2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने सिख दंगा पीडि़तों को न्याय सुनिश्चित कराने का फैसला किया। सिख दंगा पीडि़तों का आरोप था कि पुलिस ने राजनीतिक दबाव में इन मामलों की ठीक से जांच नहीं की और सबूतों के अभाव का बहाना बनाकर इनसे जुड़े मामलों को बंद कर दिया। ऐसे मामलों में आगे की कार्रवाई का रास्ता बताने के लिए मोदी सरकार ने सेवानिवृत जस्टिस जीपी माथुर की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। अपनी रिपोर्ट में जस्टिस जीपी माथुर कमेटी ने एसआइटी का गठन बंद मामलों की दोबारा जांच की सिफारिश की थी। इसके बाद 12 फरवरी 2015 को दो आरक्षी निरीक्षक और एक न्यायिक अधिकारी वाले एसआइटी का गठन किया गया।
पिछले लगभग साढे़ चार साल में एसआइटी ने सिख दंगे जुड़े कुल 650 मामलों में से 80 की गहराई से छानबीन कर चुका है। इनमें से सात केस की जांच शुरू करने का फैसला किया गया है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कई राज्यों में भड़के दंगों में 3325 लोग मारे गए थे। इनमें से 2733 लोग सिर्फ दिल्ली में मारे गए थे। दिल्ली पुलिस ने सबूत के अभाव का हवाला देते हुए 241 केस बंद कर दिया था। बाद में गठित नानावती आयोग ने केवल चार केस की दोबारा जांच की जरूरत बताई थी। नानावती आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सीबीआइ चार केस की दोबारा जांच शुरू की, जिनमें से केवल दो केस में आरोपपत्र दाखिल किया। इन्हीं में से एक मामले में कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
1984 के सिख दंगों के मामले में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ की मुश्किलें बढ़ सकती है। सिख दंगों से जुड़े बंद मामलों की फिर जांच के लिए बनी एसआइटी ने सात केस की दोबारा जांच शुरू कर दी है। इन सभी मामलों में आरोपियों को बरी कर दिया गया है या अदालत में सुनवाई बंद हो चुकी है।