रांची: प्याज का रूतबा तो देखिए साहब, ऐसे इतरा रहा है कि लोगों के वश में ही नहीं है. मंत्र भी हाथ नहीं लग रहा कि इसे वश में किया जा सके. शेयर बाजार की तरह उछाल पर उछाल मारे हुए है. वैसे तो इस महीने प्याज ने हाफ सेंचुरी पार कर ली है. क्रिकेट में हाफ सेंचुरी होने पर तालियां बजती हैं, पर प्याज की हाफ सेंचुरी होने पर आंखों से आंसु भी नहीं छलक रहे. बस कहें कि प्याज न होने का गम छिपाये नहीं छिप रहा. सत्ता के गलियारों में भी प्याज ने हड़कंप मचा दी. तरह-तरह की चर्चाएं आम हैं. खास कर राजनीतिक दल भी प्याज को लेकर रोटी सेंक रही हैं, पर थाली में प्याज का एक टुकड़ा बमुश्किल से नसीब हो रहा है. राजनीतिक दलों को व्यंग्य वाण चलाने पर मजबूर कर दिया है.
प्याज ने बता दी है अपनी अहमियत
प्याज हर साल कभी न कभी अपनी अहमियत बताने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता. कहता भी है मैं हर उस शख्स के खानपान का हिस्सा हूं, ऊंची हैसियत वाले से गरीब तक. गांवों में तो अब भी लोग रोटी और प्याज खाकर तृप्त हो जाते हैं. रोटी, दाल, चावल की तरह लोग मेरे बगैर भी जिंदा नहीं रह सकते है. इसके बिना घर हो या रेस्तरां का खाना जायका बनता ही नहीं. शाही रसोई में तो इसकी गजब की डिमांड है.
सत्ता तक हिला चुका है प्याज
प्याज की मार ऐसी है कि सत्ता भी कई बार हिल चुकी है. जब शरद पवार खाद्य मंत्री थे तब प्याज़ की क़ीमतें चढ़ने का ठीकरा उनके सर फोड़ा गया था. उस समय उन पर यह आरोप लगा था कि वो महाराष्ट्र में अपने लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए निर्यात को बढ़ावा देकर प्याज मंहगी करवा देते थे. दिल्ली में अक्सर प्याज के दाम बढ़ने पर मुख्यमंत्रियों को अपनी गद्दी सरकती हुई लगती रही है. प्याज अब भी अपनी कीमतों को लेकर इतरा ही रहा है. विपक्ष को एक जाने-अनजाने में चुनावी मुद्दा भी दे दिया है. विपक्षी दल तराना भी छेड़ रहे हैं.