अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब सड़क हादसे में घायल एक बच्चे की मौत इसलिए हो गयी क्योंकि सरकारी अस्पताल में एम्बुलेंस खड़ी रही लेकिन बच्चे को ट्रॉमा सेंटर नहीं भेजा गया। अस्पताल के सीएमएस ने यह कहकर एम्बुलेंस उपलब्ध कराने से मना कर दिया कि यह एम्बुलेंस वीवीआई सेवा के लिए है। वहीं दूसरी ओर लोहिया संस्थान में मरीजों की सेवा के लिए लगायी एम्बुलेंस से अस्पतान का सामान ढोया जा रहा है।
मंगलवार को संस्थान की एम्बुलेंस में झाड़ू , बाल्टी, डब्बे और गत्ते आदि लादकर ढोए जा रहे थे, वहीं आम जनता अपने गंभीर मरीजों के लिए एक अदद एम्बुलेंस का इंतजार कर रही थी। लेकिन यहां तो पूरा सिस्टम ही संवदेना शून्य है, राजधानी है तो क्या हुआ? यहां इंसान की जान की कीमत ही क्या है?
प्रदेश के कई हिस्सों से आए दिन दिल का झकझोर कर रख देने वाली तस्वीरें आती हैं कि तरह लोग एम्बुलेंस के अभाव में अपनी मरीजों को अस्पताल पहुंचाते हैं। न जाने कितने ही अभागे समय पर एम्बुलेंस न मिलने पर दम तोड़ देते हैं। कितनी ही बार एक बाप, पति अपने बच्चों, पत्नी के शव को कंधे और ठेले पर लाद कर ले गए हैं। वहीं दूसरी तरफ एक यह तस्वीर है जिसमें दिख रहा है कि जो लोग सिस्टम के अंदर है वह संसाधनों का कैसे बेजा इस्तेमाल करते हैं। शायद यही व्यवस्था है