रांचीः झारखंड कैडर के आइएएस अफसरों की धमक केंद्र में भी है. ये अपने विजन से कई कल्याणकारी योजाओं को अमलीजामा पहना भी रहे हैं, साथ ही झारखंड सहित दूसरे कैडर के अफसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी बन गए हैं. इनकी कार्यशैली व आत्मविश्वास इन्हें एक्सपोजर भी दिला रहा है. पहली बार झारखंड कैडर के अफसर राजीव गौबा को भारतीय सिविल सेवा के सर्वोच्च पद पर आसीन किया गया. वे 1982 बैच के आइएएस हैं. इसी कड़ी में 1984 बैच के झारखंड कैडर के आइएएस राजीव कुमार केंद्र में वित्त सेवा की जिम्मेवारी संभाल रहे हैं. वे सचिव के पद पर पदस्थापित हैं. वहीं मनमोहन सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेवारी संभाल चुके अपर मुख्य सचिव रैंक के अफसर भी जल्द केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाएंगे. राज्य सरकार ने उन्हें मंजूरी मिल चुकी है.
सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की जिम्मेवारी भी
झारखंड कैडर के 1985 बैच के अफसर अमित खरे राज्य में विकास आयुक्त के पद पर पदस्थापित थे. इसके बाद उन्हें केंद्र में महत्वपूर्ण जिम्मेवारी सौंपी गई. फिलवक्त वे केंद्र में सूचना प्रद्यौगिकी मंत्रालय में सचिव के पद पर पदस्थापित हैं. सरकार की योजनाओं के देश भर में प्रचार-प्रसार की जिम्मेवारी उन पर ही है. इसी तरह 1987 बैच के अफसर एनएन सिन्हा एनएचएआइ के चेयरमैन हैं. झारखंड में वे लंबे अरसे तक पथ विभाग की जिम्मेवारी संभाले. जिसका फायदा उन्हें मिला. देश में सड़कों का जाल बिछाने में अपना योगदान दे रहे हैं.
पांच अफसर भी महत्वपूर्ण विभागों में
झारखंड कैडर के और पांच अफसर भी केंद्र में महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेवारी संभाल रहे हैं. इनमें 1988 बैच की अलका तिवारी ऊर्वरक एवं रसायन मंत्रालय में एडिशनल सेक्रेट्री के पद पर पदस्थापित हैं. 1990 बैच के अफसर एमएस भाटिया इकोनॉमिक अफेयर का काम देख रहे हैं. 1990 बैच के अफसर एसकेजी रहाटे ऊर्जा मंत्रालय में एडिशनल सेक्रेट्री हैं. 1992 बैच की अफसर निधि खरे वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेट्री और 1993 बैच के अफसर एसएस मीणा सामाजिक न्याय मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेट्री के पद पर पदस्थापित हैं.
केंद्र के साथ अपने राज्य में भी बनाई है पहचान
1997 बैच के अफसर डॉ सुनील वर्णवाल का ग्रामीणों से लगाव किसी से छिपा नहीं है. वर्तमान में डॉ वर्णवाल मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव हैं. करियर की शुरूआत से ही उनका ग्रामीणों से लगाव रहा है. बात उन दिनों की है जब वे मसूरी से ट्रेनिंग कर राजधानी के नवागढ़(अनगड़ा) में प्रोबेशन पीरियड में तैनात थे. उस वक्त ही उन्होंने ठाना था कि ग्रामीणों को ऐसी सभी मुलभूत सुविधाएं दिलायेंगे, जिससे वे भी मुख्यधारा में आ सकें. उनके अरमानों को पंख लग सके. हुआ ऐसा ही. आज नवागढ़ की सूरत और सीरत दोनों बदल चुकी है. उन्होंने ग्रामीणों की समस्याओं को जाना और समझा. सामाजिक -आर्थिक रिपोर्ट तैयार की. यह रिपोर्ट मसूरी में सौंपी. रिपोर्ट की जमीनी हकीकत ऐसी थी कि उन्हें इस रिपोर्ट के आधार पर गोल्ड मेडल मिला. रिपोर्ट बनाने में जिन ग्रामीणों ने उन्हें सहयोग किया था, वे आज भी हैं. उनसे ऐसा भावनात्मक लगाव हो गया है कि जब भी समय मिलता है तब डॉ वर्णवाल वहां पहुंच जाते हैं. पूरे नवागढ़ को गोद भी ले लिया.