सशक्त भारत, समृद्ध भारत की ओर देश बढ़ता दिख रहा है. ऋण लेने वालों की श्रेणी में कभी आने वाला देश भारत अब दानदाता बना है. इसका उल्लेख खुद विश्व बैंक ने की है. विश्व बैंक से ऋण लेने वाला पहला एशियाई देश भारत था, आज वह दान करने वाला देश बन गया है. भारत के साथ अपने 75 वर्षों के रिश्ते के बारे में विश्व बैंक ने गुरुवार को ये कहा कि भारत ने उल्लेखनीय मुकाम हासिल करते हुये ऋणलेने वाले देश की टैग से मुक्त होकर अब दान देने वाला देश बन गया है. वर्ष 1947 में आजादी के बाद भारत अल्प आय राष्ट्र ने निकलकर कम मध्यम आय वाला देश बन गया है और यहां की आबादी अभी 1.3 अरब है और तीन लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था है.
बताते है कि आज़ादी के बाद भारत ने विश्व बैंक से पहला ऋण 1949 में रेलवे के विकास के लिए लिया था.तब विजय लक्ष्मी पंडित ने विश्व बैंक के साथ ऋण करार पर हस्ताक्षर किये थे. विश्व बैंक का किसी एशियाई देशों का भी यह पहला ऋण था.
इधर विश्व बैंक के कंट्री निदेशक जुनैद अहमद ने भारत में विकास यात्रा को गति देने में महत्ती भूमिका निभाने लोगों से बात की. श्री अहमद ने योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया, 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन के सिंह, कौशल विकास एवं उद्यमशिलता मंत्रालय के पूर्व सचिव के पी कृष्णन, आंध्र प्रदेश सरकार के कृषि एवं सहकारिता सलाहकार टी विजय कुमार, पंजाब की पूर्व मुख्य सचिव विनि महाजन और गैर सरकारी संगठन सेवा की कार्यकारी निदेशक रीमा नानावटी से बात की. इन सभी लोगों से भारत के विकास में विश्व बैंक की भूमिका पर चर्चा की.
जुनैद अहमद ने उनसबों से जानकारी ली की विश्व बैंक के साथ भारत के अनुभव कैसे रहे. दुनिया के दूसरे देशों के साथ साझा किये जा सकने वाले मुद्दों पर चर्चा की. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ही भारत वर्ष 1945 में विश्व बैंक का संस्थापक सदस्य बना था। भारत ने तब विकासशील देशों के लिए विकास के लिए एक विशेष संगठन बनाने का प्रस्ताव दिया था. जिसके बाद इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसियेशन का गठन किया गया था।