिंह, शेख भिखारी एवं बुधु बीर का सिपाही क्रांति के दौरान आंदोलन
1874: खेरवार आंदोलन भागीरथ मांझी के नेतृत्व में
1880: खड़िया क्रांति तेलंगा खड़िया के नेतृत्व में
1895–1900: बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडा क्रांति
(नोट :- हमने यहां सभी वोद्रोह को क्रांति का नाम दिया है। ऐसा इसलिए कि यह इतिहास हमारा है। हमने अपनी आजादी के लिए क्रांति की लड़ाईया लड़ी तो हमारे दृष्टिकोण से यह विद्रोह कैसे हुआ। हां अंग्रेजो और गैर भारतीय के दृष्टि से देखे तो इन सभी क्रांति को विद्रोह कहा जा सकता है।)
इन सभी क्रांति को भारतीय ब्रिटिश सेना द्वारा फौजों की भारी तादाद से निष्फल कर दिया गया था। इसके बाद 1914 में जातरा भगत के नेतृत्व में लगभग छब्बीस हजार आदिवासियों ने फिर से ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ क्रांति किया था जिससे प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने आजादी के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया था।
झारखण्ड राज्य की मांग का इतिहास
यह लगभग सौ साल से भी पुराना है जब 1938 इसवी के आसपास जयपाल सिंह जो भारतीय हॉकी खिलाड़ी थे और जिन्होंने खेलों में भारतीय हॉकी टीम के कप्तान का भी दायित्व निभाया था, ने पहली बार तत्कालीन बिहार के दक्षिणी जिलों को मिलाकर झारखंड राज्य बनाने का विचार रखा था। लेकिन यह विचार 2 अगस्त सन 2000 में साकार हुआ जब संसद ने इस संबंध में एक बिल पारित किया। राज्य की गतिविधियाँ मुख्य रूप से राजधानी राँची और जमशेदपुर, धनबाद तथा बोकारो जैसे औद्योगिक केन्द्रों से सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं। सन 2000, 15 नवम्बर को झारखंड राज्य ने मूर्त रूप ग्रहण किया और भारत के 28 वें प्रांत के रूप में प्रतिस्थापित हुआ ।
जनजातीय गौरव दिवस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इस बार सोमवार (15 नवंबर, 2021) को इसे मनाया जा रहा है। इसी अवसर पर भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नामकरण गोंड शासक रानी कमलापति के नाम पर किया गया है। पीएम मोदी उस दिन मध्य प्रदेश में मौजूद रहेंगे। आइए, यहाँ हम बिरसा मुंडा के अलावा उन जनजातीय नायकों की बात करते हैं, जिन्हें पीएम मोदी याद करेंगे।
आदिवासी समाज के 11 नायक
रघुनाथ शाह और शंकर शाह: मध्य प्रदेश का गोंडवाना, जिसे वर्तमान में जबलपुर के नाम से जाना जाता है, वहाँ के राजा शंकर शाह और उनके बेटे कुँवर रघुनाथ शाह ने अंग्रेजों से लड़ते हुए बलिदान दे दिया था। सितंबर 2021 में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने इन जनजातीय नायकों के सम्मान में ‘जनजातीय गौरव समारोह’ में शिरकत की थी। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी हुकूमत ने दोनों को तोपों से बाँधकर उनकी निर्मम हत्या कर दी थी। दोनों ने अपने आसपास के राजाओं को अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट किया था। उनकी कविताओं ने शहरवासियों में विद्रोह की अग्नि सुलगा दी थी। हालाँकि, एक गद्दार के कारण इन दोनों को अंग्रेजों ने पकड़ लिया था।
खाज्या नायक: ये जनजातीय नायक गुमा नायक नाम के एक चौकीदार के बेटे थे। अंग्रेजों से लोहा लेते हुए ये बलिदान हुए थे। अंग्रेजों की भील-गोंड पलटन में सिपाही रहे खाज्या नायक सेंधवा-जामली चौकी से सिरपुर तक 24 मील लम्बे मार्ग की निगरानी का कार्य सौंपा गया था। 1831-51 तक नौकरी के बाद उन्होंने एक लुटेरे को एक व्यक्ति को लूटते देखा तो उस पर हमला किया। उसकी मौत हो गई तो इन्हें नौकरी से निकाल कर जेल भेज दिया गया। 1857 के युद्ध में उन्हें वापस बुलाया गया, लेकिन कैप्टन बर्च नाम के एक अंग्रेज अधिकारी ने उनके जाति-समुदाय और रंग-रूप पर भद्दी टिप्पणियाँ की। उन्होंने अपने साथियों के साथ अंग्रेजों को लूटा और कइयों को मार गिराया। बाद में 1860 में एक मुठभेड़ में वो बलिदान हुए। बड़वानी में उनका बड़ा प्रभाव था।
सीताराम कँवर: 1857 की क्रांति के दौरान उन्होंने बड़वानी राज्य के नर्मदा पार के क्षेत्र (जिनमें आज का निमाड़ क्षेत्र सम्मिलित है) में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बड़े विद्रोह का नेतृत्व किया था। सतपुरा श्रेणी के भीलों में उन्होंने आज़ादी की अलख जगाई। तांत्या टोपे के साथ उनके संपर्क थे। 9 अक्टूबर, 1958 को उनका बलिदान हुआ था। उन्होंने एक साथ कई जगहों पर विद्रोह किया। होल्कर के राजा ने अंग्रेजों के साथ मिल कर इन्हें मारने का कुचक्र रचा। दिलशेर खान को एक बड़ी सेना के साथ भेजा गया था। गाँव वालों को बचाने के लिए ये अंग्रेजी सेना से भिड़ गए। उस युद्ध में 20 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी बलिदान हुए थे।
भीमा नायक: इन्हें ‘निमाड़ का रॉबिनहुड’ भी कहा जाता है। जनजातीय लोगों को एकजुट कर 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से भिड़ने वाले भीमा नायक की कोई तस्वीर/स्केच तक अंग्रेजों के हाथ नहीं लग पाई। बड़वानी रियासत से लेकर महाराष्ट्र के खानदेश तक उनका प्रभाव था। 1857 के अम्बापानी युद्ध में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। तात्या टोपे ने निमाड़ में उनसे मुलाकात की थी। 29 दिसम्बर, 1876 को पोर्टब्लेयर में उन्होंने अंतिम साँस ली। एक गद्दार की मुखबिरी के कारण उन्हें पकड़ा गया था।
रघुनाथ सिंह मंडलोई: ये खरगोन के जनजातीय समाज के ग्राम टांडाबरुड़ के रहने वाले थे। वो भिलाला जनजाति के नायक थे। अक्टूबर 1858 में बीजागढ़ के किले में अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया था। इसी दौरान उन्हें बंदी भी बना लिया गया था। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूँका हुआ था।
सुरेंद्र साय: मात्र 18 वर्ष की उम्र से ही इन्होने अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठा लिया था। इनका जन्म 23 जनवरी, 1809 को संभलपुर के पास खिंडा में हुआ था। उन्होंने गोंड और बिंझल जनजातीय समुदाय के लोगों के हक़ की आवाज़ उठाई। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने देश के लिए योगदान दिया। इसके 5 वर्षों बाद उन्हें अंग्रेजों ने पकड़ लिया। मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के असीरगढ़ किले में उन्हें कैद कर के रखा गया था। 23 मई, 1884 को उनका निधन हुआ। ये जनजातीय राजवंश के थे, लेकिन अंग्रेजों ने इन्हें नज़रअंदाज़ कर के राजा के निधन के बाद रानी को सत्ता सौंप दी और रिमोट से शासन चलाने लगे। डेबरीगढ़ में भी उन पर अग्रेजों ने जानलेवा हमला किया था, लेकिन वो वहाँ से किसी तरह बच निकले थे।
टंट्या भील: अंग्रेज इन्हें डकैत मानते थे, लेकिन ये एक स्वतंत्रता सेनानी थे। वो अंग्रेजों का धन लूट लेते थे और इसे गरीबों में बाँट देते थे। 19 अक्टूबर, 1889 को इन्हें अंग्रेजों ने मौत की सज़ा दे दी थी। इन्हें फाँसी से लटका दिया गया था। इनका जन्म बरदा तहसीन के पंधाना में 1840 के करीब में हुआ था। अंग्रेजों ने इनका साथ छल किया था। इन्हें माफ़ी देने के नाम पर पकड़ लिया गया था। 12 वर्षों तक इन्होने आक्रांता अग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। जनता भी इनका साथ देती थी। सभी उम्र के लोग प्यार से उन्हें ‘मामा’ कहते थे। गुरिल्ला युद्ध में पारंगत रहे टंट्या भील ने कई बार जेल तोड़ डाली थी। उनकी बहन के पति ने ही गद्दारी कर के उन्हें पकड़वा दिया था।
मंशु ओझा: ये इन जनजातीय योद्धाओं से कुछ पीढ़ी आगे के नायक हैं। 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान इन्होने अंग्रेजों की नाक में दम किया था। नवंबर 1942 में अंग्रेजों ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया था। नरसिंहपुर जेल में इन्हें कैद कर दिया गया। कड़ी यातनाएँ दी गईं। लेकिन, इन्होंने अपने सपनों का आज़ाद भारत देखा। 28 अगस्त, 1981 को इनका निधन हुआ। रातामाटी में इनका जन्म हुआ था, लेकिन परिवार बाद में घोड़ाडोंगरी के बैतूल में रहने लगा। निर्धनता थी ही, शिक्षा-दीक्षा भी नहीं हो पाई थी। देशभक्ति गीत गाते हुए इन्होंने अपने साथियों के साथ मिल कर रेल की पटरियाँ उखाड़ी थीं। इनके पिता का नाम उमराव ओझा था।
रानी दुर्गावती: इनका जन्म 5 अक्टूबर, 1524 ईस्वी को हुआ था। ये अंग्रेजों के शासन से कई 3 सदी पहले की वीरांगना थीं। मध्य प्रदेश के गोंडवाना में उनका शासन था। जिस गढ़मंडला राज्य पर उनका शासन था, उसका केंद्र जबलपुर में था। उनके पति गौड़ राजा दलपत शाह की असामयिक मृत्यु हो गई थी। रानी दुर्गावती ने अपने नाबालिग बेटे वीर नारायण को गद्दी पर बिठाया। हालाँकि, शासन और राजकाज वही संभाला करती थीं। इलाहाबाद के मुग़ल आक्रांता आसफ खान के साथ इनका युद्ध हुआ। इनका शसन 1550-1564 तक चला था। अकबर के आदेश पर जब मुगलों ने उन पर आक्रमण किया, तब उन्होंने होने दीवान से कहा था कि गुलाम रहने से बेहतर है युद्ध के मैदान में सम्मान से मरना। युद्ध में इन्होंने मैदान छोड़ने या दुश्मन के हाथों मरने से अच्छा खुद की जान लेना उचित समझा।
मुड्डे बाई: मध्य प्रदेश के जनजातीय लोगों के लिए 9 अक्टूबर का दिन काफी खास रहता है, क्योंकि इस दिन 1930 में अंग्रेजों के विरुद्ध 400 आदिवासियों ने मिल कर जंगल सत्याग्रह आरंभ किया था।ग्रामीणों के इस सत्याग्रह से बौखलाए अंग्रेजों द्वारा मुड्डे बाई, रेनो बाई, देभो बाई और बिरजू भोई की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस गोलीकांड ने अंग्रेजों की क्रूरता का नया अध्याय लिखा। अंग्रेजों ने जंगल पर जनजातीय लोगों के अधिकार को कुचलते हुए उनके लकड़ी काटने तक पर प्रतिबंध लगा रखा था।
भौगोलिक स्थिति एवं जलवायु
प्रदेश का ज्यादातर हिस्सा छोटानागपुर पठार का हिस्सा है जो कोयल, दामोदर, ब्रम्हाणी, खड़कई, एवं स्वर्णरेखा नदियों का उद्गम स्थल भी है जिनके जलक्षेत्र ज्यादातर झारखण्ड में है। प्रदेश का ज्यादातर हिस्सा वन-क्षेत्र है, जहाँ हाथियों एवं बाघों की बहुतायत है।
मिट्टी के वर्गीकरण के अनुसार, प्रदेश की ज्यादातर भूमि चट्टानों एवं पत्थरों के अपरदन से बनी है। जिन्हें इस प्रकार उप-विभाजित किया जा सकता है:-
लाल मिट्टी, जो ज्यादातर दामोदर घाटी, एवं राजमहल क्षेत्रों में पायी जाती है।
माइका युक्त मिट्टी, जो कोडरमा, झुमरी तिलैया, बड़कागाँव, एवं मंदार पर्वत के आसपास के क्षेत्रों में पायी जाती है।
बलुई मिट्टी, ज्यादातर हजारीबाग एवं धनबाद क्षेत्रों की भूमि में पायी जाती है।
काली मिट्टी, राजमहल क्षेत्र में
लैटेराइट मिट्टी, जो राँची के पश्चिमी हिस्से, पलामू, संथाल परगना के कुछ क्षेत्र एवं पश्चिमी एवं पूर्वी सिंहभूम में पायी जाती है।
वानस्पतिकी एवं जैविकी
झारखंड वानस्पतिक एवं जैविक विविधताओं का भंडार है। बेतला राष्ट्रीय अभयारण्य (पलामू), जो डाल्टेनगंज से 25 किमी की दूरी पर स्थित है, लगभग 250 वर्ग किमी में फैला हुआ है। विविध वन्य जीव यथा बाघ, हाथी, भैंसे सांभर, सैकड़ों तरह के जंगली सूअर एवं 20 फुट लंबा अजगर चित्तीदार हिरणों के झुंड, चीतल एवं अन्य स्तनधारी प्राणी इस पार्क की शोभा बढ़ाते हैं। इस पार्क को 1974 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया था।
जनसांख्यिकी
झारखण्ड की आबादी लगभग 32.98 मिलियन है।जो भारत की कुल जनसंख्या का 2.72% हैं। यहाँ का लिंगानुपात 948 स्त्री प्रति 1000 पुरुष है। प्रतिवर्ग किलोमीटर जनसंख्या का घनत्व लगभग 414 है।
झारखंड क्षेत्र विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों एवं धर्मों का संगम क्षेत्र कहा जा सकता है। द्रविड़, आर्य, एवं आस्ट्रो-एशियाई भाषायें यहां बोली जाती है। हिंदी,बंगाल नगपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुड़मालि यहाँ की प्रमुख भाषायें हैं। इसके अलावा यहां कुड़ुख, संथाली, मुंडारी, हो, भूमिज बोली जाती है। झारखंड में बसनेवाले स्थानीय आर्य भाषी लोगों को सादान काहा जाता है। झारखंड मॆं कई जातियां और जनजातियां हैं। यहाँ की आबादी में 26% अनुसूचित जनजाति, 12% अनुसूचित जाति शामिल हैं।
राज्य की बहुसंख्यक आबादी हिन्दू धर्म (लगभग 67.8%) मानती है। दूसरे स्थान पर (14.5%) इस्लाम धर्म है। राज्य की लगभग 12.8% आबादी सरना धर्म एवं 4.1% आबादी ईसाइयत को मानती है।
यहाँ की साक्षरता दर 64.4%है। जिसमें से पुरुष साक्षरता दर 76.8% तथा महिला साक्षरता दर 55.4% है।
झारखण्ड की जनजातियाँ
2001 की जनगणना के अनुसार झारखंड राज्य के अनुसूचित जनजातियों (एसटी) की जनसंख्या 7,087,068 है जो राज्य की कुल जनसंख्या (26,945,829) का 26.3 प्रतिशत है । जनजातियों की जनसंख्या के आधार पर इस राज्य का देश में चौथा स्थान है। अनुसूचित जनजातियाँ मुख्य रूप से ग्रामीण हैं जैसा कि 91.7 प्रतिशत जनजातियाँ गांवों में निवास करती हैं । जनसंख्या का जिलेवार वितरण से पता चलता है कि अनुसूचित जनजाति की उच्चतम अनुपात (68.4 प्रतिशत) गुमला जिले के है।
अनुसूचित जनजातियों की कुल आबादी का आधे से अधिक जनसंख्या लोहरदगा जिले और पश्चिमी सिंहभूम जिले में हैं जबकि रांची और पाकुड़ में इनकी प्रतिशत 41.8 – 44.6 है । कोडरमा जिले में अनुसूचित जनजाति का जनसंख्या अनुपात 0.8 प्रतिशत और चतरा में 3.8 प्रतिशत है। झारखंड 32 आदिवासी समूह अथवा अनुसूचित जनजातियाँ रहती है जो इस प्रकार है –
1. मुण्डा
2. संताल (संथाल, सौतार)
3. उरांव
4. खड़िया
5. गोण्ड
6. कोल
7. कनबार
8. सावर
9. असुर
10. बैगा
11. बंजारा
12. बथूड़ी
13. बेदिया
14. बिंझिया
15. बिरहोर
16. बिरजिया
17. चेरो
18. चिक बड़ाईक
19. गोराइत
20. हो
21. करमाली
22. खरवार
23. खोंड
24. किसान
25. कोरा
26. कोरबा
27. लोहरा
28. महली
29. माल पहाड़िया
30. पहाड़िया
31. सौरिया पहाड़िया
32. भूमिज
सरकार एवं राजनीति
झारखण्ड के मुखिया यहाँ के राज्यपाल हैं जो राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं परंतु वास्तविक कार्यकारी शक्तियाँ मुख्यमंत्री के हाथों में केन्द्रित होती है जो अपनी सहायता के लिए एक मन्त्रिमण्डल का भी गठन करता है। राज्य का प्रशासनिक मुखिया राज्य का मुख्य सचिव होता है जो प्रशासनिक सेवा द्वारा चुनकर आते हैं। न्यायिक व्यस्था का प्रमुख राँची स्थित उच्च न्यायलय के प्रमुख न्यायाधीश होता है। झारखण्ड भारत के उन तेरह राज्यों में शामिल है जो नक्सलवाद की समस्या से बुरी तरह जूझ रहा है। 5 मार्च 2007 को चौदहवीं लोकसभा से जमशेदपुर के सांसद सुनील महतो, की नक्सवादी उग्रवादियों द्वारा गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी।
प्रशासनिक जिला इकाइयाँ
राज्य का निर्माण होने के समय झारखण्ड में 18 जिले थे इसके बात कालांतर में कुछ जिलों को पुनर्गठित करके छह नये जिले सृजित किए गये :- लातेहार, सराईकेला खरसाँवा, जामताड़ा, खूँटी एवं रामगढ़। वर्तमान में राज्य में चौबीस जिले हैं झारखंड के जिले:
झारखंड के प्रमंडल और जिले इस प्रकार हैं:-
अर्थतंत्र
झारखण्ड की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से खनिज और वन संपदा से भरा पूरा है। लोहा, कोयला, माइका, बाक्साइट, फायर-क्ले, ग्रेफाइट, कायनाइट, सेलीमाइट, चूना पत्थर, युरेनियम, सोना और दूसरी खनिज संपदाओं की प्रचुरता की वजह से यहाँ उद्योग-धंधों का जाल बिछा है।
खनिज उत्पादों के खनन से झारखंड को सालाना तीस हजार करोड़ रुपये की आय होती है। झारखंड न केवल अपने उद्योग-धंधों में इसका इस्तेमाल करता है बल्कि दूसरे राज्यों को भी इसकी पूर्ति करता है।
कोविड-19 की वजह से राज्य की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है. इससे राज्य का सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) प्रभावित हुआ है. वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान राज्य के जीएसडीपी में स्थिर मूल्य पर 6.9 प्रतिशत और प्रचलित मूल्य पर 3.2 प्रतिशत तक की गिरावट का अनुमान है. हालांकि, अगले वित्तीय वर्ष (2021-22) में राज्य की वास्तविक जीएसडीपी में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है.
उद्योग-धंधे
झारखण्ड में भारत के कुछ सर्वाधिक औद्योगिकृत स्थान यथा – जमशेदपुर, राँची, बोकारो एवं धनबाद इत्यादि स्थित हैं। झारखंड के उद्योगों में कुछ प्रमुख हैं :
भारत का सबसे बड़ा उर्वरक कारखाना सिंदरी में स्थित था जो अब बंद हो चुका है।
भारत का पहला और विश्व का पाँचवां सबसे बड़ा इस्पात कारखाना टाटा स्टील जमशेदपुर में।
एक और बड़ा इस्पात कारखाना बोकारो स्टील प्लांट बोकारो में।
भारत का सबसे बड़ा आयुध कारखाना गोमिया में।
मीथेन गैस का पहला प्लांट।
एलपीजी गैस प्लांट हज़ारीबाग़ के बड़कागांव में।
कला और संस्कृति / पर्व-त्यौहार
झारखण्ड के कुछ प्रमुख त्योहार इस प्रकार हैं:-
1. आखाँइन (पहीला माघे)
2. सिझानो (पथिपुजा)
3. सरहुल (फुल परब)
4. गाजन (चइत सांकराइत ले रहइन)
5. रहइन ( 13 दिन जेठ)
6. जांताड़/मनसा पुजा (आसाङ ले सराबन)
7. करमा (श्रृजन परब)
8. जितिया ( सस्टी मायेक पुजा )
9. छाता ( भादर सांकराइत )
10. जिहुड़ ( आसिन सांकराइत )
11. दिनीमाञ (अघन सांकराइत )
12. बांदना ( गाय गोरूक पुजा )
13. टुस ( अगहन सांकराइत ले एक महिना )
झारखण्ड के लोकनृत्य
झुमइर, डमकच, पाइका, छऊ, जदुर, नाचनी, नटुआ, अगनी, चौकारा, जामदा, घटवारी,फिरकाल, मतहा,
सिनेमा
झारखण्ड में अनेक भाषाओं में चलचित्र बनते हैं। इनमें मुख्य रूप से नागपुरी सिनेमा का निर्माण है। इसके अलावा खोरठा भाषा एवं संथाली में भी फिल्में बनती हैं। झारखंड के सिनेमा को झॉलीवुड कहा जाता है।
शिक्षा संस्थान
झारखण्ड की शिक्षा संस्थाओं में कुछ अत्यंत प्रमुख शिक्षा संस्थान शामिल हैं। जनजातिय प्रदेश होने के बावज़ूद यहां कई नामी सरकारी एवं निजी कॉलेज हैं जो कला, विज्ञान, अभियांत्रिकी, मेडिसिन, कानून और मैनेजमेंट में उच्च स्तर की शिक्षा देने के लिये विख्यात हैं।
झारखण्ड की कुछ प्रमुख शिक्षा संस्थायें हैं :
विश्वविद्यालय
बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान मेसरा राँची,
डॉ ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी, रांची
राँची विश्वविद्यालय राँची,
नीलाम्बर पीताम्बर विश्वविद्यालय
बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय,धनबाद
सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका,
विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग,
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय राँची,
कोल्हान विश्वविद्यालय चाईबासा,
अन्य प्रमुख संस्थान
राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला जमशेदपुर, राष्ट्रीय खनन शोध संस्थान धनबाद, भारतीय लाह शोध संस्थान राँची, राष्ट्रीय मनोचिकत्सा संस्थान राँची, जेवियर प्रबंधन संस्थान। एक्स एल आर आई जमशेदपुर
यातायात
झारखण्ड की राजधानी राँची संपूर्ण देश से सड़क एवं रेल मार्ग द्वारा काफी अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग 2, 27, 33 इस राज्य से होकर गुजरती है। इस प्रदेश का दूसरा प्रमुख शहर टाटानगर (जमशेदपुर) दिल्ली कोलकाता मुख्य रेलमार्ग पर बसा हुआ है जो राँची से 120 किलोमीटर दक्षिण में बसा है। राज्य का में एकमात्र अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा राँची का बिरसा मुंडा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो देश के प्रमुख शहरों; मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और पटना से जुड़ा है। इंडियन एयरलाइन्स और एयर सहारा की नियमित उड़ानें आपको इस शहर से हवाई-मार्ग द्वारा जोड़ती हैं। सबसे नजदीकी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कोलकाता का नेताजी सुभाषचंद्र बोस हवाई अड्डा है।
संचार एवं समाचार माध्यम
राँची एक्सप्रेस एवं प्रभात खबर जैसे हिन्दी समाचारपत्र राज्य की राजधानी राँची से प्रकाशित होनेवाले प्रमुख समाचारपत्र हैं जो राज्य के सभी हिस्सों में उपलब्ध होते हैं। हिन्दी, बांग्ला एवं अंग्रेजी में प्रकाशित होने वाले देश के अन्य प्रमुख समाचारपत्र भी बड़े शहरों में आसानी से मिल जाते हैं।
इसके अतिरिक्त दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, दैनिक हिन्दुस्तान, खबर मन्त्र, आई नेक्स्ट उदितवाणी, चमकता आईना, उत्कल मेल,स्कैनर इंडिया,इंडियन गार्ड तथा आवाज जैसे हिन्दी समाचारपत्र भी प्रदेश के बहुत से हिस्सों में काफी पढ़े जाते हैं।
न्यूज़ पोर्टल या न्यूज़ वेबसाइट की बात करें तो मुख्य रूप से न्यूज़ विंग (हिंदी), लगातार मीडिया (हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू), कोहराम (हिंदी), बालाजी न्यूज़ (हिंदी) आदि हैं।
इलेक्ट्रानिक मीडिया की बात करें तो झारखंड को केंद्र बनाकर खबरों का प्रसारण ई टीवी बिहार-झारखंड, सहारा समय बिहार-झारखंड, मौर्य टीवी, साधना न्यूज, न्यूज 11 आदि चैनल करते हैं। रांची में राष्ट्रीय समाचार चैनलों के ब्यूरो कार्यालय कार्यरत हैं।
जोहार दिसुम खबर झारखंडी भाषाओं में प्रकाशित होने वाला पहला पाक्षिक अखबार है। इसमें झारखंड की 10 आदिवासी एवं क्षेत्रीय भाषाओं तथा हिन्दी सहित 11 भाषाओं में खबरें छपती हैं।
जोहार सहिया राज्य का एकमात्र झारखंडी मासिक पत्रिका है जो झारखंड की सबसे लोकप्रिय भाषा नागपुरी में प्रकाशित होती है।
इसके अलावा झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा और गोतिया झारखंड की आदिवासी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाली महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाएं हैं।
राँची और जमशेदपुर में लगभग पांच रेडियो प्रसारण केन्द्र हैं और आकाशवाणी की पहुँच प्रदेश के हर हिस्से में है। दूरदर्शन का राष्ट्रीय प्रसारण भी प्रदेश के लगभग सभी हिस्सों में पहुँच रखता है। झारखंड के बड़े शहरों में लगभग हर टेलिविजन चैनल उपग्रह एवं केबल के माध्यम से सुलभता से उपलब्ध है।
झारखंड के पर्यटन स्थल
झारखंड को प्रकृति ने बहुत से सौगात दिए हैं , उसमे से एक है यह कि प्राकृतिक खूबसूरती। यहां कई पर्यटक स्थल है।
लोध जलप्रपात,
तमासीन जलप्रपात
पलामू किला,
देवघर वैधनाथ मंदिर,
बासुकीनाथ मंदिर,
हुंडरू जलप्रपात,
दलमा अभयारण्य,
बेतला राष्ट्रीय उद्यान,
श्री समेद शिखरजी जैन तीर्थस्थल (पारसनाथ)
पतरातू डैम, पतरातू
गौतम धारा – जोन्हा
छिनमस्तिके मंदिर, रजरप्पा
रजरप्पा जलप्रपात
पंचघाघ जलप्रपात,
दशम जलप्रपात
हजारीबाग राष्ट्रीय अभयारण्य
तोपचाँची झील
मैथन डेम
पेरवाघाघ जलप्रपात
हजारीबाग रेलवे स्टेशन
पंचेत डेम
भटिंडा फॉल
लिलौरी कतरास गढ़
दुग्धा पहाड़ी मंदिर (बोकारो ज़िला)
झारखंड के गर्म पानी के कुंड / स्रोत
झारखंड के प्रसिद्ध व्यक्ति
शेख भिखारी
फणि मुकुट राय
मधु सिंह
दुर्जन साल
मेदिनी राय
रघुनाथ शाह
गंगा नारायण सिंह
रघुनाथ महतो
तिलका माँझी
बख्तर साय
मुंडल सिंह
नीलाम्बर सिंह
पीताम्बर सिंह
पाण्डे गणपत राय
ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव
टिकैत उमराँव सिंह
घासीराम महली
सिद्धू कान्हू
बिरसा मुंडा
तेलंगा खड़िया
जयपाल सिंह मुंडा
अलबर्ट एक्का
बिनोद बिहारी महतो
शहीद शक्तिनाथ महतो
निर्मल महतो
मुकुंद नायक
माधवन
प्रियंका चोपड़ा
महेंद्र सिंह धोनी
अंशुमन भगत
दीपिका कुमारी
पूर्णिमा महतो
निक्की प्रधान
मीनाक्षी शेषाद्रि
कृष्ण भारद्वाज
इम्तियाज अली
तनुश्री दत्ता
श्वेता बासु प्रसाद
मधुरिमा तुली
सिमोन सिंह
जयंत सिन्हा