प्रचलित नाम- चौलाई का शाक / कटैली चवलाई / तंदुलीय चौलाई
प्रयोज्य अंग- मूल तथा पत्र
स्वरूप-छोटा, एक वर्षीय, सीधा, क्षुप, काण्ड अतिशाखीत लाल रंग का कोण में कंटक होता है।
पत्ते एकान्तर, अण्डाकार, अखण्ड, नोकदार, पुष्प गुच्छ या मंजरियों में होते हैं।
स्वाद-मधुर ।
रासायनिक संगठन- इसके पंचांग में कार्बोदित, प्रोटीन्स, खनिज एवं लोह तत्व पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त इसके पत्रों में विटामिन-ए, कैल्शियम पाया जाता है।
गुण-शीतल, रुचिकर, मूत्रल, दीपन, विषघ्न, रक्तशोधक, पित्त शामक, स्तन्यजनन ।
उपयोग-विष, पित्त, श्रम, दाह, रक्त विकार, उन्माद, रक्त पित्त, ज्वर, कास, कफ, अतिसार को नष्ट करता है। रक्त प्रदर, सोजाक, श्वेत प्रदर, चर्मरोगों में इसका प्रयोग लाभकारी।
स्तन्य वृद्धि के लिए चौलाई के पंचांग को अरहर की दाल के साथ पकाकर खिलाना चाहिए।
सर्प विष में इसके मूल एवं काली मिर्च को चावल के धेवन में पीसकर पिलाने से लाभ होता है।
सभी प्रकार के प्रदर में इसके मूल को पीसकर कर इस कल्क को रसवंती (दारुहरिद्रा का अष्टमांश क्वाथ बनाकर, इतनी ही मात्रा में इसमें बकरी का दूध मिलाकर उबालकर मावा बनाकर कूट कर चूर्ण बना लें) मिलाकर पिलाने से सभी प्रकार के प्रदर का नाश होता है।
गर्भ की स्थिरता के लिये ऋतुचक्र के समय चौलाई के मूल को चावल के धोवन में पीसकर पिलाने से लाभ होता है । गर्भवती एवं प्रसूता ‘के रक्तस्राव में इसके मूल को चावल के धोवन में पीसकर पिलाने से लाभ होता है ।
विषम ज्वर में इसके मूल को सिर पर बाँधने से यह ज्वर ठीक हो जाता है।
बिच्छू विष में इसके पंचांग के स्वरस में मिश्री मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
अर्धावभेदक (आधा शीशी) में इसके पंचांग के कल्क तथा जटामान्सी के कल्क में घी को सिद्ध कर इसका नस्य लाभकारी।
उदर रोग में इसके पंचांग के स्वरस का सेवन या इसकी भाजी नित्य खाने से लाभ होता है।
अग्निदग्ध व्रण में इसके पंचांग के स्वरस को लगाना चाहिए ।
सोजाक में चौलाई की जड़ के क्वाथ में यष्ठीमधु एवं अपामार्ग मिलाकर सेवन कराना चाहिए ।
फोड़े एवं गण्ड आदि शीघ्र पकाने हेतु इसके मूल को जल में घोट कर इसका लेप करना चाहिए।
चर्मरोग (दाहयुक्त) इसके पत्तों को पीसकर लेप करने से दाह शान्त होता है ।
रक्तातिसार में (अतिसार में रक्त आता हो) इसके मूल को चावल के धोवन में पीसकर मिश्री मिलाकर पिलाना चाहिए।
खाज-खुजली में इसके मूल तथा पत्रों को पीसकर लेप करने से लाभ होता है।
रक्तपित्त में (शरीर के किसी भी हिस्से से रक्त बहता हो) इसके पत्रों के स्वरस में मिश्री मिलाकर नित्य सेवन करना चाहिये।
शूलयुक्त अर्श, बवासीर, मूत्र में रक्त आता हो, शरीर में दाह अनुभव होता हो इसके पंचांग को कूटकर इसका क्वाथ बनाकर पिलाने से इन रोगों में लाभ होता है।
चौलाई का शाक आहार एवं उत्तम औषधि दोनों ही गुणों वाला है ।
Amaranthus spinosus
Linn. AMARANTHACEAE
ENGLISH NAME:-Prickly Amaranthus. Hindi – Kateli Chaulai
PARTS-USED:-Roots and Leaves.
DESCRIPTION:- A small annual, erect herb with reddish much branched stem, axillary spines. Leaves alternate, Ovate, entire. sharp pointed. Flwoers in axillary clusters or terminal spikes.
TASTE:-Sweet.
CHEMICAL CONSTITUENTS-Plant Contains:- Carbohydrates, Proteins, Mineral,
Iron, Vitamin-A and Calcium (Leaves.). ACTIONS:-Cooling, Appitizer, Stomachic, Antidote, Blood puri fier, Antibillious, Diuretic, Galactogogue.
USED IN:- Plant is Anti dote, Anti billious, Antifatigus; useful in Inflammation, Blood impurities, Insanity, Hemorrhagicdisease, Fever, Cough, Diarrhoea; Lucorrhoea, Gonorrhoea, Metrorrhagia.
अन्य भाषाओं में तंदुलीय चौलाई के नाम (Name of Tanduleey Choulai in Different Languages)
चौलाई (amaranth grain) का वानस्पतिक नाम Amaranthus spinosus Linn. (एमारेन्थस स्पाइनोसस) है। यह Amaranthaceae (ऐमारेन्थेसी) कुल का पौधा है। चौलाई देश या विदेश में इन नामों से भी जानी जाती हैः-
Tanduleey Choulai in –
• Hindi (amaranth in hindi) – चौलाई, चौराई का साग, कटैली चवलाई
• English – स्पाइनी एमारेन्थ (Spiny amaranth), थार्नी पिगवीड (Throny pigweed), Prickly Amaranth (प्रिक्ली एमारेन्थ)
• Sanskrit – तण्डुलीय, मेघनाद, काण्डेर, तण्डुलेरक, विषघ्न
• Bengali – कांटा नटे (Kanta nate), कांटामरीस (Kantamaris)
• Marathi – कांटेमाठ (Kantemath)
• Gujarati – कांटालो डांभो (Kantalo dambho), कांटालो धीम्डो (Kantalo dhimdo)
• Kannada – मुल्लुहरिवेसोप्पु (Mulluharivesoppu)
• Telugu – मोला टोटा कुरा (Mola tota kura)
• Tamil – मुलुक्कोरै (Mullukkore)
• Nepali – वनलुडे (Vanlude)
• Malayalam – मुलेन्चीरा (Mullanchira)