रांचीः झारखंड में ठनका से बचाव के माकूल इंतजाम नहीं हो पाया है. इस साल 1 अप्रैल से 31 जुलाई तक मतलब 120 दिन के अंदर झारखंड में 4.53 लाख बार बिजली गिरी, जिसमें 118 लोगों की जानें चली गई. वहीं मृतक के आश्रितों को मुआवजा देने में 4.72 करोड़ रुपए भी खर्च हो गए. वहीं पड़ोसी राज्य उड़ीसा में इतने ही दिनों के अंदर 9.26 लाख बार बिजली गिरी, जिसमें 129 लोग मौत के शिकार हो गए. वहीं 1 अप्रैल से 31 जुलाई तक देश भर में ठनका से 1,311 लोगों की मौत हो चुकी है.
झारखंड के पांच जिले ठनका के लिए सबसे खतरनाक
झारखंड में रांची, खूंटी, हजारीबाग, सिमडेगा और पश्चिमी सिंहभूम ठनका के लिए सबसे खतरनाक माने गये हैं. पांचों जिले थंडरिंग जोन में हैं. इन जिलों में ठनका गिरे, तो जान आफत में आ सकती है. थंडरिंग जोन की पहली श्रेणी में हजारीबाग है. झारखंड में दो तरह के थंडरिंग जोन हैं. इसमें लो क्लाउड (कम ऊंचाई के बादल) और माइक्रोस्पेरिक थंडरिंग शामिल हैं. लो क्लाउड थंडरिंग धरातल से 80 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर होती है, जबकि माइक्रोस्पेरिक थंडरिंग की गतिविधि धरातल से 80 किलोमीटर से अधिक ऊंचाई पर होती है. लेकिन राज्य सरकार प्रदेश में लाइटनिंग (ठनका) से बचाव के लिए अब तक माकूल इंतजाम नहीं कर पायी है.
सालाना मुआवजा में 11 से 12 करोड़ खर्च
सरकार ठनका से हुई मौत पर मुआवजा देने के एवज में सालाना 11 से 12 करोड़ रुपये खर्च करती है. ठनका से मौत होने पर मृत व्यक्ति के परिजन को चार लाख रुपये देने का प्रावधान है. सरकार ने ठनका से बचाव के लिए कई योजनाएं बनायी, लेकिन योजनाएं ठनका प्रभावित इलाकों में धरातल पर नहीं उतर पायीं, सिर्फ देवघर में छह और रांची के नामकुम में एक तड़ित रोधक यंत्र ही लगाया जा सका. योजना के तहत रांची के पहाड़ी मंदिर और जगन्नाथपुर मंदिर में भी तड़ित रोधक यंत्र लगाया जाना था.
क्यों बनी थी तड़ित रोधक यंत्र लगाने की योजना
आपदा विभाग का तर्क था कि पहले जो तड़ित चालक लगाये जाते थे, वह छत या भवन के उपरी हिस्से में तांबे का त्रिशुलनुमा यंत्र लगा होता था. इसी के सहारे अर्थिंग को जमीन के अंदर ले जाया जाता था, लेकिन यह उतनी कारगर साबित नहीं हो पाई. जबकि तड़ित रोधक ठनका को भूमिगत करने में सक्षम है.
क्या है तड़ित रोधक
तड़ित रोधक में एक एम्मीमीटर लगा होता है, जो एक इलेक्ट्रॉनिक फील्ड बनाता है. यह बिजली बनने से पहले ही उसे नष्ट कर देता है. यह यंत्र 240 मीटर की परिधि को कवर करने में सक्षम है. एक तड़ित रोधक लगाने में डेढ़ से दो लाख रुपये तक का खर्च आता है.
देशभर में 400 से अधिक जिले हैं वज्रपात प्रभावित
वर्तमान में देश के 400 से ज्यादा जिले वज्रपात प्रभावित हैं. ये जिले वज्रपात के करंट तीव्रता के स्केल वन के क्षेत्र में आ चुके हैं. इन जिलों में करंट की तीव्रता 1.3 बिलियन वोल्ट नापी जा चुकी है. झारखंड सहित उत्तर प्रदेश बिहार, मध्य प्रदेश इनके मैदानी पठारी और पहाड़ी क्षेत्रों में वज्रपात के कारण हुई मौतों की संख्या में अचानक भारी वृद्धि हुई है.
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकार भी नहीं कर रहा काम
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकार भी काम नहीं कर रहा. 2016 के बाद से अब तक प्राधिकार की बैठक भी नहीं हो पाई है, वहीं जिला आपदा प्राधिकार भी काम नहीं कर रहा है. वर्ष 2014-15 में जिला आपदा प्रबंधन पदाधिकारियों की भी नियुक्ति भी की गई थी. संविदा के आधार पर हर जिले में जिला आपदा प्रबंधन पदाधिकारी की तैनाती की गई थी, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट रिन्वल नहीं होने के कारण यह योजना भी सफल नहीं हो पाई.
क्या कहते हैं कर्नल संजय श्रीवास्तव
वज्रपात सुरक्षा अभियान के कर्नल संजय श्रीवास्तव के अनुसार वज्रपात सुरक्षा अभियान लॉन्च किया गया है, यह अभियान 2019 से 2021 तक चलेगा. इस अभियान के जरीए वज्रपात से होने वाली मौत को तीन साल के अंदर 80% कम किया जा सकेगा.